Sunday, April 22, 2018

मां बगलामुखी

लोक कल्याण के लिए मां बगलामुखी का अवतरण हुआ। तंत्र शास्त्र में बगलामुखी ही स्तम्भन शक्ति के नाम से जानी जाती हैं। बगलामुखी को ‘ब्रह्मास्त्र’ के नाम से भी जाना जाता है। शत्रुओं पर विजय आदि के लिए बगलामुखी की उपासना से बढ़कर और कोई उपासना नहीं है।काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्‍वरी।भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा। बगला सिद्ध विद्या च मातंगी कमलात्मिका एता दश महाविद्याः सिद्धविद्या प्रकीर्तिताः॥ शाक्त संप्रदाय में दस महाविद्याओं की उपासना का विस्तृत रूप से वर्णन है। ये महाविद्याएं सिद्ध मानी गयी हैं। इनके मन्त्र स्वतः सिद्घ हैं। इनका जप पुरश्‍चरण करके साधक सब कुछ प्राप्त कर सकता है। दस महाविद्याओं में अष्टम् महाविद्या बगलामुखी हैं।शत्रुनाशिनी श्री बगलामुखी का परिचय भौतिकरूप में शत्रुओं का शमन करने की इच्छा रखने वाली तथा आध्यात्मिक रूप में परमात्मा की संहार शक्ति हैं। पीताम्बरा विद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है।



दस महाविद्याओं में भी बगलामुखी के बारे में विशेष लिखा गया है और कहा गया है कि यह शिव की त्रि-शक्ति है

सत्य काली च श्री विद्या कमला भुवनेश्‍वरी।
सिद्ध विद्या महेशनि त्रिशक्तिबर्गला शिवे॥ 

दुर्लभ ग्रंथ ‘मंत्र महार्णव’ में भी लिखा है कि – ब्रह्मास्त्रं च प्रवक्ष्यामि सदयः प्रत्यय कारणम। यस्य स्मरण मात्रेण पवनोऽपि स्थिरायते॥ 

बगलामुखी मंत्र को सिद्ध करने के बाद मात्र स्मरण से ही प्रचण्ड पवन भी स्थिर हो जाता है। भगवती बगलामुखी को ‘पीताम्बरा’ भी कहा गया है। इसलिए इनकी साधना में पीले वस्त्रों, पीले फूलों व पीले रंग का विशेष महत्व है किन्तु साधक के मन में यह प्रश्‍न उठता है, कि इस सर्वाधिक प्रचण्ड महाविद्या भगवती बगलामुखी का विशेषण पीताम्बरा क्यों? वह इसलिए कि यह पीताम्बर पटधारी भगवान् श्रीमन्नारायण की अमोघ शक्ति, उनकी शक्तिमयी सहचरी हैं। सांख्यायन तन्त्र के अनुसार बगलामुखी को सिद्घ विद्या कहा गया है। तंत्र शास्त्र में इसे ब्रह्मास्त्र, स्तंभिनी विद्या, मंत्र संजीवनी विद्या तथा प्राणी प्रज्ञापहारका एवं षट्कर्माधार विद्या के नाम से भी अभिहित किया गया है।सांख्यायन तंत्र के अनुसार कलौ जागर्ति पीताम्बरा अर्थात् कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीताम्बरा की साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि व्याधि से त्रस्त मानव मां पीताम्बरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण कर सकता है।बगलामुखी के ध्यान में बताया गया है कि – ये सुधा समुद्र के मध्य स्थित मणिमय मंडप में रत्नमय सिंहासन पर विराजमान हैं। ये पीत वर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले पुष्पों की माला धारण करती हैंं इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्गर है।इन्हीं की शक्ति पर तीनों लोक टिके हुए हैं। विष्णु पत्नी सारे जगत की अधिष्ठात्री ब्रह्म स्वरूप हैं। तंत्र में शक्ति के इसी रूप को श्री बगलामुखी महाविद्या कहा गया है। इनका आविर्भाव प्रथम युग में बताया गया है।



हरिद्रा झील से उत्पत्ति 

मां बगलामुखी के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्माण्डीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे सम्पूर्ण विश्‍व नष्ट होने लगा। इससे चारों ओर हाहाकार मच गया और सभी लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देखकर भगवान विष्णु चिंतित हो गए । इस समस्या का कोई हल न पाकर वे भगवान शिव का स्मरण करने लगे तब भगवान शिव ने उनसे कहा कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता । अत: आप उनकी शरण में जाएं तब भगवान विष्णु ने सौराष्ट्र क्षेत्र के हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंचकर कठोर तप किया। भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया। देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुईं और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करती महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ । उस तेज ने इधर-उधर फैलकर उस भीषण तूफान का अंत कर दिया। जिस रात्रि को देवी के हृदय से वह तेज निकला, उस रात्रि का नाम वीर रात्रि पड़ा। उस समय आकाश तारों से अत्यंत सुशोभित था। उस दिन चतुर्दशी और मंगलवार था। पंच मकार से सेवित देवी जनित तेज से दूसरी त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या ब्रह्मास्त्र विद्या उत्पन्न हुई। उस ब्रह्मास्त्र विद्या का तेज विष्णु से उत्पन्न तेज में विलीन हुआ और फिर वह तेज विद्या और अनु विद्या में विलीन हुआ। इस प्रकार लोक कल्याण के लिए मां बगलामुखी का अवतरण हुआ।



विनाश का स्तम्भन

उस समय चतुर्दशी की रात्रि को आद्या शक्ति देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्रैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर विष्णु को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रुक सका। देवी बगलामुखी को वीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्रं महारुद्र कहा जाता है इसीलिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं। वस्तुतः यह ब्रह्मशास्त्र विद्या है तथा श्रीविद्या से अभिन्न है। ‘आम्नाय भेद’ तंत्र शास्त्र में इसका पूर्ण वर्णन है। साधक अपनी साधना द्वारा अपनी कामना को पूर्ण करता हुआ ब्रह्म सायुज्यता प्राप्त करता है। इसीलिए कहा गया है देवी पादयुगार्चकानां भोगश्‍च मोक्षश्‍च करस्थ एव।इस कलिकाल में यही सिद्घ विद्या है तथा भक्तों के कष्टों का निवारण करने में समर्थ हैं। देवी पीताम्बरा की साधना दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों के शमन के साथ ही सृष्टि में महापरिवर्तन लाने में समर्थ है।बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुल्हन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तम्भन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है । इस विद्या का उपयोग दैवीय प्रकोप की शांति और समृद्धि के लिए पौष्टिक कर्म के साथ-साथ आभिचारिक कर्म के लिए भी होता है।तंत्र का ब्रह्मास्त्र यजुर्वेद की काष्ठक संहिता के अनुसार दसों दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, सुंदर स्वरूपधारिणी विष्णु पत्नी त्रिलोक जगत् की ईश्‍वरी मानोता कही जाती हैं। स्तम्भनकारिणी शक्ति व्यक्त और अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार पृथ्वीरूपा शक्ति हैं। बगला उसी स्तम्भनशक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं। शक्तिरूपा बगला की स्तम्भन शक्ति से द्युलोक वृष्टि प्रदान करता है। इसी शक्ति से आदित्य मंडल ठहरा हुआ है और इसी से स्वर्ग लोक भी स्तम्भित है। तंत्र में वही स्तम्भन शक्ति बगलामुखी के नाम से जानी जाती है। जिसे ‘ब्रह्मास्त्र’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐहिक या पारलौकिक देश अथवा समाज में अरिष्टों के दमन और शत्रुओं के शमन में बगलामुखी के मंत्र के समान कोई मंत्र फलदायी नहीं है। चिरकाल से साधक इन्हीं महादेवी का आश्रय लेते आ रहे हैं। इनके बड़वामुखी, जातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद्भानुमुखी पांच मंत्र भेद हैं। ‘कुंडिका तंत्र’ में बगलामुखी के जप के विधान पर विशेष प्रकाश डाला गया है। ‘मुंडमाला तंत्र’ में तो यहां तक कहा गया है कि इनकी सिद्धि के लिए नक्षत्रादि विचार और कालशोधन की भी आवश्यकता नहीं है। बगला महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं। इस आम्नाय में शक्ति केवल पूज्या मानी जाती हैं, भोग्या नहीं। यह महारुद्र की शक्ति हैं। इस शक्ति की आराधना करने से साधक के शत्रुओं का शमन तथा कष्टों का निवारण होता है। यों तो बगलामुखी देवी की उपासना सभी कार्यों में सफलता प्रदान करती है, परंतु विशेष रूप से युद्ध, विवाद, शास्त्रार्थ, मुकदमे, और प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करने, अधिकारी या मालिक को अनुकूल करने, अपने ऊपर हो रहे अकारण अत्याचार से बचने और किसी को सबक सिखाने के लिए बगलामुखी देवी का वैदिक अनुष्ठान सर्वश्रेष्ठ, प्रभावी एवं उपयुक्त होता है। असाध्य रोगों से छुटकारा पाने, बंधनमुक्त होने, संकट से उबरने और नवग्रहों के दोष से मुक्ति के लिए भी इस मंत्र की साधना की जा सकती है। वैदिक एवं पौराणिक शास्त्रों में श्री बगलामुखी महाविद्या का वर्णन अनेक स्थलों पर मिलता है। शत्रु के विनाश के लिए जिन कृत्यों (टोना-टोटका) को भूमि में गाड़ देते हैं, उनका नाश करने वाली महाशक्ति श्री बगलामुखी ही हैं। श्री बगला देवी को शक्ति भी कहा गया है। ॠषियों की बगलामुखी साधना शत्रुओं पर विजय आदि के लिए बगलामुखी की उपासना से बढ़कर और कोई उपासना नहीं है। इसका प्रयोग प्राचीनकाल से ही हो रहा है। श्री प्रजापति ने इनकी उपासना वैदिक रीति से की और वह सृष्टि की रचना करने में सफल हुए। उन्होंने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया। फिर सनत्कुमार ने श्री नारद को और श्री नारद ने यह ज्ञान सांख्यायन नामक परमहंस को दिया। संख्यायन ने बगला तंत्र की रचना की जो 36 अध्यायों में विभक्त है। श्री परशुराम जी ने इस विद्या के विभिन्न स्वरूप बताए। महर्षि च्यवन ने इसी विद्या के प्रभाव से इंद्र के वज्र को स्तम्भित किया था। श्रीमद् गोविन्द पादाचार्य की समाधि में विघ्न डालने वाली रेवा नदी का स्तंभन श्री शंकराचार्य ने इसी विद्या के बल पर किया था। तात्पर्य यह कि इस तंत्र के साधक का शत्रु चाहे कितना भी प्रबल क्यों न हो, वह साधक से पराजित अवश्य होता है। अतः किसी मुकदमे में विजय, षड्यंत्र से रक्षा तथा राजनीति में सफलता के लिए इसकी साधना अवश्य करनी चाहिए। इनकी आराधना मात्र से साधक के सारे संकट दूर हो जाते हैं, शत्रु परास्त होते हैं और श्री वृद्धि होती है। बगलामुखी का जप साधारण व्यक्ति भी कर सकता है, लेकिन इनकी तंत्र उपासना किसी योग्य व्यक्ति के सान्निध्य में ही करनी चाहिए। कलियुग में आसुरी शक्तियों के बढ़ जाने से अशांति व अनेक उत्पात हो रहे हैं। इनके नाश व दुष्टों का स्तम्भन करने में श्री पीताम्बरा की उपासना करना ही श्रेष्ठ है। बगलामुखी महाविद्या दस महाविद्याओं में से एक हैं। इन्हें ब्रह्मास्त्र विद्या, षड्कर्माधार विद्या, स्तम्भिनी विद्या, त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है।




माता बगलामुखी साधक के मनोरथों को पूरा करती हैं। जो व्यक्ति मां बगलामुखी की पूजा-उपासना करता है, उसका अहित या अनीष्ट चाहने वालों का शमन स्वतः ही हो जाता है। मां भगवती बगलामुखी की साधना से व्यक्ति स्तंभन, आकर्षण, वशीकरण, विद्वेषण, मारण, उच्चाटन आदि के साथ अपनी मनचाही कामनाओं की पूर्ति करने में समर्थ होता है। मां बगलामुखी की मुख्य पीठ दतिया (मध्य प्रदेश) में ग्वालियर व झांसी के मध्य है। यह पीतांबरा शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में वनखंडी, गंगरेट और कोटला में, मध्य प्रदेश में नलखेड़ा में, छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव में, उत्तर प्रदेश में वाराणसी में और महाराष्ट्र में मुंबई में मुम्बादेवी नाम से इनके मुख्य शक्तिपीठ हैं।

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