फाल्गुन शुक्ल एकादशी को पद्मपुराण में आमलकी एकादशी कहा गया है। इसदिन आंवले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। जो लोग व्रत नहीं कर सकते हैं उन्हें आंवले का स्पर्श और सेवन कर लेना चाहिए। इससे भी अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। पुराण में बताया गया है कि इस पेड़ की जड़ में भगवान विष्णु, मध्य में भगवान शिव और ऊपर ब्रह्मा जी एवं शाखाओं और पत्तों पर भी अन्य देवी-देवताओं का वास होता है।
पद्म पुराण में आमलकी व्रतकथा विधि
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है कि आमलकी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु के थूकने से आंवला यानी आमलकी का पेड़ उत्पन्न हुआ था। इसलिए आमलकी एकादशी के दिन इसकी पूजा बहुत ही शुभफलदायी होती है। इस दिन भगवान विष्णु के परशुराम अवतार की पूजा का भी विधान पुराण में बताया गया है।
रंगभरी एकादशी
शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का देवी पार्वती से विवाह हुआ था और आमलकी एकादशी को देवी पार्वती का गौना हुआ था और वह अपने ससुराल आई थीं। देवी पार्वती के पति के घर आने पर शिवगणों ने रंग गुलाल से शिवजी के साथ रंगोत्सव मनाया था। इसलिए इसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं।
इस एकादशी के अवसर पर काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार किया जाता है और उन्हें दूल्हा बनाकर देवी पार्वती का गौणा उत्सव मनाया जाता है। भक्तगण रंगोत्सव मनाते हैं। इसलिए आमलकी एकादशी का महत्व शिव और विष्णु दोनों के भक्तों के लिए है।
एकादशी शुभ संयोग
साल 2018 में आमलकी एकादशी सोमवार को है जो शिवजी का दिन माना जाता है। इसलिए शिवभक्तों के लिए यह एकादशी विशेष महत्वपूर्ण हो गयी है। इसदिन आयुष्मान योग और रवियोग भी बना हुआ है जो बहुत ही शुभ फलदायी है। इस अवसर भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा से आयु और सुख सौभाग्य का लाभ मिल सकता है।
पद्पुराण में बताया गया है कि इस दिन व्रत करने से मनुष्य के द्वारा किए गए जाने-अनजाने पाप नष्ट हो जाते हैं और मुक्ति का राह आसान हो जाती है।
आमलकी एकादशी व्रत की कथा
मांधाता बोले कि हे वशिष्ठजी! यदि आप मुझ पर कृपा करें तो किसी ऐसे व्रत की कथा कहिए जिससे मेरा कल्याण हो। महर्षि वशिष्ठ बोले कि हे राजन्, सब व्रतों से उत्तम और अंत में मोक्ष देने वाले आमलकी एकादशी के व्रत का मैं वर्णन करता हूं। यह एकादशी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में होती है। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत का फल एक हजार गौदान के फल के बराबर होता है। अब मैं आपसे एक पौराणिक कथा कहता हूं, आप ध्यानपूर्वक सुनिए। एक वैदिश नाम का नगर था जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण आनंद सहित रहते थे। उस नगर में सदैव वेद ध्वनि गूंजा करती थी तथा पापी, दुराचारी तथा नास्तिक उस नगर में कोई नहीं था। उस नगर में चैतरथ नाम का चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था।
वह अत्यंत विद्वान तथा धर्मी था। उस नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र व कंजूस नहीं था। सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और आबाल-वृद्ध स्त्री-पुरुष एकादशी का व्रत किया करते थे। एक समय फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई। उस दिन राजा, प्रजा तथा बाल-वृद्ध सबने हर्षपूर्वक व्रत किया। राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से धात्री (आंवले) का पूजन करने लगे और इस प्रकार स्तुति करने लगे।
ऐसे रखें आमलकी एकादशी व्रत
आमलकी एकादशी व्रत के पहले दिन व्रती को दशमी की रात्रि में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
- आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें।
- तत्पश्चात निम्न मंत्र से संकल्प लेने के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें।
मम कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिकपातकोपपातकदुरित क्षयपूर्वक
श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीति
कामनायै आमलकी एकादशी व्रतमहं करिष्ये
भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें।
कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुरामजी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन-कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्तिसहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें।
आज क्या करें
व्रत उपवास के नियम का तो पालन करें ही, साथ ही आज के दिन आंवले के पेड़ का रोपण करना बहुत शुभ होता है। घर में सुख समृद्धि बनी रहती है एवं रोग-शोक से मुक्ति मिलती है। आंवले का पेड़ वैसे भी औषध रूप में अत्यंत प्रभावशाली है। इसे दूसरों को गिफ्ट भी कर सकते हैं। ऐसा करने से बह्रमा, विष्णु एवं महेश तीनो का आशीर्वाद प्राप्त होता है एवं समस्त समस्याओं से मुक्ति मिलती है। अमलाकी एकादशी के व्रत से मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। कहा जाता है ऐसा नहीं करने से वंश पर असर पड़ता है।
ये भूल कर भी न करें
एकादशी के दिन लहसुन, प्याज का सेवन करना भी वर्जित है। इसे गंध युक्त और मन में काम भाव बढ़ाने की क्षमता के कारण अशुद्ध माना गया है।
इसी प्रकार एकादशी और द्वादशी तिथि के दिन बैंगन खाना अशुभ होता है।
एकादशी के दिन मांस अौर मदिरा का सेवन करने वाले को नरक की यातनाएं झेलनी पड़ती है।
इस दिन सेम का सेवन भी नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन इसका सेवन संतान के लिए हानिकारक हो सकता है।
पद्म पुराण में आमलकी व्रतकथा विधि
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है कि आमलकी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु के थूकने से आंवला यानी आमलकी का पेड़ उत्पन्न हुआ था। इसलिए आमलकी एकादशी के दिन इसकी पूजा बहुत ही शुभफलदायी होती है। इस दिन भगवान विष्णु के परशुराम अवतार की पूजा का भी विधान पुराण में बताया गया है।
रंगभरी एकादशी
शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का देवी पार्वती से विवाह हुआ था और आमलकी एकादशी को देवी पार्वती का गौना हुआ था और वह अपने ससुराल आई थीं। देवी पार्वती के पति के घर आने पर शिवगणों ने रंग गुलाल से शिवजी के साथ रंगोत्सव मनाया था। इसलिए इसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं।
इस एकादशी के अवसर पर काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार किया जाता है और उन्हें दूल्हा बनाकर देवी पार्वती का गौणा उत्सव मनाया जाता है। भक्तगण रंगोत्सव मनाते हैं। इसलिए आमलकी एकादशी का महत्व शिव और विष्णु दोनों के भक्तों के लिए है।
एकादशी शुभ संयोग
साल 2018 में आमलकी एकादशी सोमवार को है जो शिवजी का दिन माना जाता है। इसलिए शिवभक्तों के लिए यह एकादशी विशेष महत्वपूर्ण हो गयी है। इसदिन आयुष्मान योग और रवियोग भी बना हुआ है जो बहुत ही शुभ फलदायी है। इस अवसर भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा से आयु और सुख सौभाग्य का लाभ मिल सकता है।
पद्पुराण में बताया गया है कि इस दिन व्रत करने से मनुष्य के द्वारा किए गए जाने-अनजाने पाप नष्ट हो जाते हैं और मुक्ति का राह आसान हो जाती है।
आमलकी एकादशी व्रत की कथा
मांधाता बोले कि हे वशिष्ठजी! यदि आप मुझ पर कृपा करें तो किसी ऐसे व्रत की कथा कहिए जिससे मेरा कल्याण हो। महर्षि वशिष्ठ बोले कि हे राजन्, सब व्रतों से उत्तम और अंत में मोक्ष देने वाले आमलकी एकादशी के व्रत का मैं वर्णन करता हूं। यह एकादशी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में होती है। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत का फल एक हजार गौदान के फल के बराबर होता है। अब मैं आपसे एक पौराणिक कथा कहता हूं, आप ध्यानपूर्वक सुनिए। एक वैदिश नाम का नगर था जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण आनंद सहित रहते थे। उस नगर में सदैव वेद ध्वनि गूंजा करती थी तथा पापी, दुराचारी तथा नास्तिक उस नगर में कोई नहीं था। उस नगर में चैतरथ नाम का चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था।
वह अत्यंत विद्वान तथा धर्मी था। उस नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र व कंजूस नहीं था। सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और आबाल-वृद्ध स्त्री-पुरुष एकादशी का व्रत किया करते थे। एक समय फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई। उस दिन राजा, प्रजा तथा बाल-वृद्ध सबने हर्षपूर्वक व्रत किया। राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से धात्री (आंवले) का पूजन करने लगे और इस प्रकार स्तुति करने लगे।
ऐसे रखें आमलकी एकादशी व्रत
आमलकी एकादशी व्रत के पहले दिन व्रती को दशमी की रात्रि में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
- आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें।
- तत्पश्चात निम्न मंत्र से संकल्प लेने के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें।
मम कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिकपातकोपपातकदुरित क्षयपूर्वक
श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीति
कामनायै आमलकी एकादशी व्रतमहं करिष्ये
भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें।
कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुरामजी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन-कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्तिसहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें।
आज क्या करें
व्रत उपवास के नियम का तो पालन करें ही, साथ ही आज के दिन आंवले के पेड़ का रोपण करना बहुत शुभ होता है। घर में सुख समृद्धि बनी रहती है एवं रोग-शोक से मुक्ति मिलती है। आंवले का पेड़ वैसे भी औषध रूप में अत्यंत प्रभावशाली है। इसे दूसरों को गिफ्ट भी कर सकते हैं। ऐसा करने से बह्रमा, विष्णु एवं महेश तीनो का आशीर्वाद प्राप्त होता है एवं समस्त समस्याओं से मुक्ति मिलती है। अमलाकी एकादशी के व्रत से मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। कहा जाता है ऐसा नहीं करने से वंश पर असर पड़ता है।
ये भूल कर भी न करें
एकादशी के दिन लहसुन, प्याज का सेवन करना भी वर्जित है। इसे गंध युक्त और मन में काम भाव बढ़ाने की क्षमता के कारण अशुद्ध माना गया है।
इसी प्रकार एकादशी और द्वादशी तिथि के दिन बैंगन खाना अशुभ होता है।
एकादशी के दिन मांस अौर मदिरा का सेवन करने वाले को नरक की यातनाएं झेलनी पड़ती है।
इस दिन सेम का सेवन भी नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन इसका सेवन संतान के लिए हानिकारक हो सकता है।