तुलसी को हिन्दू धर्म में एक बेहद महत्वपूर्ण और पवित्र पौधा माना गया है। बड़े-बुजुर्ग अकसर यह कहते रहते हैं कि तुलसी की पत्तियों को दांत से नहीं चबाना चाहिए बल्कि इसे पूरी तरह निगल लेना चाहिए। अकसर लोग इसे अंधविश्वास मान लेते हैं लेकिन इस तथ्य को विज्ञान ने अलग आधार दिया है। वैज्ञानिकों के अनुसार तुलसी की पत्तियों में मामूली मात्रा में आर्सेनिक होता है। इसे अगर दांत से चबाया गया तो यह हमारे मुंह में मौजूद क्षार तत्वों से मिल जाएगा। इसके परिणामस्वरूप दांतों की सड़न और मसूड़ों की परेशानी उत्पन्न होती है। इसलिए इसे सीधा निगलना ही उत्तम है। मानवधर्मशास्त्र नामक प्राचीन धर्म ग्रंथ में यह उल्लिखित है कि बच्चे के जन्म के पश्चात उसकी नाड़ी को बालवृक्ष के नीचे दबा देना चाहिए या तांबे की धातु के अंदर संरक्षित रखना चाहिए। इसे एक ऐसा अंधविश्वास माना जाता है जिसके द्वारा बच्चे के भविष्य की नींव रखी जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह बात सत्य है कि मनुष्य की नाड़ी के भीतर मौजूद कोशिकाओं के भीतर यह क्षमता होती है कि अन्य कोशिकाओं को उत्पन्न कर सकें। इसे संरक्षित रखने का उद्देश्य शायद वर्तमान की क्लोनिंग तकनीक से जुड़ा है।
पारंपरिक मान्यताओं में कभी उत्तर दिशा की तरफ सिर करके नहीं सोना चाहिए। ऐसा करने से मस्तिष्क और स्वास्थ्य दोनों प्रभावित होते हैं। हमारे बड़े-बुजुर्ग शायद धरती की चुंबकीय शक्ति और हमारे शरीर की चुंबकीय शक्ति के संबंध से अच्छी तरह वाकिफ थे। वे ये बात जानते थे कि अगर हम उत्तर दिशा की तरफ सिर करके सोएंगे तो धरती और हमारे शरीर की चुंबकीय शक्ति एक-दूसरे का प्रतिरोध करेंगे, जिसका दुष्परिणाम हमारे शरीर और मस्तिष्क को भुगतना पड़ेगा। भारत समेत अन्य देशों में भी सूर्य ग्रहण को एक बुरे साये के रूप में देखा जाता है, जिसकी छाया पड़ने से मौत तक हो सकती है। इसलिए इस दौरान घर से बाहर निकलना निषेध करार दिया जाता है। सूर्य ग्रहण के समय कुछ ऐसी किरणें मौजूद होती हैं जो इंसान की आंखों के लिए खतरा साबित हो सकती हैं। सूरज की रोशनी के बिना वैसे भी धरती पर बैक्टीरिया और जर्म्स की तादाद के अलावा और कुछ नहीं है। यही वजह है कि ग्रहण के समय जब सूरज की रोशनी मौजूद नहीं होती तब किसी प्रकार का खाना-पीना या घर से बाहर निकलना मना है।
हिंदू धर्म में विवाहित स्त्रियों का माथे पर तिलक या बिंदी लगाना आवश्यक करार दिया गया है। इसे अकसर एक अंधविश्वास माना जाता है। प्राचीन समय में तिलक या बिंदी केसर, चंदन, फूलों की पत्तियां या रोली से लगाई जाती थी, जो स्वभाव से शीतल हैं। भौंहों के बीच तिलक लगाने का उद्देश्य यहां मौजूद शीर्षग्रंथियों को शीतलता प्रदान करना था।
हिन्दूओं की यह आम धारणा है कि मासिक धर्म के दौरान स्त्री अपवित्र होती है इसलिए उसे मंदिर या किसी पूजा स्थल में नहीं जाना चाहिए। पहले के समय में जब किसी भी प्रकार की सुख सुविधाएं मौजूद नहीं थीं तब महिलाओं को घर का भारी से भारी काम भी स्वयं करना पड़ता था। पानी भर कर लाना, कपड़े धोना आदि वह सब अपने हाथों से ही करती थीं। मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को आराम करने की जरूरत होती है, क्योंकि उनका शरीर काफी कमजोर हो जाता है। साथ ही उनके मूड भी बदलते रहते हैं। इसलिए उन्हें आराम देने के उद्देश्य से मासिक धर्म के दौरान पूजा-पाठ से दूर रखा जाता था।
ऐसा माना जाता है कि मंदिर में प्रवेश करने से पहले या दर्शन कर वापस लौटने पर घंटी अवश्य बजानी चाहिए। मंदिर की घंटी विभिन्न धातुओं के मिश्रण से बनी होती हैं, जैसे सीसा, तांबा, जिंक, निकल, मैग्नेशियम आदि। इनका मिश्रण कुछ ऐसा होता है कि मंदिर की घंटी की आवाज से मस्तिष्क के दाएं और बाएं, दोनों हिस्सों का आपस में संबंध बढ़ता है। घंटी की आवाज करीब 7 सेकेंड तक रहती है जो सकारात्मक सिहरन के साथ शरीर के सातों चक्रों को प्रभावित करती है। जैसे ही मंदिर की घंटी बजती है कुछ समय के लिए मस्तिष्क शांत होकर एक अलग ही अवस्था में पहुंच जाता है।
इसे एक आवश्यक नियम करार दिया गया है कि अगर कोई श्मशाम घाट से लौट रहा है तो उसे नहाना ही चाहिए। हमारे पूर्वज कभी दवाइयों के सहारे जीवित नहीं रहे, वे स्वस्थ और स्वच्छ जीवनशैली जीने में विश्वास रखते थे। मृत्यु के बाद शव गलने लगता है, जिसके परिणामस्वरूप उसमें अनेक कीटाणु अपना घर बना लेते हैं। यह स्वाभाविक सी बात है कि अगर कोई व्यक्ति श्मशान घाट से लौट रहा है तो उसका शरीर भी उन जीवाणुओं के संपर्क में आया होगा। इसलिए लौटकर नहाना आवश्यक है।
ऐसा कहा जाता है कि एक रोटी हमेशा बचा देनी चाहिए, इससे परिवार में संपन्नता और धन-धान्य का आगमन बना रहता है। परिवार कभी भूखा नहीं रहता। भारत में अतिथि देवो भव: की परंपरा है। पहले के जमाने में ना तो कोई खत आने की सुविधा थी, ना फोन ना मेल्स, ना मैसेज। ऐसे में अगर कोई अतिथि घर आ जाए तो उसके लिए खानपान की सुविधा अवश्य रहनी चाहिए। इसलिए अनपेक्षित मेहमान के लिए खाने का प्रबंध हमेशा रहता था।
पारंपरिक मान्यताओं में कभी उत्तर दिशा की तरफ सिर करके नहीं सोना चाहिए। ऐसा करने से मस्तिष्क और स्वास्थ्य दोनों प्रभावित होते हैं। हमारे बड़े-बुजुर्ग शायद धरती की चुंबकीय शक्ति और हमारे शरीर की चुंबकीय शक्ति के संबंध से अच्छी तरह वाकिफ थे। वे ये बात जानते थे कि अगर हम उत्तर दिशा की तरफ सिर करके सोएंगे तो धरती और हमारे शरीर की चुंबकीय शक्ति एक-दूसरे का प्रतिरोध करेंगे, जिसका दुष्परिणाम हमारे शरीर और मस्तिष्क को भुगतना पड़ेगा। भारत समेत अन्य देशों में भी सूर्य ग्रहण को एक बुरे साये के रूप में देखा जाता है, जिसकी छाया पड़ने से मौत तक हो सकती है। इसलिए इस दौरान घर से बाहर निकलना निषेध करार दिया जाता है। सूर्य ग्रहण के समय कुछ ऐसी किरणें मौजूद होती हैं जो इंसान की आंखों के लिए खतरा साबित हो सकती हैं। सूरज की रोशनी के बिना वैसे भी धरती पर बैक्टीरिया और जर्म्स की तादाद के अलावा और कुछ नहीं है। यही वजह है कि ग्रहण के समय जब सूरज की रोशनी मौजूद नहीं होती तब किसी प्रकार का खाना-पीना या घर से बाहर निकलना मना है।
हिंदू धर्म में विवाहित स्त्रियों का माथे पर तिलक या बिंदी लगाना आवश्यक करार दिया गया है। इसे अकसर एक अंधविश्वास माना जाता है। प्राचीन समय में तिलक या बिंदी केसर, चंदन, फूलों की पत्तियां या रोली से लगाई जाती थी, जो स्वभाव से शीतल हैं। भौंहों के बीच तिलक लगाने का उद्देश्य यहां मौजूद शीर्षग्रंथियों को शीतलता प्रदान करना था।
हिन्दूओं की यह आम धारणा है कि मासिक धर्म के दौरान स्त्री अपवित्र होती है इसलिए उसे मंदिर या किसी पूजा स्थल में नहीं जाना चाहिए। पहले के समय में जब किसी भी प्रकार की सुख सुविधाएं मौजूद नहीं थीं तब महिलाओं को घर का भारी से भारी काम भी स्वयं करना पड़ता था। पानी भर कर लाना, कपड़े धोना आदि वह सब अपने हाथों से ही करती थीं। मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को आराम करने की जरूरत होती है, क्योंकि उनका शरीर काफी कमजोर हो जाता है। साथ ही उनके मूड भी बदलते रहते हैं। इसलिए उन्हें आराम देने के उद्देश्य से मासिक धर्म के दौरान पूजा-पाठ से दूर रखा जाता था।
ऐसा माना जाता है कि मंदिर में प्रवेश करने से पहले या दर्शन कर वापस लौटने पर घंटी अवश्य बजानी चाहिए। मंदिर की घंटी विभिन्न धातुओं के मिश्रण से बनी होती हैं, जैसे सीसा, तांबा, जिंक, निकल, मैग्नेशियम आदि। इनका मिश्रण कुछ ऐसा होता है कि मंदिर की घंटी की आवाज से मस्तिष्क के दाएं और बाएं, दोनों हिस्सों का आपस में संबंध बढ़ता है। घंटी की आवाज करीब 7 सेकेंड तक रहती है जो सकारात्मक सिहरन के साथ शरीर के सातों चक्रों को प्रभावित करती है। जैसे ही मंदिर की घंटी बजती है कुछ समय के लिए मस्तिष्क शांत होकर एक अलग ही अवस्था में पहुंच जाता है।
इसे एक आवश्यक नियम करार दिया गया है कि अगर कोई श्मशाम घाट से लौट रहा है तो उसे नहाना ही चाहिए। हमारे पूर्वज कभी दवाइयों के सहारे जीवित नहीं रहे, वे स्वस्थ और स्वच्छ जीवनशैली जीने में विश्वास रखते थे। मृत्यु के बाद शव गलने लगता है, जिसके परिणामस्वरूप उसमें अनेक कीटाणु अपना घर बना लेते हैं। यह स्वाभाविक सी बात है कि अगर कोई व्यक्ति श्मशान घाट से लौट रहा है तो उसका शरीर भी उन जीवाणुओं के संपर्क में आया होगा। इसलिए लौटकर नहाना आवश्यक है।
ऐसा कहा जाता है कि एक रोटी हमेशा बचा देनी चाहिए, इससे परिवार में संपन्नता और धन-धान्य का आगमन बना रहता है। परिवार कभी भूखा नहीं रहता। भारत में अतिथि देवो भव: की परंपरा है। पहले के जमाने में ना तो कोई खत आने की सुविधा थी, ना फोन ना मेल्स, ना मैसेज। ऐसे में अगर कोई अतिथि घर आ जाए तो उसके लिए खानपान की सुविधा अवश्य रहनी चाहिए। इसलिए अनपेक्षित मेहमान के लिए खाने का प्रबंध हमेशा रहता था।
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