भाद्रपद के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं। इस बार पड़ने वाली एकादशी को अन्नदा एकादशी भी कहते हैं। कहते हैं कि इस विधिपूर्वक व्रत तथा रात्रि जागरण करने से समस्त पाप नष्ट हो कर स्वर्गलोक को प्राप्ति होती है।
इस व्रत में एकादशी की कथा सुनने भर से ही अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। यदि आप भी भगवान विष्णु जी का आर्शीवाद प्राप्त करना चाहते हैं इस तिथि और मुहूर्त के हिसाब से ही पूजा करें।
अजा एकादशी के बारे में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि, 'हे प्रभु! आप मुझ अजा एकादशी के बारे में बताएं. इस पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अर्जुन भाद्रपद में कृष्णपक्ष में आने वाली एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं. यह एकादशी सभी पापों को नष्ट करने वाली और अत्यंत शुभ फल देने वाली है. इसदिन व्रत रखकर विष्णु भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा करने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है.
राजा हरिश्चन्द्र को वापस मिल गया था राजपाट
सतयुग में सूर्यवंशी चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र हुए जो बड़े सत्यवादी थे. एक बार उन्होंने अपने वचन की खातिर अपना सम्पूर्ण राज्य राजऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया. दक्षिणा देने के लिए अपनी पत्नी एवं पुत्र को ही नहीं स्वयं तक को दास के रूप में एक चाण्डाल को बेच डाला. इस विपरीत परिस्थिति में भी राजा हरिश्चंद्र ने सत्य और धर्म का रास्ता नहीं छोड़ा.
चाण्डाल का सेवन करते हुए एक दिन राजा यह सोचने लगे कि इस परिस्थिति से मुझे कब छुटकारा मिलेगा. वह इस प्रकार चिंतन में थे कि उनके सामने एक दिन गौतम ऋषि आ गए. राजा ने उनसे अपनी पूरी व्यथा सुनाई. गौतम ऋषि राजा की पूरी बात सुनी और बहुत दुखी हुए. उन्होंने राजा को अजा एकादशी करने की सलाह दी. उन्होंने राजा से कहा, हे राजन- भाद्रपद में कृष्णपक्ष की एकादशी व्रत का अनुष्ठान विधि पूर्वक करो और समस्त रात्रि जागरण करके भगवान का स्मरण करो. इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी पाप क्षय हो जाएंगे. और तुम सभी प्रकार के कष्टो से छूट जाओगे.
इस प्रकार राजा को उपदेश देकर गौतम ऋषि वहां से चले गए. गौतम ऋषि ने जिस प्रकार राजा को व्रत करने की विधि बताई थी, उसी प्रकार राजा ने व्रत का अनुष्ठान किया और सारी रात जागरण करते हुए भगवान के नाम का स्मरण करते रहे. इस प्रकार राजा को अपना राजपाट, पत्नी और बच्चा सब वापस मिल गया और वह सुखी-सुखी जीवन व्यतीत करने लगा.
इस दिन व्रत रखने का भी विधान है. कहते हैं कि व्रत में एकादशी की कथा सुनने भर से ही अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त हो जाता है. यदि आप भी भगवान विष्णु जी का आर्शीवाद प्राप्त करना चाहते हैं तो तिथि और मुहूर्त के हिसाब से ही पूजा करें. जानें, अजा एकादशी व्रत की विधि और शुभ मुहूर्त....
तिथि और मुहूर्त:
अजा एकादशी व्रत तिथि : 6 सितंबर 2018
पारण का समय – 7 सितंबर को 06:06 से 08:35 बजे तक
एकादशी तिथि कब शुरू होगी – 05 सितंबर 2018 को 15:01 बजे
एकादशी तिथि समाप्त – 06 सितंबर को 12:15 बजे
ऐसे रखें अजा एकादशी का व्रत
नित्यक्रिया से मुक्त हो कर घर की साफ-सफाई करें. उसके बाद शरीर पर तिल और मिट्टी का लेप लगा कर कुशा से स्नान करें. नहाने के बाद भगवान विष्णु जी की पूजा करें.
अजा एकादशी पूजा विधि
आज भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है. पूजा करने के लिए सबसे पहले एक साफ जगह चुन कर वहां धान्य रखें और फिर उस पर कुम्भ स्थापित करें. कुम्भ को लाल रंग के वस्त्र से सजा कर स्थापित करें. इसके बाद कुम्भ की पूजा करें और इसके पश्चात कुम्भ के ऊपर श्री विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें. इस दौरान व्रत का संकल्प करें. संकल्प लेते वक्त धूप, दीप और पुष्प से भगवान श्री विष्णु की पूजा करें.
ना करें ये काम
एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए. मन चंचल होता है और प्रभु भक्ति से एकाग्र हटता है. पान, तम्बाकू, जर्दा, सुपारी, शराब आदि नशीली वस्तुओं का सेवन ना करें. दातुन वर्जित होता है. पेड़ की डाली ना तोड़ें. एकादशी की रात सोना नहीं चाहिए. बैठकर भजन कीर्तन करना चाहिए. रात्रि जागरण के नाम पर जुआ ना खेलें. झूठ ना बोलें. क्रोध ना करें. उपवास करें या नहीं, पर ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करें. छोटी या बड़ी किसी भी प्रकार की चोरी ना करें. किसी प्रकार हिंसा या चुगली ना करें.
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