Thursday, August 10, 2017

संकष्टी चर्तुथी

आज संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत है। यह चतुर्थी बहुला चतुर्थी या बहुला चौथ के नाम से भी चर्चित है। वैसे तो संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी का व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है, लेकिन साल में माघ, श्रावण, मार्गशीर्ष और भाद्रपद के महीने में संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी के व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन गणपति के एकदंत रूप की पूजा का विधान है।



भादो मास की इस चतुर्थी का व्रत रखने से सब तरह के संकटों से छुटकारा मिलता है और आपकी इच्छा पूरी होती हैं। साथ ही संतान सुख की प्राप्ति और उसकी लंबी आयु की कामना के लिए माताओं को यह व्रत अवश्य रखना चाहिए।

शुभ मुहूर्त

चुर्थी तिथि कल रात 11 बजकर 27 मिनट से लग गई है। जो कि आज रात 10 बजकर 35 मिनट तक रहेगी।

पूजा विधि

गणेश जी की मिट्टी की मूर्ती, कलश, चंदन, रोली, अबीर, धूपबत्ती, सिंदूर, कपूर, फल-फूल, 108 दूब, घी का दीपक, पान-सुपारी, पंचामृत, बेसन के लड्‌डू का प्रसाद, चौक पूरने के लिए आटा, चावल, गंगा जल, इत्र तथा हवन सामग्री।  इस दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान आदि के बाद दाएं हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इस व्रत में पूरा दिन बिना अन्न के रहने का विधान है और शाम के समय गणेश जी की विधि-विधान से पूजा करने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करने पर ही व्रत तोड़ा जाता है।

शाम के समय फिर से नहा-धोकर, साफ कपड़े पहनकर एक साफ स्थान पर या मंदिर में ही आटे से चौक पूरकर गणेश जी की मिट्टी से बनी मूर्ति को मिट्टी के कलश पर स्थापित करें और भगवान को नये वस्त्र चढ़ाएं। उसके बाद धूप-दीप, गंध, फूल, अक्षत, रोली आदि से गणेश जी का पूजन करें और बेसन के लड्डूओं या मोदक का भोग लगाएं।

गणेश पूजा में एक बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि गणेश जी को कभी भी तुलसी पत्र ना चढ़ाएं। इस तरह गणेश भगवान की पूजा के बाद चन्द्रमा के उगने पर उन्हें अक्षत, जल और भोग से अर्घ्य दें।

स्मृति कौस्तुभ के पृष्ठ 171 से 177, व्रतरत्नाकर के पृष्ठ 120 से 127 और धर्मसिन्धु के पृष्ठ 74 के अनुसार- चतुर्थी के दिन चन्द्रोदय अर्थात् सूर्यास्त के बाद 8 घटिकाओं के समय गणेश-प्रतिमा पूजा, कलश-स्थापना, 16 उपचार, 1008, 108, 28 या 8 मोदकों का निर्माण, दिन भर उपवास या चन्द्रोदय होने तक भोजन ग्रहण न करना, जीवन भर या 21 वर्षों तक या एक वर्ष तक व्रत, दान तथा 21 ब्राहम्णों को भोजन कराना चाहिए। कहा जाता है कि तारकासुर को हराने के लिए शिव जी ने भी इस व्रत को किया था।  

इस दिन गाय और बछड़ा पूजन का भी विशेष महत्व है। आज शाम के समय गाय और उसके बछड़े की पूजा जरूर करें और उन्हें जौ व सत्तू का भोग लगाएं। व्रत के पारण में भी यही भोग लिया जाता है और चन्द्रदेव को भी इसी भोग का अर्घ्य दिया जाता है। माना जाता है कि इस दिन गेहूं एवं चावल से बनी चीज़ों को ग्रहण नहीं करना चाहिए। साथ ही दूध और दूध से बने पदार्थों का सेवन करना भी वर्जित है। इस दिन गाय के दूध पर केवल उसके बच्चे, यानी बछड़े का ही अधिकार होता है।

स्थान आधारित संकष्टी चतुर्थी के दिन

यह जानना महत्वपूर्ण है कि संकष्टी चतुर्थी के उपवास का दिन दो शहरों के लिए अलग-अलग हो सकता है। यह जरुरी नहीं है कि दोनों शहर अलग-अलग देशों में हों क्योंकि यह बात भारत वर्ष के दो शहरों के लिए भी मान्य है। संकष्टी चतुर्थी के लिए उपवास का दिन चन्द्रोदय पर निर्धारित होता है। जिस दिन चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र उदय होता है उस दिन ही संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। इसीलिए कभी कभी संकष्टी चतुर्थी का व्रत, चतुर्थी तिथि से एक दिन पूर्व, तृतीया तिथि के दिन पड़ जाता है।

क्योंकि चन्द्र उदय का समय सभी शहरों के लिए अलग-अलग होता है इसीलिए संकष्टी चतुर्थी के व्रत की तालिका का निर्माण शहर की भूगोलिक स्थिति को लेकर करना अत्यधिक जरुरी है।

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