ग्रहों के राजा सूर्य के गोचरवश राशि परिवर्तन करने अर्थात् एक राशि से दूसरी राशि में जाने को संक्रांति कहा जाता है। इसी क्रम में जब सूर्य गोचरवश अपनी राशि परिवर्तन कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
सूर्य एक राशि में 1 माह तक रहते हैं, अत: संक्रांति तो प्रतिमाह आती है लेकिन मकर राशि में सूर्य का गोचर 1 वर्ष के अन्तराल से होता है इसलिए मकर संक्रांति का पर्व प्रतिवर्ष पौष मास में आता है। वर्ष 2018, विक्रम संवत् 2074 में सूर्य 14 जनवरी की रात्रि 8 बजकर 8 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इस बार मकर संक्रांति को लेकर पंचांग भेद सामने आए हैं। कुछ पंचांग में सूर्य का राशि परिवर्तन 14 जनवरी की दोपहर 2 बजे के बाद होगा, जबकि कुछ पंचांग में रात 8 बजे बाद सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा।
अत: मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2018 को मनेगा। इसका पुण्यकाल 15 जनवरी 2018 को रहेगा। मकर संक्रांति का विशेष पुण्यकाल 14 जनवरी 2018 को रात्रि 8 बजकर 8 मिनिट से 15 जनवरी 2018 को दिन के 12 बजे तक रहेगा। वर्ष 2018, विक्रम संवत् 2074 में संक्रांति का वाहन महिष एवं उपवाहन ऊंट रहेगा। इस वर्ष संक्रांति काले वस्त्र एवं मृगचर्म की कंचुकी धारण किए, नीले आक के फ़ूलों की माला पहने, नीलमणि के आभूषण धारण किए, हाथ में तोमर आयुध लिए, दही का भक्षण करती हुई दक्षिण दिशा की ओर जाती हुई रहेगी।
उत्तर भारत में यह पर्व 'मकर सक्रान्ति के नाम से और गुजरात में 'उत्तरायण' नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति को पंजाब में लोहडी पर्व, उतराखंड में उतरायणी, गुजरात में उत्तरायण, केरल में पोंगल, गढवाल में खिचडी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है।
मकर संक्रान्ति के शुभ समय पर हरिद्वार, काशी आदि तीर्थों पर स्नानादि का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-उपासना भी की जाती है। शास्त्रीय सिद्धांतानुसार सूर्य पूजा करते समय श्वेतार्क तथा रक्त रंग के पुष्पों का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य की पूजा करने के साथ साथ सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
मकर संक्रान्ति के दिन दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता है। इस दिन व्यक्ति को यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल व गुड का दान करना चाहिए। तिल या फिर तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान करना शुभ रहता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी धर्म कार्य तभी फल देता है, जब वह पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाता है। जितना सहजता से दान कर सकते हैं, उतना दान अवश्य करना चाहिए।
मकर संक्रान्ति के साथ अनेक पौराणिक तथ्य जुड़े हुए हैं जिसमें से कुछ के अनुसार भगवान आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था। इसके अतिरिक्त देवताओं के दिनों की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्री व उतरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था।
कहा जाता है कि आज ही के दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान का विशेष महत्व माना गया है। मकर संक्रान्ति के दिन से मौसम में बदलाव आना आरम्भ होता है। यही कारण है कि रातें छोटी व दिन बड़े होने लगते हैं। सूर्य के उतरी गोलार्द्ध की ओर जाने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है। सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तपन बढ़ने लगती है। इसके फलस्वरुप प्राणियों में चेतना और कार्यशक्ति का विकास होता है।
मकर-संक्रान्ति के दिन देव भी धरती पर अवतरित होते हैं, आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, अंधकार का नाश व प्रकाश का आगमन होता है. इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्व है। इस दिन गंगा स्नान व सूर्योपासना पश्चात गुड़, चावल और तिल का दान श्रेष्ठ माना गया है।
मकर संक्रान्ति के दिन खाई जाने वाली वस्तुओं में जी भर कर तिलों का प्रयोग किया जाता है। तिल से बने व्यंजनों की खुशबू मकर संक्रान्ति के दिन हर घर से आती महसूस की जा सकती है। इस दिन तिल का सेवन और साथ ही दान करना शुभ होता है। तिल का उबटन, तिल के तेल का प्रयोग, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित जल का पान, तिल- हवन, तिल की वस्तुओं का सेवन व दान करना व्यक्ति के पापों में कमी करता है।
मकर संक्रांति हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। पौष माह में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब इस संक्रांति को मनाया जाता है। इसी दिन से सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ होती है इसलिए इसे उत्तरायणी के नाम से भी पुकारा जाता है। मकर संक्रांति का पर्व जनवरी माह की 13,14 या 15 तारीख को पूरे भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायन देवताओं का दिन, तो दक्षिणायन देवताओं की रात्रि होती है।
मकर संक्रांति से ही पृथ्वी पर शुभ और सुहाने दिनों की शरुआत होती है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम पर हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है जो माघ मेले के नाम से विख्यात है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से प्रारंभ होकर शिवरात्रि के आखिरी स्नान तक चलता है।
बिहार में मकर संक्रांति के व्रत को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी खाने एवं दान करने की प्रथा है। गंगा स्नान के पश्चात ब्राह्मणो एवं पूज्य व्यक्तियों में तिल एवं मिष्ठान के दान का विशेष महत्व है.
बंगाल में भी पवित्र स्नान के बाद तिल की प्रथा है। मकर संक्रांति पर गंगा सागर स्नान विश्व प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए वर्षों की तपस्या से के गंगा जी को पृथ्वी पर अवतरित होने पर विवश कर दिया था। मकर संक्रांति के दिन महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था और उनके पीछे पीछे चलते हुए गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में समा गई थीं।
तिल का महत्व
हमारे ऋषि मुनियों ने मकर संक्रांति पर्व पर तिल के प्रयोग को बहुत सोच समझ कर परंपरा का अंग बनाया है। कहते हैं इस दिन से दिन तिल भर बड़ा होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह शरद ऋतु के अनुकूल होता है। मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से तिल का विशेष महत्व है, इसीलिए हमारे तमाम धार्मिक तथा मांगलिक कार्यों में, पूजा अर्चना या हवन, यहां तक कि विवाहोत्सव आदि में भी तिल की उपस्थिति अनिवार्य रखी गई है।
तिल वर्षा ऋतु की खरीफ की फसल है। बुआई के बाद लगभग दो महीनों में इसके पौधे में फूल आने लगते हैं और तीन महीनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है। इसका पौधा 3-4 फुट ऊंचा होता है। इसका दाना छोटा व चपटा होता है। इसकी तीन किस्में काला, सफेद और लाल विशेष प्रचलित हैं। इनमें काला तिल पौष्टिक व सर्वोत्तम है। आयुर्वेद के छह रसों में से चार रस तिल में होते हैं, तिल में एक साथ कड़वा, मधुर एवं कसैला रस पाया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन ही असरकारी है सूर्य का यह खखोल्क मंत्र
प्रस्तुत मंत्र सूर्य का दिव्य और चमत्कारी मंत्र है। इस मंत्र को मकर संक्रांति के दिन पढ़ने से हर तरह के कार्य सिद्ध होते हैं। विशेषकर संतान प्राप्ति और रोजगार के लिए इस मंत्र का आश्चर्यजनक प्रभाव देखा गया है।
'ॐ नमः खखोल्काय'
भगवान सूर्य अपने सारथि 'अरुण" से इस मंत्र के विषय में कहते हैं- हे खगश्रेष्ठ। मेरे मंडल के विषय में सुनो। मेरा कल्याणमय मंडल "खखोल्क" नाम से विद्वानों के ज्ञान मंडल में और तीनों लोकों में विख्यात है। यह तीनों देवों एवं तीनों गुणों से परे एवं सर्वज्ञ है। यह सर्वशक्तिमान है। "ॐ" इस एकाक्षर मंत्र में यह मंडल अवस्थित है। जैसे घोर संसार-सागर अनादि है वैसे ही "खखोल्क" भी अनादि है और संसार-सागर का शोधक है।
जैसे व्याधियों की औषधि होती है वैसे ही यह मंत्र संसार-सागर के लिए औषधि है। मोक्ष चाहने वालों के लिए मुक्ति का साधन और सभी अर्थो का साधक है। खखोल्क नाम का यह मंत्र सदैव उच्चारण और स्मरण करने योग्य है। जिसके हृदय में "ॐ नमः खखोल्काय" मंत्र स्थित है उसी ने सब कुछ पढ़ा है सुना है और अनुष्ठित किया है, ऐसा समझना चाहिए। ।
मनीषियों ने इस खखोल्क मंत्र को "मार्तण्ड" के नाम से प्रतिष्ठापित किया है। इस मंत्र के प्रति श्रद्धानत् होने पर पुण्य प्राप्त होता है।
निम्नलिखित मंत्रों का जप तथा हवन करने से मंत्र सिद्धि, ईष्ट सिद्धि तथा समस्याओं का निवारण होता है-
'ॐ ह्रीं सूर्याय नम:।'
'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।'
ऐसे करें तिल का प्रयोग
मकर संक्रांति के दिन पर्व काल के समय में किसी भी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करना चाहिए। इसके पूर्व तिल के तेल की मालिश करना चाहिए तथा तिल्ली का उबटन लगाकर स्नान करने के पश्चात सूर्यदेव का पूजन करना चाहिए।
इस दिन वैदिक ब्राह्मणों को तांबे के कलश में तिल्ली भर कर उस पर गुड़ रखकर दान देने का महत्व है। साथ ही सौभाग्यवती महिलाओं को सौभाग्य सामग्री का दान करना चाहिए। इन दिनों निम्न 6 प्रकार से तिल का उपयोग करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
1. तिल स्नान
2. तिल की उबटन
3. तिलोदक
4. तिल का हवन
5. तिल का भोजन
6. तिल का दान
इस व्रत में तिल के उपयोग का बहुत महत्व है। इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट से मुक्ति मिलती है। साथ ही इस दिन लाल गाय को गुड़ व घास खिलाने का भी महत्व है। गाय को गुड़ व घास खिलाने के पश्चात पानी अवश्य ही पिलाना चाहिए, ऐसा करने से पितृ हम पर प्रसन्न होते हैं तथा जीवन को सुख में बदल देते हैं।
संक्रांति के पुण्यकाल में पवित्र नदियों में स्नान कर तिल व तिल से बने पदार्थों का दान करना श्रेयस्कर रहेगा। आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति का समस्त 12 राशियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
1. मेष- मेष राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार व्यापार में लाभ प्राप्त होगा। कार्यों में सफ़लता प्राप्त होगी। धन लाभ होगा। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
2. वृष-वृष राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार धन हानि की संभावना है। झूठे आरोप के कारण प्रतिष्ठा धूमिल होगी। कार्यों में असफ़लता प्राप्त होगी। रोग के कारण कष्ट होगा। पारिवारिक विवाद के कारण अशान्ति का वातावरण रहेगा।
3. मिथुन-मिथुन राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार विवाद के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। कोर्ट-कचहरी व मुकदमें में असफ़लता के योग हैं। धन का अपव्यय होगा। उच्च रक्तचाप के कारण कष्ट होगा। मान-प्रतिष्ठा में कमी आएगी।
4. कर्क- इस माह कर्क राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार दाम्पत्य सुख में हानि होगी। कार्यों में असफ़लता प्राप्त होगी। धन हानि एवं मानहानि होगी। सिर में पीड़ा के साथ-साथ शारीरिक कष्ट की संभावनाएं हैं।
5. सिंह-
इस माह सिंह राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार कार्यों में सफ़लता प्राप्त होगी। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी। रोगों से मुक्ति मिलेगी। राज्य से लाभ प्राप्त होगा। प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
6. कन्या-इस माह कन्या राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार मानसिक पीड़ा होगी। राज्याधिकारियों से विवाद होगा। सन्तान को कष्ट की संभावना है। धनहानि होगी। यात्रा में दुर्घटना की संभावना है।
7. तुला-
इस माह तुला राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार पारिवारिक विवाद के कारण कष्ट होगा। धनहानि व मानहानि होगी। यात्रा में कष्ट होगा। जमीन-जायदाद संबंधी मामलों में असफ़लता प्राप्त होगी। मानसिक अशांति के कारण कष्ट रहेगा।
8. वृश्चिक-
इस माह वृश्चिक राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार मित्रों से लाभ होगा। धन लाभ होगा। राज्याधिकारियों से अनुकूलता प्राप्त होगी। पदोन्नति की संभावना है। उच्च पद की प्राप्ति होगी। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी। प्रत्येक कार्य में सफ़लता मिलेगी। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
9. धनु-
इस माह धनु राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार व्यापार व धन सम्पत्ति में हानि का योग है। मित्रों व परिवारजनों से विवाद की सम्भावना है। सिर व आंखों में पीड़ा के कारण परेशानी रहेगी।
10.मकर- इस माह मकर राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार धन हानि के योग हैं। सम्मान व प्रतिष्ठा में कमी होगी।
11. कुंभ- इस माह कुंभ राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार स्थान परिवर्तन का योग बन रहा है। कार्यक्षेत्र में परेशानियां रहेंगी। गुप्त शत्रुओं के कारण हानि का योग है।
12.मीन- इस माह मीन राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार धन प्राप्ति का योग है। पदोन्नति के अवसर हैं। मान-सम्मान व प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
सूर्य एक राशि में 1 माह तक रहते हैं, अत: संक्रांति तो प्रतिमाह आती है लेकिन मकर राशि में सूर्य का गोचर 1 वर्ष के अन्तराल से होता है इसलिए मकर संक्रांति का पर्व प्रतिवर्ष पौष मास में आता है। वर्ष 2018, विक्रम संवत् 2074 में सूर्य 14 जनवरी की रात्रि 8 बजकर 8 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इस बार मकर संक्रांति को लेकर पंचांग भेद सामने आए हैं। कुछ पंचांग में सूर्य का राशि परिवर्तन 14 जनवरी की दोपहर 2 बजे के बाद होगा, जबकि कुछ पंचांग में रात 8 बजे बाद सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा।
अत: मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2018 को मनेगा। इसका पुण्यकाल 15 जनवरी 2018 को रहेगा। मकर संक्रांति का विशेष पुण्यकाल 14 जनवरी 2018 को रात्रि 8 बजकर 8 मिनिट से 15 जनवरी 2018 को दिन के 12 बजे तक रहेगा। वर्ष 2018, विक्रम संवत् 2074 में संक्रांति का वाहन महिष एवं उपवाहन ऊंट रहेगा। इस वर्ष संक्रांति काले वस्त्र एवं मृगचर्म की कंचुकी धारण किए, नीले आक के फ़ूलों की माला पहने, नीलमणि के आभूषण धारण किए, हाथ में तोमर आयुध लिए, दही का भक्षण करती हुई दक्षिण दिशा की ओर जाती हुई रहेगी।
उत्तर भारत में यह पर्व 'मकर सक्रान्ति के नाम से और गुजरात में 'उत्तरायण' नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति को पंजाब में लोहडी पर्व, उतराखंड में उतरायणी, गुजरात में उत्तरायण, केरल में पोंगल, गढवाल में खिचडी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है।
मकर संक्रान्ति के शुभ समय पर हरिद्वार, काशी आदि तीर्थों पर स्नानादि का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-उपासना भी की जाती है। शास्त्रीय सिद्धांतानुसार सूर्य पूजा करते समय श्वेतार्क तथा रक्त रंग के पुष्पों का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य की पूजा करने के साथ साथ सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
मकर संक्रान्ति के दिन दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता है। इस दिन व्यक्ति को यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल व गुड का दान करना चाहिए। तिल या फिर तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान करना शुभ रहता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी धर्म कार्य तभी फल देता है, जब वह पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाता है। जितना सहजता से दान कर सकते हैं, उतना दान अवश्य करना चाहिए।
मकर संक्रान्ति के साथ अनेक पौराणिक तथ्य जुड़े हुए हैं जिसमें से कुछ के अनुसार भगवान आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था। इसके अतिरिक्त देवताओं के दिनों की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्री व उतरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था।
कहा जाता है कि आज ही के दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान का विशेष महत्व माना गया है। मकर संक्रान्ति के दिन से मौसम में बदलाव आना आरम्भ होता है। यही कारण है कि रातें छोटी व दिन बड़े होने लगते हैं। सूर्य के उतरी गोलार्द्ध की ओर जाने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है। सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तपन बढ़ने लगती है। इसके फलस्वरुप प्राणियों में चेतना और कार्यशक्ति का विकास होता है।
मकर-संक्रान्ति के दिन देव भी धरती पर अवतरित होते हैं, आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, अंधकार का नाश व प्रकाश का आगमन होता है. इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्व है। इस दिन गंगा स्नान व सूर्योपासना पश्चात गुड़, चावल और तिल का दान श्रेष्ठ माना गया है।
मकर संक्रान्ति के दिन खाई जाने वाली वस्तुओं में जी भर कर तिलों का प्रयोग किया जाता है। तिल से बने व्यंजनों की खुशबू मकर संक्रान्ति के दिन हर घर से आती महसूस की जा सकती है। इस दिन तिल का सेवन और साथ ही दान करना शुभ होता है। तिल का उबटन, तिल के तेल का प्रयोग, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित जल का पान, तिल- हवन, तिल की वस्तुओं का सेवन व दान करना व्यक्ति के पापों में कमी करता है।
मकर संक्रांति हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। पौष माह में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब इस संक्रांति को मनाया जाता है। इसी दिन से सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ होती है इसलिए इसे उत्तरायणी के नाम से भी पुकारा जाता है। मकर संक्रांति का पर्व जनवरी माह की 13,14 या 15 तारीख को पूरे भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायन देवताओं का दिन, तो दक्षिणायन देवताओं की रात्रि होती है।
मकर संक्रांति से ही पृथ्वी पर शुभ और सुहाने दिनों की शरुआत होती है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम पर हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है जो माघ मेले के नाम से विख्यात है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से प्रारंभ होकर शिवरात्रि के आखिरी स्नान तक चलता है।
बिहार में मकर संक्रांति के व्रत को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी खाने एवं दान करने की प्रथा है। गंगा स्नान के पश्चात ब्राह्मणो एवं पूज्य व्यक्तियों में तिल एवं मिष्ठान के दान का विशेष महत्व है.
बंगाल में भी पवित्र स्नान के बाद तिल की प्रथा है। मकर संक्रांति पर गंगा सागर स्नान विश्व प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए वर्षों की तपस्या से के गंगा जी को पृथ्वी पर अवतरित होने पर विवश कर दिया था। मकर संक्रांति के दिन महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था और उनके पीछे पीछे चलते हुए गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में समा गई थीं।
तिल का महत्व
हमारे ऋषि मुनियों ने मकर संक्रांति पर्व पर तिल के प्रयोग को बहुत सोच समझ कर परंपरा का अंग बनाया है। कहते हैं इस दिन से दिन तिल भर बड़ा होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह शरद ऋतु के अनुकूल होता है। मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से तिल का विशेष महत्व है, इसीलिए हमारे तमाम धार्मिक तथा मांगलिक कार्यों में, पूजा अर्चना या हवन, यहां तक कि विवाहोत्सव आदि में भी तिल की उपस्थिति अनिवार्य रखी गई है।
तिल वर्षा ऋतु की खरीफ की फसल है। बुआई के बाद लगभग दो महीनों में इसके पौधे में फूल आने लगते हैं और तीन महीनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है। इसका पौधा 3-4 फुट ऊंचा होता है। इसका दाना छोटा व चपटा होता है। इसकी तीन किस्में काला, सफेद और लाल विशेष प्रचलित हैं। इनमें काला तिल पौष्टिक व सर्वोत्तम है। आयुर्वेद के छह रसों में से चार रस तिल में होते हैं, तिल में एक साथ कड़वा, मधुर एवं कसैला रस पाया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन ही असरकारी है सूर्य का यह खखोल्क मंत्र
प्रस्तुत मंत्र सूर्य का दिव्य और चमत्कारी मंत्र है। इस मंत्र को मकर संक्रांति के दिन पढ़ने से हर तरह के कार्य सिद्ध होते हैं। विशेषकर संतान प्राप्ति और रोजगार के लिए इस मंत्र का आश्चर्यजनक प्रभाव देखा गया है।
'ॐ नमः खखोल्काय'
भगवान सूर्य अपने सारथि 'अरुण" से इस मंत्र के विषय में कहते हैं- हे खगश्रेष्ठ। मेरे मंडल के विषय में सुनो। मेरा कल्याणमय मंडल "खखोल्क" नाम से विद्वानों के ज्ञान मंडल में और तीनों लोकों में विख्यात है। यह तीनों देवों एवं तीनों गुणों से परे एवं सर्वज्ञ है। यह सर्वशक्तिमान है। "ॐ" इस एकाक्षर मंत्र में यह मंडल अवस्थित है। जैसे घोर संसार-सागर अनादि है वैसे ही "खखोल्क" भी अनादि है और संसार-सागर का शोधक है।
जैसे व्याधियों की औषधि होती है वैसे ही यह मंत्र संसार-सागर के लिए औषधि है। मोक्ष चाहने वालों के लिए मुक्ति का साधन और सभी अर्थो का साधक है। खखोल्क नाम का यह मंत्र सदैव उच्चारण और स्मरण करने योग्य है। जिसके हृदय में "ॐ नमः खखोल्काय" मंत्र स्थित है उसी ने सब कुछ पढ़ा है सुना है और अनुष्ठित किया है, ऐसा समझना चाहिए। ।
मनीषियों ने इस खखोल्क मंत्र को "मार्तण्ड" के नाम से प्रतिष्ठापित किया है। इस मंत्र के प्रति श्रद्धानत् होने पर पुण्य प्राप्त होता है।
निम्नलिखित मंत्रों का जप तथा हवन करने से मंत्र सिद्धि, ईष्ट सिद्धि तथा समस्याओं का निवारण होता है-
'ॐ ह्रीं सूर्याय नम:।'
'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।'
ऐसे करें तिल का प्रयोग
मकर संक्रांति के दिन पर्व काल के समय में किसी भी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करना चाहिए। इसके पूर्व तिल के तेल की मालिश करना चाहिए तथा तिल्ली का उबटन लगाकर स्नान करने के पश्चात सूर्यदेव का पूजन करना चाहिए।
इस दिन वैदिक ब्राह्मणों को तांबे के कलश में तिल्ली भर कर उस पर गुड़ रखकर दान देने का महत्व है। साथ ही सौभाग्यवती महिलाओं को सौभाग्य सामग्री का दान करना चाहिए। इन दिनों निम्न 6 प्रकार से तिल का उपयोग करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
1. तिल स्नान
2. तिल की उबटन
3. तिलोदक
4. तिल का हवन
5. तिल का भोजन
6. तिल का दान
इस व्रत में तिल के उपयोग का बहुत महत्व है। इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट से मुक्ति मिलती है। साथ ही इस दिन लाल गाय को गुड़ व घास खिलाने का भी महत्व है। गाय को गुड़ व घास खिलाने के पश्चात पानी अवश्य ही पिलाना चाहिए, ऐसा करने से पितृ हम पर प्रसन्न होते हैं तथा जीवन को सुख में बदल देते हैं।
संक्रांति के पुण्यकाल में पवित्र नदियों में स्नान कर तिल व तिल से बने पदार्थों का दान करना श्रेयस्कर रहेगा। आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति का समस्त 12 राशियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
1. मेष- मेष राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार व्यापार में लाभ प्राप्त होगा। कार्यों में सफ़लता प्राप्त होगी। धन लाभ होगा। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
2. वृष-वृष राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार धन हानि की संभावना है। झूठे आरोप के कारण प्रतिष्ठा धूमिल होगी। कार्यों में असफ़लता प्राप्त होगी। रोग के कारण कष्ट होगा। पारिवारिक विवाद के कारण अशान्ति का वातावरण रहेगा।
3. मिथुन-मिथुन राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार विवाद के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। कोर्ट-कचहरी व मुकदमें में असफ़लता के योग हैं। धन का अपव्यय होगा। उच्च रक्तचाप के कारण कष्ट होगा। मान-प्रतिष्ठा में कमी आएगी।
4. कर्क- इस माह कर्क राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार दाम्पत्य सुख में हानि होगी। कार्यों में असफ़लता प्राप्त होगी। धन हानि एवं मानहानि होगी। सिर में पीड़ा के साथ-साथ शारीरिक कष्ट की संभावनाएं हैं।
5. सिंह-
इस माह सिंह राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार कार्यों में सफ़लता प्राप्त होगी। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी। रोगों से मुक्ति मिलेगी। राज्य से लाभ प्राप्त होगा। प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
6. कन्या-इस माह कन्या राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार मानसिक पीड़ा होगी। राज्याधिकारियों से विवाद होगा। सन्तान को कष्ट की संभावना है। धनहानि होगी। यात्रा में दुर्घटना की संभावना है।
7. तुला-
इस माह तुला राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार पारिवारिक विवाद के कारण कष्ट होगा। धनहानि व मानहानि होगी। यात्रा में कष्ट होगा। जमीन-जायदाद संबंधी मामलों में असफ़लता प्राप्त होगी। मानसिक अशांति के कारण कष्ट रहेगा।
8. वृश्चिक-
इस माह वृश्चिक राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार मित्रों से लाभ होगा। धन लाभ होगा। राज्याधिकारियों से अनुकूलता प्राप्त होगी। पदोन्नति की संभावना है। उच्च पद की प्राप्ति होगी। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी। प्रत्येक कार्य में सफ़लता मिलेगी। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
9. धनु-
इस माह धनु राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार व्यापार व धन सम्पत्ति में हानि का योग है। मित्रों व परिवारजनों से विवाद की सम्भावना है। सिर व आंखों में पीड़ा के कारण परेशानी रहेगी।
10.मकर- इस माह मकर राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार धन हानि के योग हैं। सम्मान व प्रतिष्ठा में कमी होगी।
11. कुंभ- इस माह कुंभ राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार स्थान परिवर्तन का योग बन रहा है। कार्यक्षेत्र में परेशानियां रहेंगी। गुप्त शत्रुओं के कारण हानि का योग है।
12.मीन- इस माह मीन राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार धन प्राप्ति का योग है। पदोन्नति के अवसर हैं। मान-सम्मान व प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
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