इंडियन एस्ट्रोलॉजी में वैवाहिक जीवन का भविष्य नक्षत्र मिलान के द्वारा जाना जाता है। उत्तर भारत में इसके अंतर्गत आठ मेलापक या कूट को मिलाया जाता है - वर्ण, वैश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट तथा नाड़ी। हर कूट के लिए एक-एक पॉइंट्स के बढ़ते क्रम में एक मिलाप निर्धारित है। इस तरह कुल 36 गुण (वर्ण-1 वैश्य-2 तारा-3 योनि-4 ग्रहमैत्री-5 गण-6 भकूट -7 नाड़ी-8= 36) होते हैं जिनका होने वाले वर-वधू की कुंडली में मिलान किया जाता है।इनमें अंतिम के तीन गुण सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इनके कुल गुण मिलकर सभी 8 कूट में सबसे ज्यादा (21= नाड़ी-8 भकूत-7 गण-6) और सभी गुणों का 58 प्रतिशत होते हैं। यही कारण है कि कुंडली मिलान में इन तीन को 'महादोष' कहा गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ब्रह्मांड में कुल 27 नक्षत्र माने गए हैं और इन 27 नक्षत्रों को 3 नाड़ियों में बांटा गया है - आदि, मध्य तथा अंत्य। कुंडली मिलान करते हुए अगर वर-वधू दोनों ही आदि-आदि, मध्य-मध्य अथवा अंत्य-अंत्य में आएं, तो उनके साथ को नाड़ी दोष युक्त माना जाता है। इस तरह नाड़ीकूट के अंतर्गत उन्हें कोई पॉइंट भी नहीं मिलता। इसी तरह अगर इस मिलान में वर-वधू अलग-अलग नक्षत्र के हों, तो उन्हें पूरे 8 पॉइंट्स मिलते हंं और उन्हें नाड़ी दोष से मुक्त माना जाता है।
नारद पुराण के अनुसार भले ही वर-वधू के अन्य गुण मिल रहे हों, लेकिन अगर नाड़ी दोष उत्पन्न हो रहा है तो इसे किसी भी हाल में नकारा नहीं जा सकता क्योंकि यह वैवाहिक जीवन के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होता है। ऐसे रिश्ते या तो नर्क समान गुजरते हैं या बेहद दुखद हालातों में टूट जाते हैं, यहां तक कि जोड़े में किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है। वाराहमिहिर के अनुसार अगर वर-वधू की कुंडली में ‘आदि दोष’ हो, तो उनका तलाक निश्चित है। इसी प्रकार ‘मध्य दोष’ होने पर दोनों की ही मृत्यु हो सकती है। ‘अन्य दोष’ हो तो वैवाहिक जीवन बेहद कष्टकर गुजरता है या दोनों में किसी एक की मृत्यु हो जाती है और उनका वो एकाकी जीवन भी सामान्य से अधिक कष्टदायक होता है।
‘आदि दोष’ में जहां पति की मृत्यु हो सकती है, ‘मध्य’ पति-पत्नी दोनों के लिए मृत्युकारक होता है और ‘अन्य दोष’ पत्नी की मृत्यु का कारक बनाता है। इस प्रकार वैवाहिक जीवन के लिए नाड़ी दोष का होना हर प्रकार से बस जीवन को दुखी और शोकाकुल बनाता है। आज जोड़ियां बनाने में कुंडली मिलान करना जरूरी नहीं माना जाता, लेकिन इस प्रकार कई बार अनजाने में ऐसी भी जोड़ियां बन सकती हैं जो हर प्रकार से जीवन में दुखों का सामना करते हैं। इन्हीं में एक है वर-वधू की कुंडली में ‘नाड़ी दोष’ का होना।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ब्रह्मांड में कुल 27 नक्षत्र माने गए हैं और इन 27 नक्षत्रों को 3 नाड़ियों में बांटा गया है - आदि, मध्य तथा अंत्य। कुंडली मिलान करते हुए अगर वर-वधू दोनों ही आदि-आदि, मध्य-मध्य अथवा अंत्य-अंत्य में आएं, तो उनके साथ को नाड़ी दोष युक्त माना जाता है। इस तरह नाड़ीकूट के अंतर्गत उन्हें कोई पॉइंट भी नहीं मिलता। इसी तरह अगर इस मिलान में वर-वधू अलग-अलग नक्षत्र के हों, तो उन्हें पूरे 8 पॉइंट्स मिलते हंं और उन्हें नाड़ी दोष से मुक्त माना जाता है।
नारद पुराण के अनुसार भले ही वर-वधू के अन्य गुण मिल रहे हों, लेकिन अगर नाड़ी दोष उत्पन्न हो रहा है तो इसे किसी भी हाल में नकारा नहीं जा सकता क्योंकि यह वैवाहिक जीवन के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होता है। ऐसे रिश्ते या तो नर्क समान गुजरते हैं या बेहद दुखद हालातों में टूट जाते हैं, यहां तक कि जोड़े में किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है। वाराहमिहिर के अनुसार अगर वर-वधू की कुंडली में ‘आदि दोष’ हो, तो उनका तलाक निश्चित है। इसी प्रकार ‘मध्य दोष’ होने पर दोनों की ही मृत्यु हो सकती है। ‘अन्य दोष’ हो तो वैवाहिक जीवन बेहद कष्टकर गुजरता है या दोनों में किसी एक की मृत्यु हो जाती है और उनका वो एकाकी जीवन भी सामान्य से अधिक कष्टदायक होता है।
‘आदि दोष’ में जहां पति की मृत्यु हो सकती है, ‘मध्य’ पति-पत्नी दोनों के लिए मृत्युकारक होता है और ‘अन्य दोष’ पत्नी की मृत्यु का कारक बनाता है। इस प्रकार वैवाहिक जीवन के लिए नाड़ी दोष का होना हर प्रकार से बस जीवन को दुखी और शोकाकुल बनाता है। आज जोड़ियां बनाने में कुंडली मिलान करना जरूरी नहीं माना जाता, लेकिन इस प्रकार कई बार अनजाने में ऐसी भी जोड़ियां बन सकती हैं जो हर प्रकार से जीवन में दुखों का सामना करते हैं। इन्हीं में एक है वर-वधू की कुंडली में ‘नाड़ी दोष’ का होना।
No comments:
Post a Comment