ज्योतिष विद्या में 27 नक्षत्रों का उल्लेख किया गया है । इन नक्षत्रों में से कुछ नक्षत्र काफी शुभ होते हैं वहीं कुछ नक्षत्र ऐसे भी होते हैं जिन्हें गंडमूल नक्षत्र अर्थात अशुभ नक्षत्रों की श्रेणी में रखा जाता है। सभी अशुभ नक्षत्रों में से भी मूल नक्षत्र को सबसे अधिक अशुभ माना जाता है। मान्यता ऐसी है कि जो भी व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेता है उसका पूरा जीवन बाधाओं और परेशानियों से घिरा रहता है। इस दोष को गंड मूल दोष कहा जाता है। जो भी जातक इस दोष का भार ढो रहा होता है उसका जीवन जैसे परेशानियों का ही दूसरा नाम बन जाता है।
माना जाता है गंड मूल में जन्में बच्चे के जन्म से लेकर 27 दिनों तक उसके पिता को उसका चेहरा नहीं देखना चाहिए। यह दोष व्यक्ति के जीवन में परेशानियां पैदा करने में पूर्ण रूप से सक्षम होता है। ज्योतिष शास्त्र के जरिए अगर समस्याओं को जाना जा सकता है तो उन समस्याओं के समाधान भी इस शास्त्र के जरिए ढूंढ़े जा सकते हैं। गंड मूल नक्षत्र के दोष को शांत करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि यह दोष होता है क्या है और इसके दुष्प्रभाव क्या-क्या हो सकते हैं।
अशुभ नक्षत्रों की श्रेणी में अश्वनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती शामिल हैं। सभी नक्षत्रों के चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरणों के अनुसार जातक के माता, पिता, भाई, बहन या परिवार के किसी अन्य सदस्य पर अपना प्रभाव दर्शाने लगते हैं। अशुभ नक्षत्र अपना बुरा प्रभाव दिखाते हैं और शुभ नक्षत्र शुभ। गंड मूल नक्षत्र में जन्में जातक ना सिर्फ अपने परिवार के लिए बल्कि स्वयं अपने लिए भी परेशानी बन जाते हैं।
ज्योतिष विद्या के जानकारों के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा, रेवती, अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा या मूल नक्षत्र में से कोई भी एक नक्षत्र स्थित है तो वह व्यक्ति गंड मूल नक्षत्र का माना जाएगा। वैज्ञानिक भाषा में बात करें तो उपरोक्त 6 नक्षत्रों के किसी एक विशेष चरण में चंद्रमा के स्थित होने से यह दोष बनता है। जैसे कि रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में, अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में, अश्लेषा चरण में चौथे चरण में, मघा नक्षत्र के पहले चरण में, ज्येष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण और मूल नक्षत्र के पहले नक्षत्र में जब चंद्रमा स्थित होता है तो गंड मूल दोष बनता है।
यह दोष चन्द्रमा के इन 6 नक्षत्रों के किसी एक नक्षत्र के किसी एक विशेष चरण में होने से ही बनता है, न कि उस नक्षत्र के चारों में से किसी भी चरण में स्थित होने से। भिन्न-भिन्न कुंडलियों में गंड मूल दोष, अपना भिन्न-भिन्न प्रभाव दर्शाता है। इसलिए इनके समाधान करने के लिए आगे बढ़ने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि चंद्रमा कौन से चरण में स्थित है और गंड मूल दोष कौनसा बनता है।
किसी भी जातक की कुंडली का गहन अध्ययन करने के बाद ही यह पता लगाया जा सकता है कि दोष कौनसा है, इसके बाद ही उपाय के लिए सोचना चाहिए।
अश्विनी नक्षत्र
अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति के पिता का जीवन अत्याधिक कष्टप्रद होता है। इसके अलावा इस दोष का सारा नकारात्मक प्रभाव जातक के पिता पर ही पड़ता है।
पिता को कष्ट
अश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए यह शुभ होता है जबकि दूसरे या तीसरे चरण में धन की हानि और माता को कष्ट के हालात विकसित होते हैं। चौथे चरण में जन्म हो तो पिता को कष्ट मिलने की संभावना प्रबल होती है।
मघा नक्षत्र
मघा नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति के बड़े भाई का जीवन कष्टप्रद होता है। दूसरा चरण छोटे भाई, तीसरा माता और चौथा पिता को कष्ट पहुंचाता है।
आश्लेषा नक्षत्र
आश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में जन्म हो तो शुभ ,दूसरे में धन हानि ,तीसरे में माता को कष्ट तथा चौथे में पिता को कष्ट होता है. यह फल पहले दो वर्षों में ही मिल जाता है.
मघा नक्षत्र
मघा नक्षत्र के पहले चरण में जन्म हो तो माता के पक्ष को हानि ,दूसरे में पिता को कष्ट तथा अन्य चरणों में शुभ होता है.
ज्येष्ठ नक्षत्र और मंगलवार
ज्येष्ठ नक्षत्र और मंगलवार के योग में जन्म लेने वाली कन्या अपने भाई के लिए घातक साबित होती है।
मूल नक्षत्र
मूल नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति के पिता को जीवनभर कष्ट मिलता है। दूसरे चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति की माता, तीसरे में धन की हानि होती है। जबकि चौथा चरण शुभ माना गया है।
रेवती नक्षत्र और रविवार
रेवती नक्षत्र और रविवार के योग में जन्म लेने वाली जन्या अपने ससुराल पक्ष का नाश करती है और फल विवाह के पहले चार वर्षों में ही प्राप्त हो जाता है।
गंड मूल नक्षत्रों की शांति के उपाय
जन्म किस नक्षत्र में होगा यह तो अपने हाथ में नहीं होता। इसलिए गंड मूल नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चे के जीवन को सुखमय बनाने और बाधारहित रखने का जिम्मा उसके परिवार का होता है।
मूल शांति
ज्योतिष विद्या के जानकारों के अनुसार परिवार वालों को अपनी संतान की मूल शांति करवानी चाहिए जिससे बहुत से दोष कम हो जाते हैं। इस दोष से मुक्ति पाने का तरीकी शांति पूजा है, जो सामान्य से थोड़ी ज्यादा तकनीकी होती है।
संबंधित देवता की पूजा
जन्म के नक्षत्रों के अनुसार संबंधित देवता की पूजा करने से नक्षत्रों के नकारात्मक प्रभाव में कमी आती है।
मंदिर में झंडा फहरना
अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्में जातकों को गणेश जी की अराधना करनी चाहिए। इसके अलावा माह के किसी भी एक बुधवार या गुरुवार को हरे रंग का वस्त्र या लहसूनिया, किसी भी एक वस्तु का दान करना चाहिए। इसके अलावा मंदिर में झंडा फहरना भी लाभदायक सिद्ध होगा।
बुध ग्रह की अराधना
आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्में जातकों के लिए बुध ग्रह की अराधना करना फलदायी साबित हो सकता है। इन नक्षत्रों में से किसी भी एक नक्षत्र जन्में व्यक्ति को बुधवार के दिन हरा धनिया, हरी सब्जी, पन्ना या कांसे के बर्तन का दान करना चाहिए।
गंड मूल शांति पूजा
इन सब उपायों के अलावा अन्य भी कुछ उपाय ऐसे हैं जो ज्यादा प्रचलित हैं। जैसे कि गंड मूल में जन्में बच्चे के जन्म के ठीक 27वें दिन गंड मूल शांति पूजा करवाई जानी चाहिए, इसके अलावा ब्राह्मणों को दान, दक्षिणा देने और उन्हें भोजन करवाना चाहिए। यदि किसी कारणवश पूजा ना करवाई जा सके तो महीने के जिस भी दिन चंद्रमा जन्म नक्षत्र में मौजूद हो उसी दिन शांति पूजा करवाई लेनी चाहिए।
माना जाता है गंड मूल में जन्में बच्चे के जन्म से लेकर 27 दिनों तक उसके पिता को उसका चेहरा नहीं देखना चाहिए। यह दोष व्यक्ति के जीवन में परेशानियां पैदा करने में पूर्ण रूप से सक्षम होता है। ज्योतिष शास्त्र के जरिए अगर समस्याओं को जाना जा सकता है तो उन समस्याओं के समाधान भी इस शास्त्र के जरिए ढूंढ़े जा सकते हैं। गंड मूल नक्षत्र के दोष को शांत करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि यह दोष होता है क्या है और इसके दुष्प्रभाव क्या-क्या हो सकते हैं।
अशुभ नक्षत्रों की श्रेणी में अश्वनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती शामिल हैं। सभी नक्षत्रों के चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरणों के अनुसार जातक के माता, पिता, भाई, बहन या परिवार के किसी अन्य सदस्य पर अपना प्रभाव दर्शाने लगते हैं। अशुभ नक्षत्र अपना बुरा प्रभाव दिखाते हैं और शुभ नक्षत्र शुभ। गंड मूल नक्षत्र में जन्में जातक ना सिर्फ अपने परिवार के लिए बल्कि स्वयं अपने लिए भी परेशानी बन जाते हैं।
ज्योतिष विद्या के जानकारों के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा, रेवती, अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा या मूल नक्षत्र में से कोई भी एक नक्षत्र स्थित है तो वह व्यक्ति गंड मूल नक्षत्र का माना जाएगा। वैज्ञानिक भाषा में बात करें तो उपरोक्त 6 नक्षत्रों के किसी एक विशेष चरण में चंद्रमा के स्थित होने से यह दोष बनता है। जैसे कि रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में, अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में, अश्लेषा चरण में चौथे चरण में, मघा नक्षत्र के पहले चरण में, ज्येष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण और मूल नक्षत्र के पहले नक्षत्र में जब चंद्रमा स्थित होता है तो गंड मूल दोष बनता है।
यह दोष चन्द्रमा के इन 6 नक्षत्रों के किसी एक नक्षत्र के किसी एक विशेष चरण में होने से ही बनता है, न कि उस नक्षत्र के चारों में से किसी भी चरण में स्थित होने से। भिन्न-भिन्न कुंडलियों में गंड मूल दोष, अपना भिन्न-भिन्न प्रभाव दर्शाता है। इसलिए इनके समाधान करने के लिए आगे बढ़ने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि चंद्रमा कौन से चरण में स्थित है और गंड मूल दोष कौनसा बनता है।
किसी भी जातक की कुंडली का गहन अध्ययन करने के बाद ही यह पता लगाया जा सकता है कि दोष कौनसा है, इसके बाद ही उपाय के लिए सोचना चाहिए।
अश्विनी नक्षत्र
अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति के पिता का जीवन अत्याधिक कष्टप्रद होता है। इसके अलावा इस दोष का सारा नकारात्मक प्रभाव जातक के पिता पर ही पड़ता है।
पिता को कष्ट
अश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए यह शुभ होता है जबकि दूसरे या तीसरे चरण में धन की हानि और माता को कष्ट के हालात विकसित होते हैं। चौथे चरण में जन्म हो तो पिता को कष्ट मिलने की संभावना प्रबल होती है।
मघा नक्षत्र
मघा नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति के बड़े भाई का जीवन कष्टप्रद होता है। दूसरा चरण छोटे भाई, तीसरा माता और चौथा पिता को कष्ट पहुंचाता है।
आश्लेषा नक्षत्र
आश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में जन्म हो तो शुभ ,दूसरे में धन हानि ,तीसरे में माता को कष्ट तथा चौथे में पिता को कष्ट होता है. यह फल पहले दो वर्षों में ही मिल जाता है.
मघा नक्षत्र
मघा नक्षत्र के पहले चरण में जन्म हो तो माता के पक्ष को हानि ,दूसरे में पिता को कष्ट तथा अन्य चरणों में शुभ होता है.
ज्येष्ठ नक्षत्र और मंगलवार
ज्येष्ठ नक्षत्र और मंगलवार के योग में जन्म लेने वाली कन्या अपने भाई के लिए घातक साबित होती है।
मूल नक्षत्र
मूल नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति के पिता को जीवनभर कष्ट मिलता है। दूसरे चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति की माता, तीसरे में धन की हानि होती है। जबकि चौथा चरण शुभ माना गया है।
रेवती नक्षत्र और रविवार
रेवती नक्षत्र और रविवार के योग में जन्म लेने वाली जन्या अपने ससुराल पक्ष का नाश करती है और फल विवाह के पहले चार वर्षों में ही प्राप्त हो जाता है।
गंड मूल नक्षत्रों की शांति के उपाय
जन्म किस नक्षत्र में होगा यह तो अपने हाथ में नहीं होता। इसलिए गंड मूल नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चे के जीवन को सुखमय बनाने और बाधारहित रखने का जिम्मा उसके परिवार का होता है।
मूल शांति
ज्योतिष विद्या के जानकारों के अनुसार परिवार वालों को अपनी संतान की मूल शांति करवानी चाहिए जिससे बहुत से दोष कम हो जाते हैं। इस दोष से मुक्ति पाने का तरीकी शांति पूजा है, जो सामान्य से थोड़ी ज्यादा तकनीकी होती है।
संबंधित देवता की पूजा
जन्म के नक्षत्रों के अनुसार संबंधित देवता की पूजा करने से नक्षत्रों के नकारात्मक प्रभाव में कमी आती है।
मंदिर में झंडा फहरना
अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्में जातकों को गणेश जी की अराधना करनी चाहिए। इसके अलावा माह के किसी भी एक बुधवार या गुरुवार को हरे रंग का वस्त्र या लहसूनिया, किसी भी एक वस्तु का दान करना चाहिए। इसके अलावा मंदिर में झंडा फहरना भी लाभदायक सिद्ध होगा।
बुध ग्रह की अराधना
आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्में जातकों के लिए बुध ग्रह की अराधना करना फलदायी साबित हो सकता है। इन नक्षत्रों में से किसी भी एक नक्षत्र जन्में व्यक्ति को बुधवार के दिन हरा धनिया, हरी सब्जी, पन्ना या कांसे के बर्तन का दान करना चाहिए।
गंड मूल शांति पूजा
इन सब उपायों के अलावा अन्य भी कुछ उपाय ऐसे हैं जो ज्यादा प्रचलित हैं। जैसे कि गंड मूल में जन्में बच्चे के जन्म के ठीक 27वें दिन गंड मूल शांति पूजा करवाई जानी चाहिए, इसके अलावा ब्राह्मणों को दान, दक्षिणा देने और उन्हें भोजन करवाना चाहिए। यदि किसी कारणवश पूजा ना करवाई जा सके तो महीने के जिस भी दिन चंद्रमा जन्म नक्षत्र में मौजूद हो उसी दिन शांति पूजा करवाई लेनी चाहिए।
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