हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। भाद्रपद कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम अजा है। यह सब प्रकार के समस्त पापों का नाश करने वाली है। जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश की पूजा करना चाहिए।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी मनाई जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है। इसदिन विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करने से हर पाप की नाश होती है।
यह व्रत ग्रहस्थ के लिए करना जरूरी हो और काम्य व्रत का मतलब है। जो किसी वांछित वस्तु की प्राप्ति, यानी कि जो ऐश्वर्य, संतति, स्वर्ग, मोक्ष की प्राप्ति के लिये किया जाए। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि एकादशी व्रत का पारण चावल से नहीं किया जाता। एकादशी से एक दिन पहले से ही मदिरा आदि के सेवन पर निषेद्ध लगा दिया जाता है।
काल निर्णय के पृष्ठ 257 के अनुसार 8 वर्ष से अधिक और 80 वर्ष से कम हर व्यक्ति को एकादशी का व्रत करना चाहिए और एकादशी पर पका हुआ भोजन नहीं करना चाहिए। फल, मूल, तिल, दूध, जल, घी, पंचद्रव्य और वायु का सेवन करके यह व्रत अवश्य करना चाहिए। जानिए इस क्या उपाय करने से घर में सुख-शांति आती है।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी मनाई जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है। इसदिन विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करने से हर पाप की नाश होती है।
यह व्रत ग्रहस्थ के लिए करना जरूरी हो और काम्य व्रत का मतलब है। जो किसी वांछित वस्तु की प्राप्ति, यानी कि जो ऐश्वर्य, संतति, स्वर्ग, मोक्ष की प्राप्ति के लिये किया जाए। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि एकादशी व्रत का पारण चावल से नहीं किया जाता। एकादशी से एक दिन पहले से ही मदिरा आदि के सेवन पर निषेद्ध लगा दिया जाता है।
काल निर्णय के पृष्ठ 257 के अनुसार 8 वर्ष से अधिक और 80 वर्ष से कम हर व्यक्ति को एकादशी का व्रत करना चाहिए और एकादशी पर पका हुआ भोजन नहीं करना चाहिए। फल, मूल, तिल, दूध, जल, घी, पंचद्रव्य और वायु का सेवन करके यह व्रत अवश्य करना चाहिए। जानिए इस क्या उपाय करने से घर में सुख-शांति आती है।
- एकादशी की शाम तुलसी के सामने गाय के घी का दीपक जलाएं और 'ऊं वासुदेवाय नमः' मंत्र को बोलते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें। ऐसा करने से आपके घर में सुख-शांति और हर संकट से छुटकारा मिलेगा।
- इस दिन भगवान विष्ण को पीले रंग के फूल जरुर अर्पित करें। इससे आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।
- भगवान विष्णु की पूजा करते समय खीर का भोग लगाएं। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि खीर में तुलसी की पत्तियां जरुर डालें।
- इस दिन पीले रंग के फल, कपडे व अनाज भगवान विष्णु को अर्पित करें। साथ ही गरीबों को भी दान दें।
- एकादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा का केसर मिले दूध से अभिषेक करें। एकादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद श्रीमद्भागवत कथा का पाठ करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है।
- इस दिन तुलसी की माला से 'ऊं नमो वासुदेवाय नमः' का जाप करें। शुभ फल मिलेगा।
कथा
कुंतीपुत्र युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! भाद्रपद कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम अजा है। यह सब प्रकार के समस्त पापों का नाश करने वाली है। जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश की पूजा करता है उसको वैकुंठ की प्राप्ति अवश्य होती है। अब आप इसकी कथा सुनिए।
प्राचीनकाल में हरिशचंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। उसने किसी कर्म के वशीभूत होकर अपना सारा राज्य व धन त्याग दिया, साथ ही अपनी स्त्री, पुत्र तथा स्वयं को बेच दिया।
वह राजा चांडाल का दास बनकर सत्य को धारण करता हुआ मृतकों का वस्त्र ग्रहण करता रहा। मगर किसी प्रकार से सत्य से विचलित नहीं हुआ। कई बार राजा चिंता के समुद्र में डूबकर अपने मन में विचार करने लगता कि मैं कहाँ जाऊँ, क्या करूँ, जिससे मेरा उद्धार हो।
इस प्रकार राजा को कई वर्ष बीत गए। एक दिन राजा इसी चिंता में बैठा हुआ था कि गौतम ऋषि आ गए। राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और अपनी सारी दु:खभरी कहानी कह सुनाई। यह बात सुनकर गौतम ऋषि कहने लगे कि राजन तुम्हारे भाग्य से आज से सात दिन बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा नाम की एकादशी आएगी, तुम विधिपूर्वक उसका व्रत करो।
गौतम ऋषि ने कहा कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। इस प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय अंतर्ध्यान हो गए। राजा ने उनके कथनानुसार एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत व जागरण किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए।
इसी दिन इनके पुत्र को एक सांप ने काट लिया और मरे हुए पुत्र को लेकर इनकी पत्नी श्मशान में दाह संस्कार के लिए आई। राजा हरिश्चन्द्र ने सत्यधर्म का पालन करते हुए पत्नी से भी पुत्र के दाह संस्कार हेतु कर मांगा। इनकी पत्नी के पास कर चुकाने के लिए धन नहीं था इसलिए उसने अपनी सारी का आधा हिस्सा फाड़कर राजा का दे दिया।
राजा ने जैसे ही सारी का टुकड़ा अपने हाथ में लिया आसमान से फूलों की वर्षा होने लगी। देवगण राजा हरिश्चन्द्र की जयजयकार करने लगे। इन्द्र ने कहा कि हे राजन् आप सत्यनिष्ठ व्रत की परीक्षा में सफल हुए। आप अपना राज्य स्वीकार कीजिए।
स्वर्ग से बाजे बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा। व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: राज्य मिल गया। अंत में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग को गया।
अजा एकादशी व्रत विधि
जिस अजा एकादशी के व्रत से राजा हरिश्चन्द्र के पूर्व जन्म के पाप कट गए और खोया हुए राज्य हुआ पुनः प्राप्त हुआ वह अजा एकादशी व्रत इस वर्ष 1 सितम्बर को है। जो व्यक्ति इस व्रत को रखना चाहते हैं उन्हें दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए ताकि व्रत के दौरान मन शुद्घ रहे।
एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय के समय स्नान ध्यान करके भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाकर, फलों तथा फूलों से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। भगवान की पूजा के बाद विष्णु सहस्रनाम अथवा गीता का पाठ करना चाहिए।
व्रती के लिए दिन में निराहार एवं निर्जल रहने का विधान है। लेकिन शास्त्र यह भी कहता है कि बीमार और बच्चे फलाहार कर सकते हैं।
सामान्य स्थिति में रात्रि में भगवान की पूजा के बाद जल और फल ग्रहण कर सकते हैं। इस व्रत में रात्रि जागरण करने का बड़ा महत्व है। द्वादशी तिथि के दिन प्रातः ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। यह ध्यान रखें कि द्वादशी के दिन बैंगन नहीं खाएं।
अजा एकादशी का पुण्य
पुराणों में बताया गया है कि जो व्यक्ति श्रद्घापूर्वक अजा एकादशी का व्रत रखता है उसके पूर्व जन्म के पाप कट जाते हैं। इस जन्म में सुख-समृद्घि की प्राप्ति होती है। अजा एकादशी के व्रत से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। मृत्यु के पश्चात व्यक्ति उत्तम लोक में स्थान प्राप्त करता है।
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