माघ मेला हिन्दुओं का सर्वाधिक प्रिय धार्मिक एवं सांस्कृतिक मेला है। हिन्दू पंचांग के अनुसार १४ या १५ जनवरी को मकर संक्रांति के दिन माघ महीने में यह मेला आयोजित होता है। यह भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में मनाया जाता है। नदी या सागर स्नान इसका मुख्य उद्देश्य होता है।
धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा पारंपरिक हस्त शिल्प, भोजन और दैनिक उपयोग की पारंपरिक वस्तुओं की बिक्री भी की जाती है। धार्मिक महत्त्व के अलावा यह मेला एक विकास मेला भी है तथा इसमें राज्य सरकार विभिन्न विभागों के विकास योजनाओं को प्रदर्शित करती है। प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार इत्यादि स्थलों का माघ मेला प्रसिद्ध है। कहते हैं, माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी। वहीं भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महाम्त्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी। पद्म पुराण के महात्म्य के अनुसार-माघ स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं। इस प्रकार माघमेले का धार्मिक महत्त्व भी है।
मान्यता के अनुसार जब तारे दिख रहे हों उस समय का स्नान सबसे ज्यादा शुभ फल देता है और सूर्योदय के बाद का स्नान अधम फल देता है। कल्पवास करने वाले साधू महात्मा सूर्य की पहली किरण निकलने से पहले ही स्नान कर लेते है और उस समय आम जनता को प्रशासनिक अमला रोके रहता है, जब साधू महात्मा स्नान कर लेते है उसके बाद अन्य लोग स्नान करते हैं। भारत की विविधता को देखने का एक अनोखा अवसर है माघ मेला। इस मेले में ऐसे अद्भुत लोग देखने को मिलेंगे जो हम सब किस्सों कहानियों में पड़ते और सुनते हैं। नागा साधुओं का ऐसा रूप जो कही अन्य देखने को नहीं मिलेगा। अघोरियो की औघड़ साधना जो दुर्लभ है वो भी इस माघ मेले में जगह जगह देखने को मिल जाती है।
भारत में रहने वाले सभी साधू संत इस माघ मेले का इंतजार करते हैं और मेला लगने से पहले अपने अपने तम्बू लगा लेते है और विभिन्न तरह की साधनाओं में लग जाते हैं। भारत के हर कोने से इस मेले में श्रध्दालु आते हैं और कल्पवास करते है। कहा जाता है की माघ मेले में कल्पवास करने वाले को हजार अश्वमेघयज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है।
प्रयाग का माघ मेला
प्रयाग के मुख्य शहर को इलाहाबाद के नाम से जाना जाता है जो भारत के सर्वाधिक पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। प्रयाग का माघ मेला विश्व का सबसे बड़ा मेला है। हिन्दु पुराणों में, हिन्दु धर्म के अनुसार सृष्टि के सृजनकर्ता भगवान ब्रह्मा द्वारा इसे 'तीर्थ राज' अथवा तीर्थस्थलों का राजा कहा गया है, जिन्होंने तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर 'प्राकृष्ठ यज्ञ' संपन्न किया था। हमारे पवित्र धर्मग्रंथों - वेदों और रामायण तथा महाभारत जैसे महाकाव्यों और पुराणों में भी इस स्थान को 'प्रयाग' कहे जाने के साक्ष्य मिलते हैं। उत्तर भारत में जलमार्ग के द्वारा इस शहर के सामरिक महत्व को समझते हुए मुगल सम्राट अकबर ने पवित्र 'संगम' के किनारे एक शानदार किले का निर्माण कराया। प्रत्येक वर्ष जनवरी-फरवरी माह में यहां पवित्र 'संगम' के किनारे विश्व प्रसिद्ध माघ मेला आयोजित होता है, जो प्रत्येक जनवरी में वर्ष मकर संक्रांति को आरंभ होकर फरवरी में महा शिवरात्रि को समाप्त होता है।
इस मेले में सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि भारी तादाद में विदेशी भी नजर आते हैं। इस महीने की माघ पूर्णिमा को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन इलाहाबाद के संगम में स्नान करने से दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। माघ माह में चलने वाला यह स्नान पौष मास की पूर्णिमा से शुरू होकर माघ पूर्णिमा तक होता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण कल्पवासी होते हैं,को पूरे माघ मेले के दौरान मेले मेले में लगे कैम्पों में रहते हैं। इस माघ मेले में नागा बाबा, साधुयों को बड़ी तादाद में देखा जा सकता है, जो यहां संगम के तट पर डुबकी लगाने पहुंचते हैं।
ज्योतिषियों का मानना है की माघ महीने में प्रयाग में संगम में स्नान करने मात्र से विषम से विषम ग्रह दोष भी शांत हो जाता है। पुराणों के अनुसार ब्रंहा ने सृष्टी की रचना करने के बाद प्रथम यज्ञ प्रयाग में ही किया जिसके कारण इस जगह का नाम प्रयाग पड़ा। भगवान विष्णु ने प्रयाग को ही अपनी मुख्य भूमि चुना था।
माघ मेला में ठहरने के लिए सरकार द्वारा टेंट की उचित व्यवस्था की जाती है, ताकि यहां आने वाले श्रधालुयों को किसी तरीके की दिक्कत ना हो। उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके लोगों का कल्पवास करना अपने आप में एक रोमांच पैदा करता है। लगभग 10 डिग्री तापमान पर एक कपड़े के तम्बू में एक महीने तक ईश्वर की आराधना करना।सुबह सुबह बर्फ जैसे संगम के पानी में स्नान करना और अपने हाथों से खाना बना के खाना। इन सब घटनाओ को बिना आंखों से देखे कोई भरोसा नहीं कर सकता । लेकिन इस समय माघ मेले में ये सब घटनाएं आम हैं।
विदेशी सामजशास्त्री आज भी इस बात को लेकर अपना रिसर्च करते हैं की ऐसी कौन सी ताकत है जो इन लोगो को इस कड़ाके की ठण्ड में भी इस तरह के काम करने की प्रेरणा देती है और लाखों लोग एक साथ एक अस्थाई शहर के नागरिक बन जाते हैं।
धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा पारंपरिक हस्त शिल्प, भोजन और दैनिक उपयोग की पारंपरिक वस्तुओं की बिक्री भी की जाती है। धार्मिक महत्त्व के अलावा यह मेला एक विकास मेला भी है तथा इसमें राज्य सरकार विभिन्न विभागों के विकास योजनाओं को प्रदर्शित करती है। प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार इत्यादि स्थलों का माघ मेला प्रसिद्ध है। कहते हैं, माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी। वहीं भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महाम्त्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी। पद्म पुराण के महात्म्य के अनुसार-माघ स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं। इस प्रकार माघमेले का धार्मिक महत्त्व भी है।
मान्यता के अनुसार जब तारे दिख रहे हों उस समय का स्नान सबसे ज्यादा शुभ फल देता है और सूर्योदय के बाद का स्नान अधम फल देता है। कल्पवास करने वाले साधू महात्मा सूर्य की पहली किरण निकलने से पहले ही स्नान कर लेते है और उस समय आम जनता को प्रशासनिक अमला रोके रहता है, जब साधू महात्मा स्नान कर लेते है उसके बाद अन्य लोग स्नान करते हैं। भारत की विविधता को देखने का एक अनोखा अवसर है माघ मेला। इस मेले में ऐसे अद्भुत लोग देखने को मिलेंगे जो हम सब किस्सों कहानियों में पड़ते और सुनते हैं। नागा साधुओं का ऐसा रूप जो कही अन्य देखने को नहीं मिलेगा। अघोरियो की औघड़ साधना जो दुर्लभ है वो भी इस माघ मेले में जगह जगह देखने को मिल जाती है।
भारत में रहने वाले सभी साधू संत इस माघ मेले का इंतजार करते हैं और मेला लगने से पहले अपने अपने तम्बू लगा लेते है और विभिन्न तरह की साधनाओं में लग जाते हैं। भारत के हर कोने से इस मेले में श्रध्दालु आते हैं और कल्पवास करते है। कहा जाता है की माघ मेले में कल्पवास करने वाले को हजार अश्वमेघयज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है।
प्रयाग का माघ मेला
प्रयाग के मुख्य शहर को इलाहाबाद के नाम से जाना जाता है जो भारत के सर्वाधिक पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। प्रयाग का माघ मेला विश्व का सबसे बड़ा मेला है। हिन्दु पुराणों में, हिन्दु धर्म के अनुसार सृष्टि के सृजनकर्ता भगवान ब्रह्मा द्वारा इसे 'तीर्थ राज' अथवा तीर्थस्थलों का राजा कहा गया है, जिन्होंने तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर 'प्राकृष्ठ यज्ञ' संपन्न किया था। हमारे पवित्र धर्मग्रंथों - वेदों और रामायण तथा महाभारत जैसे महाकाव्यों और पुराणों में भी इस स्थान को 'प्रयाग' कहे जाने के साक्ष्य मिलते हैं। उत्तर भारत में जलमार्ग के द्वारा इस शहर के सामरिक महत्व को समझते हुए मुगल सम्राट अकबर ने पवित्र 'संगम' के किनारे एक शानदार किले का निर्माण कराया। प्रत्येक वर्ष जनवरी-फरवरी माह में यहां पवित्र 'संगम' के किनारे विश्व प्रसिद्ध माघ मेला आयोजित होता है, जो प्रत्येक जनवरी में वर्ष मकर संक्रांति को आरंभ होकर फरवरी में महा शिवरात्रि को समाप्त होता है।
इस मेले में सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि भारी तादाद में विदेशी भी नजर आते हैं। इस महीने की माघ पूर्णिमा को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन इलाहाबाद के संगम में स्नान करने से दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। माघ माह में चलने वाला यह स्नान पौष मास की पूर्णिमा से शुरू होकर माघ पूर्णिमा तक होता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण कल्पवासी होते हैं,को पूरे माघ मेले के दौरान मेले मेले में लगे कैम्पों में रहते हैं। इस माघ मेले में नागा बाबा, साधुयों को बड़ी तादाद में देखा जा सकता है, जो यहां संगम के तट पर डुबकी लगाने पहुंचते हैं।
ज्योतिषियों का मानना है की माघ महीने में प्रयाग में संगम में स्नान करने मात्र से विषम से विषम ग्रह दोष भी शांत हो जाता है। पुराणों के अनुसार ब्रंहा ने सृष्टी की रचना करने के बाद प्रथम यज्ञ प्रयाग में ही किया जिसके कारण इस जगह का नाम प्रयाग पड़ा। भगवान विष्णु ने प्रयाग को ही अपनी मुख्य भूमि चुना था।
माघ मेला में ठहरने के लिए सरकार द्वारा टेंट की उचित व्यवस्था की जाती है, ताकि यहां आने वाले श्रधालुयों को किसी तरीके की दिक्कत ना हो। उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके लोगों का कल्पवास करना अपने आप में एक रोमांच पैदा करता है। लगभग 10 डिग्री तापमान पर एक कपड़े के तम्बू में एक महीने तक ईश्वर की आराधना करना।सुबह सुबह बर्फ जैसे संगम के पानी में स्नान करना और अपने हाथों से खाना बना के खाना। इन सब घटनाओ को बिना आंखों से देखे कोई भरोसा नहीं कर सकता । लेकिन इस समय माघ मेले में ये सब घटनाएं आम हैं।
विदेशी सामजशास्त्री आज भी इस बात को लेकर अपना रिसर्च करते हैं की ऐसी कौन सी ताकत है जो इन लोगो को इस कड़ाके की ठण्ड में भी इस तरह के काम करने की प्रेरणा देती है और लाखों लोग एक साथ एक अस्थाई शहर के नागरिक बन जाते हैं।
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