चैत्र मास की कृष्ण एकादशी को पापमोचनी एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है . इस दिन व्रत रखने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है एवं समस्त विघ्नों में विजय की प्राप्ति होती है. इस एकादशी के दिन नारायण भगवान के चतुर्भुज स्वरूप का पूजन किया जाता है. पापमोचनी एकादशी के महात्म्य का विवरण स्कन्द पुराण में भी मिलता है. इस व्रत को करने से आपके कई जन्मों के पापों से आपको मुक्ति मिलती है एवं मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है. या व्रत समस्त विपदाओं से मुक्ति दिलवाने वाला व्रत है.
पौराणिक कथा
प्राचीन समय में चैत्ररथ नामक वन को वरदान मिला था. वह एक रमणीय स्थल के रूप में जागृत वन था. वहां कभी फूल पौधे मुरझाते नहीं धे एवं सभी जगहसदर फूलों से बस हुआ मनमोहक वन था. इस वन में देवलोक की अप्सराएं वास करती थीं एवं अपना समय व्यतीत करती थीं. वहीं देवलोक से देव गान भीइस वन में विचारने आते थे. काम देव भी इस वन में ज़्यादा भ्रमण करते थे . इसी वन में ऋषि मेधावी भी अपनी तपस्या में लीन थे. शिव भक्त ऋषि मेधावीको शिवभक्ति में घोर तप में लीन देख कामदेव से रहा नहीं गया, ऋषि के पास में ही वीणा एवं गायन में लीन उन्होंने अप्सरा मंज़ुघोशा को देखा.
अब तो शिवजी से रूष्ट कामदेव के अंदर ऋषि के शिव तप तो देख ईर्ष्या की भावना जागृत हुई , उन्होंने अपनी काम शक्ति से अप्सरा मंज़ुघोशा की भौवों को अपना धनुषबनाया एवं उनके नेत्रों की प्रत्यंचा छड़ा कर महर्षि तंद्रा को भेदा. महर्षि का ध्यान अप्सरा मंज़ुघोशा की मधुर वाणी से भंग हुआ . कामदेव के मोहन अस्त्र सेप्रभावित हो , सामने अप्सरा मंज़ुघोशा की सुंदरता को देख वह मंत्रमुग्ध हो गए. अप्सरा मंज़ुघोशा की सुंदरता पर आसक्त हो वह मंज़ुघोशा के साथ भोगविलास में समय व्यतीत करने लगे. उस सुंदर वन में, कामदेव की काम शक्ति से प्रभावित होकर महर्षि मेधावी अपनी तपस्या को भूल गए. अप्सरा मंज़ुघोशाकी प्रेमग्नि में ज्वलंत हो उनका समय बीतने लगा . ऐसे कई वर्ष बीतने के पश्चात अप्सरा मंज़ुघोशा ने वापस स्वर्ग लोक जाने की इच्छा ज़ाहिर की.
ऋषि हर बार उनकी बात टाल देते. फिर एक दिन अप्सरा ने फिर वापस स्वर्ग लोक जाने की गुहार की और कहा की हे ऋषिवर अब तो 57 वर्ष हो चुके हैं, अब में यहां और नहीं रुक सकती, मुझे वापस जाना ही पड़ेगा. अप्सरा की इस बात से अचानक से महर्षि की तंद्रा टूटी, जैसे ही उन्हें एहसास हुआ की उन्होंने इसअप्सरा से आसक्त हो अपने तप को छोड़ दिया एवं उनके सारे तप का बल ख़त्म होता चला गया है तो वह क्रोधित हो गए. अपने क्रोध में उन्हें अप्सरा को श्रापदिया , की तुमने मेरे तप को भंग कर प्रेतों जैसी नीच हरकत की है , इसीलिए अब तुम पिशाचीनी बन कर रहोगी .
अप्सरा घबरा गयी , उसकी बहुत विनती करने पर ऋषि का क्रोध शांत हुआ एवं ग्लानि भी हुई की इसमें इसका क्या दोष. ऋषि मेधावी ने उस अप्सरा से कहाकी में अब श्राप तो वापस नहीं ले सकता, हां तुम्हें इस योनि से मुक्त होने का उपाय अवश्य बता सकता हूं. अभी चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी पड़ेगी जिसे पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. भगवान विष्णु की पूजा एवं व्रत रख कर यथाविधि पूजन करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है . वहीतुम्हारे इस कृत्य एवं श्राप से तुम्हें मुक्त कर पाएंगे. ऐसा सुन अप्सरा, भगवान विष्णु का ध्यान कर चैत्र कृष्ण एकादशी की प्रतीक्षा करने लगी. उसने ऋषि के कहे अनुसार व्रत रखा एवं भगवान की कृपा से अपनेसमस्त पापों से मुक्त हो अप्सरा के रूप में वापस देवलोक में वास करने चली गयी.
इधर ग्लानि से युक्त महर्षि मेधावी अपने पिता ऋषि च्यवन के आश्रम में गए. शरीर से उनका तेज खत्म हो चुका था एवं वह वह वापस तप में लीन भी नहीं हो पारहे थे. अपने पुत्र की ऐसी मलिन हालत देख कर उन्होंने महर्षि मेधावी से पूछा की उन्होंने ऐसा क्या किया की उनका समस्त तेज़ नष्ट हो गया है. महर्षि मेधावीने अपनी दुखद अवस्था अपने पिता को सुनाई, ऐसा सुन कर ऋषि च्यवन ने उन्हें भी नारायण की शरण में जाने को कहा और बोला की एक अनारायण ही हैंजो उन्हें इन पापों से मुक्त कर सकते हैं. आने वाल चैत्र कृष्ण पक्ष को पापमोचनी एकादशी पड़ रही है एवं अगर वह विधि पूर्वरक इस व्रत का पालन करते हैंतो नारायण की कृपा से उनके पाप दल जाएंगे एवं वह वापस तेज़ युक्त हो अपनी आगे की तपस्या में लीन होने के लिए सक्षम हो पाएँगे .
अपने पिता की बात मां कर ऋषि मेधावी ने भी इस व्रत का पालन किया, द्वादशी की प्रातः काल व्रत का पारण करते ही, भगवान विष्णु की कृपा से वहपापमुक्त हो वापस तेजमायी हो गए एवं फिर से शिव भक्ति में लीन हो मोक्ष को प्राप्त हुए. सांसारिक कर्मों का पालन करते हुए भी जो भी इस व्रत को रखता है, इशवार की कृपा से उसे ब्रह्म हत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिल जाती है.
व्रत की विधि
दशमी की रात्रि को फलाहार भोजन आदि से निवृत हो , नारायण का ध्यान रख कर व्रत रखें . एकादशी के दिन सुबह शुद्ध होकर नारायण की चतुर्भुज मूर्ति कोस्नान आदि कर कर शोदशोपचार पूजन कर व्रत का संकल्प लें . इसके पश्चात “ओम नमो भगवते वासुदेवाए” मंत्र का 108 बार पाठ करें, उसके बाद आप भागवत कथा का पाठ भी कर सकते हैं. पुरुष सुक्तम पड़ना भी अत्यंत शुभ होता है. रात्रि को हल्का फलाहार लेकर रात भर जागरण करें, भागवान विष्णुकी महिमा का गान, भजन आदि करें. द्वादशी के दिन प्रातः काल उठ कर शुद्ध होकर नारायण पूजन के पश्चात , ग़रीबों को भोजन खिला कर व्रत को तोड़ें. जो भी रतजगा कर नारायण के ध्यान में लीन रहता है, ऐसा माना जाता है की उसके समस्त पापों का तो नाश होता ही है साथ ही में सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है .
व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का होता है. एकादशी का नियमित व्रत रखने से मन कि चंचलता समाप्त होती है. धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है ,हार्मोन की समस्या भी ठीक होती है तथा मनोरोग दूर होते हैं. पापमोचनी एकादशी का व्रत आरोग्य,संतान प्राप्ति तथा प्रायश्चित के लिए किया जाने वाला व्रत है. इस व्रत से पूर्व कर्म के ऋण तथा राहु की समस्याएं भी दूर हो जाती हैं. यह चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. मौसम तथा स्वास्थ्य के दृष्टि से इस माह में जल का अधिक प्रयोग करने की सलाह दी जाती है अतः इस व्रत में जल का प्रयोग ज्यादा होता है.
इस व्रत को रखने के नियम
- यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है -निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत
- सामान्यतः निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए
- अन्य या सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए
- इस व्रत में दशमी को केवल एक बार सात्विक आहार ग्रहण करनी चाहिए
- एकादशी को प्रातः काल ही श्रीहरि का पूजन करना चाहिए
- अगर रात्रि जागरण करके श्री हरि की उपासना की जाय तो हर पाप का प्रायश्चित हो सकता है
- बेहतर होगा कि इस दिन केवल जल और फल का ही सेवन किया जाय
क्या करें कि पापमोचनी एकादशी के दिन ताकि पूर्व कर्मों के ऋण से छुटकारा मिले?
- प्रातःकाल स्नान करके एकादशी व्रत और पूजन का संकल्प लें
- सूर्य को अर्घ्य दें और केले के पौधे में जल डालें
- भगवान् विष्णु को पीले फूल अर्पित करें
- इसके बाद श्रीमद्भगवदगीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें
- चाहें तो श्री हरी के मंत्र का जाप भी कर सकते हैं
- मंत्र होगा - ॐ हरये नमः
- संध्याकाळ निर्धनों को अन्न का दान करें
पापमोचनी एकादशी के दिन किस प्रकार राहु की समस्या का निवारण करें?
- प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व पीपल के वृक्ष में जल डालें
- दिन भर जल और फल ग्रहण करके उपवास रक्खें
- सायंकाल पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करें और उसके तने में पीला सूत लपेटते जाएँ
- कम से कम सात बार परिक्रमा करें
- इसके बाद वहाँ पर दीपक जलाएं और सफ़ेद मिठाई अर्पित करें
- राहु की समस्या की समाप्ति की प्रार्थना करें
इस दिन किन-किन सावधानियों का पालन करें?
- तामसिक आहार व्यहार तथा विचार से दूर रहें
- भारी खाना खाने से बचाव करें
- बिना भगवान सूर्य को अर्घ्य दिए हुए दिन की शुरुआत न करें
- अर्घ्य केवल हल्दी मिले हुए जल से ही दें,रोली या दूध का प्रयोग न करें
- अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उपवास न रखें ,केवल प्रक्रियाओं का पालन करें
पापमोचिनी एकादशी 2018 तिथि व मुहूर्त
एकादशी व्रत तिथि - 13 मार्च 2018
पारण का समय - 06:36 से 08:57 बजे (14 मार्च 2018)
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त - 15:45 बजे
एकादशी तिथि प्रारम्भ = 11:13 बजे (12 मार्च 2018)
एकादशी तिथि समाप्त = 13:41 बजे (13 मार्च 2018)
पौराणिक कथा
प्राचीन समय में चैत्ररथ नामक वन को वरदान मिला था. वह एक रमणीय स्थल के रूप में जागृत वन था. वहां कभी फूल पौधे मुरझाते नहीं धे एवं सभी जगहसदर फूलों से बस हुआ मनमोहक वन था. इस वन में देवलोक की अप्सराएं वास करती थीं एवं अपना समय व्यतीत करती थीं. वहीं देवलोक से देव गान भीइस वन में विचारने आते थे. काम देव भी इस वन में ज़्यादा भ्रमण करते थे . इसी वन में ऋषि मेधावी भी अपनी तपस्या में लीन थे. शिव भक्त ऋषि मेधावीको शिवभक्ति में घोर तप में लीन देख कामदेव से रहा नहीं गया, ऋषि के पास में ही वीणा एवं गायन में लीन उन्होंने अप्सरा मंज़ुघोशा को देखा.
अब तो शिवजी से रूष्ट कामदेव के अंदर ऋषि के शिव तप तो देख ईर्ष्या की भावना जागृत हुई , उन्होंने अपनी काम शक्ति से अप्सरा मंज़ुघोशा की भौवों को अपना धनुषबनाया एवं उनके नेत्रों की प्रत्यंचा छड़ा कर महर्षि तंद्रा को भेदा. महर्षि का ध्यान अप्सरा मंज़ुघोशा की मधुर वाणी से भंग हुआ . कामदेव के मोहन अस्त्र सेप्रभावित हो , सामने अप्सरा मंज़ुघोशा की सुंदरता को देख वह मंत्रमुग्ध हो गए. अप्सरा मंज़ुघोशा की सुंदरता पर आसक्त हो वह मंज़ुघोशा के साथ भोगविलास में समय व्यतीत करने लगे. उस सुंदर वन में, कामदेव की काम शक्ति से प्रभावित होकर महर्षि मेधावी अपनी तपस्या को भूल गए. अप्सरा मंज़ुघोशाकी प्रेमग्नि में ज्वलंत हो उनका समय बीतने लगा . ऐसे कई वर्ष बीतने के पश्चात अप्सरा मंज़ुघोशा ने वापस स्वर्ग लोक जाने की इच्छा ज़ाहिर की.
ऋषि हर बार उनकी बात टाल देते. फिर एक दिन अप्सरा ने फिर वापस स्वर्ग लोक जाने की गुहार की और कहा की हे ऋषिवर अब तो 57 वर्ष हो चुके हैं, अब में यहां और नहीं रुक सकती, मुझे वापस जाना ही पड़ेगा. अप्सरा की इस बात से अचानक से महर्षि की तंद्रा टूटी, जैसे ही उन्हें एहसास हुआ की उन्होंने इसअप्सरा से आसक्त हो अपने तप को छोड़ दिया एवं उनके सारे तप का बल ख़त्म होता चला गया है तो वह क्रोधित हो गए. अपने क्रोध में उन्हें अप्सरा को श्रापदिया , की तुमने मेरे तप को भंग कर प्रेतों जैसी नीच हरकत की है , इसीलिए अब तुम पिशाचीनी बन कर रहोगी .
अप्सरा घबरा गयी , उसकी बहुत विनती करने पर ऋषि का क्रोध शांत हुआ एवं ग्लानि भी हुई की इसमें इसका क्या दोष. ऋषि मेधावी ने उस अप्सरा से कहाकी में अब श्राप तो वापस नहीं ले सकता, हां तुम्हें इस योनि से मुक्त होने का उपाय अवश्य बता सकता हूं. अभी चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी पड़ेगी जिसे पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. भगवान विष्णु की पूजा एवं व्रत रख कर यथाविधि पूजन करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है . वहीतुम्हारे इस कृत्य एवं श्राप से तुम्हें मुक्त कर पाएंगे. ऐसा सुन अप्सरा, भगवान विष्णु का ध्यान कर चैत्र कृष्ण एकादशी की प्रतीक्षा करने लगी. उसने ऋषि के कहे अनुसार व्रत रखा एवं भगवान की कृपा से अपनेसमस्त पापों से मुक्त हो अप्सरा के रूप में वापस देवलोक में वास करने चली गयी.
इधर ग्लानि से युक्त महर्षि मेधावी अपने पिता ऋषि च्यवन के आश्रम में गए. शरीर से उनका तेज खत्म हो चुका था एवं वह वह वापस तप में लीन भी नहीं हो पारहे थे. अपने पुत्र की ऐसी मलिन हालत देख कर उन्होंने महर्षि मेधावी से पूछा की उन्होंने ऐसा क्या किया की उनका समस्त तेज़ नष्ट हो गया है. महर्षि मेधावीने अपनी दुखद अवस्था अपने पिता को सुनाई, ऐसा सुन कर ऋषि च्यवन ने उन्हें भी नारायण की शरण में जाने को कहा और बोला की एक अनारायण ही हैंजो उन्हें इन पापों से मुक्त कर सकते हैं. आने वाल चैत्र कृष्ण पक्ष को पापमोचनी एकादशी पड़ रही है एवं अगर वह विधि पूर्वरक इस व्रत का पालन करते हैंतो नारायण की कृपा से उनके पाप दल जाएंगे एवं वह वापस तेज़ युक्त हो अपनी आगे की तपस्या में लीन होने के लिए सक्षम हो पाएँगे .
अपने पिता की बात मां कर ऋषि मेधावी ने भी इस व्रत का पालन किया, द्वादशी की प्रातः काल व्रत का पारण करते ही, भगवान विष्णु की कृपा से वहपापमुक्त हो वापस तेजमायी हो गए एवं फिर से शिव भक्ति में लीन हो मोक्ष को प्राप्त हुए. सांसारिक कर्मों का पालन करते हुए भी जो भी इस व्रत को रखता है, इशवार की कृपा से उसे ब्रह्म हत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिल जाती है.
व्रत की विधि
दशमी की रात्रि को फलाहार भोजन आदि से निवृत हो , नारायण का ध्यान रख कर व्रत रखें . एकादशी के दिन सुबह शुद्ध होकर नारायण की चतुर्भुज मूर्ति कोस्नान आदि कर कर शोदशोपचार पूजन कर व्रत का संकल्प लें . इसके पश्चात “ओम नमो भगवते वासुदेवाए” मंत्र का 108 बार पाठ करें, उसके बाद आप भागवत कथा का पाठ भी कर सकते हैं. पुरुष सुक्तम पड़ना भी अत्यंत शुभ होता है. रात्रि को हल्का फलाहार लेकर रात भर जागरण करें, भागवान विष्णुकी महिमा का गान, भजन आदि करें. द्वादशी के दिन प्रातः काल उठ कर शुद्ध होकर नारायण पूजन के पश्चात , ग़रीबों को भोजन खिला कर व्रत को तोड़ें. जो भी रतजगा कर नारायण के ध्यान में लीन रहता है, ऐसा माना जाता है की उसके समस्त पापों का तो नाश होता ही है साथ ही में सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है .
व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का होता है. एकादशी का नियमित व्रत रखने से मन कि चंचलता समाप्त होती है. धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है ,हार्मोन की समस्या भी ठीक होती है तथा मनोरोग दूर होते हैं. पापमोचनी एकादशी का व्रत आरोग्य,संतान प्राप्ति तथा प्रायश्चित के लिए किया जाने वाला व्रत है. इस व्रत से पूर्व कर्म के ऋण तथा राहु की समस्याएं भी दूर हो जाती हैं. यह चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. मौसम तथा स्वास्थ्य के दृष्टि से इस माह में जल का अधिक प्रयोग करने की सलाह दी जाती है अतः इस व्रत में जल का प्रयोग ज्यादा होता है.
इस व्रत को रखने के नियम
- यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है -निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत
- सामान्यतः निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए
- अन्य या सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए
- इस व्रत में दशमी को केवल एक बार सात्विक आहार ग्रहण करनी चाहिए
- एकादशी को प्रातः काल ही श्रीहरि का पूजन करना चाहिए
- अगर रात्रि जागरण करके श्री हरि की उपासना की जाय तो हर पाप का प्रायश्चित हो सकता है
- बेहतर होगा कि इस दिन केवल जल और फल का ही सेवन किया जाय
क्या करें कि पापमोचनी एकादशी के दिन ताकि पूर्व कर्मों के ऋण से छुटकारा मिले?
- प्रातःकाल स्नान करके एकादशी व्रत और पूजन का संकल्प लें
- सूर्य को अर्घ्य दें और केले के पौधे में जल डालें
- भगवान् विष्णु को पीले फूल अर्पित करें
- इसके बाद श्रीमद्भगवदगीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें
- चाहें तो श्री हरी के मंत्र का जाप भी कर सकते हैं
- मंत्र होगा - ॐ हरये नमः
- संध्याकाळ निर्धनों को अन्न का दान करें
पापमोचनी एकादशी के दिन किस प्रकार राहु की समस्या का निवारण करें?
- प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व पीपल के वृक्ष में जल डालें
- दिन भर जल और फल ग्रहण करके उपवास रक्खें
- सायंकाल पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करें और उसके तने में पीला सूत लपेटते जाएँ
- कम से कम सात बार परिक्रमा करें
- इसके बाद वहाँ पर दीपक जलाएं और सफ़ेद मिठाई अर्पित करें
- राहु की समस्या की समाप्ति की प्रार्थना करें
इस दिन किन-किन सावधानियों का पालन करें?
- तामसिक आहार व्यहार तथा विचार से दूर रहें
- भारी खाना खाने से बचाव करें
- बिना भगवान सूर्य को अर्घ्य दिए हुए दिन की शुरुआत न करें
- अर्घ्य केवल हल्दी मिले हुए जल से ही दें,रोली या दूध का प्रयोग न करें
- अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उपवास न रखें ,केवल प्रक्रियाओं का पालन करें
पापमोचिनी एकादशी 2018 तिथि व मुहूर्त
एकादशी व्रत तिथि - 13 मार्च 2018
पारण का समय - 06:36 से 08:57 बजे (14 मार्च 2018)
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त - 15:45 बजे
एकादशी तिथि प्रारम्भ = 11:13 बजे (12 मार्च 2018)
एकादशी तिथि समाप्त = 13:41 बजे (13 मार्च 2018)
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