Tuesday, January 30, 2018

खग्रास ग्रस्तोदय चन्द्रग्रहण 31 जनवरी 2018

हिंदू धर्म में चंद्र ग्रहण एक महत्वपूर्ण क्रिया मानी जाती है। चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन ही होता है। चंद्र ग्रहण के दिन भगवान के दर्शन करना अशुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन मंदिरों के कपाट बंद रहेंगे। भारत में चंद्र ग्रहण को लेकर कई धारणाएं प्रचलित है लेकिन विज्ञान के मुताबिक यह पूरी तरह खगोलीय घटना है। खगोलविज्ञान के अनुसार जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आती है तो चंद्र ग्रहण होता है। जब सूर्य व चंद्रमा के बीच में पृथ्वी इस प्रकार से आ जाए जिससे चंद्रमा का पूरा या आंशिक भाग ढक जाए और सूर्य की किरणें चंद्रमा तक ना पहुंचे। ऐसी स्थिति में चंद्र ग्रहण होता है।



प्रचलित कथानुसार समुद्र मंथन के दौरान जब देवों और दानवों के साथ अमृत पान के लिए विवाद हुआ तो इसको सुलझाने के लिए मोहनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। जब भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग बिठा दिया। लेकिन असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया। देवों की लाइन में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने राहू को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहू का सर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहू ने अमृत पान किया हुआ था , जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया। इसी कारण राहू और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस लेते हैं। इसलिए चंद्र ग्रहण होता है।

खग्रास ग्रस्तोदय चन्द्रग्रहण

31 जनवरी 2018 बुधवार को माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर खग्रास चन्द्रग्रहण लग रहा है। यह ग्रहण सम्पूर्ण भारत में दृश्य होगा। भारत के अलावा यह एशिया, रूस, मंगोलिया, जापान, आस्ट्रेलिया, आदि में चंद्रोदय के समय प्रारंभ होगा तथा उत्तरी अमेरिका, कनाडा, पनामा के कुछ भागों में चन्द्रास्त के समय ग्रहण का मोक्ष दृष्टिगोचर होगा। भारतीय मानक समय के अनुसार पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों असम, मेघालय, बंगाल, झारखण्ड, बिहार में खण्डग्रास चन्द्रग्रहण का स्पर्श सायं 5  बज कर 19 से तथा मोक्ष रात्रि 8 बज कर 43 पर होगा। खग्रास चन्द्रग्रहण की कुल अवधि 01 घंटा 17  मिनट तथा चन्द्रग्रहण की कुल अवधि 03 घंटा 24 मिनट की होगी। इस चन्द्रग्रहण का स्पर्श सायं 05 बजकर 19 मिनट पर होगा, ग्रहण का मध्य सायं 07 बजकर 01 मिनट पर तथा ग्रहण का मोक्ष रात्रि 08 बजकर 43 मिनट पर होगा।

यह चंद्र ग्रहण सुपर ब्लू ब्लड मून होगा। इससे पहले 152 साल पहले 31 मार्च 1866 में ऐसा हुआ था। इसके साथ ही ऐसा आने वाले 11 सालों तक दिखाई नहीं देगा। 31 जनवरी को पूर्णिमा होने और सूतक का समय लगने के कारण पूजा विशेष समय तक कर लेनी चाहिए। हिंदू धर्म में माघ मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व है।

इस बार 176 वर्ष बाद चंद्र ग्रहण पर पुष्य नक्षत्र का भी विशेष संयोग बन रहा है। माघ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा 31 जनवरी को यानि माघी पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती एवं राजराजेश्वरी ललिता देवी जयंती के साथ ही नए साल का पहला खग्रास चंद्रग्रहण दिखाई देगा। यह चंद्रग्रहण काल सर्प की छाया में पड़ेगा। यह इस बात का संकेत है कि इस दिन का ग्रहण लगा ही चंद्रमा का उदय होगा, जिसे ज्योतिष की भाषा में ग्रस्तोदय कहा जाता है। इस प्रकार का चंद्रग्रहण अशुभ माना जाता है।

माघ मास की पूर्णिमा को स्नान और दान का भी विशेष महत्व है। ज्योतिषियों के अनुसार चंद्र ग्रहण पड़ने के कारण दान करना और भी जरूरी हो जाता है।

31 जनवरी को होने वाली पूर्णिमा की तीन खासियत है. पहली यह कि यह सुपरमून की एक श्रंखला में तीसरा अवसर है जब चांद धरती के निकटतम दूरी पर होगा.

दूसरी यह कि इस दिन चांद सामान्य से 14 फीसदा ज्यादा चमकीला दिखेगा. तीसरी बात यह कि एक ही महीने में दो बार पूर्णिमा होगी, ऐसी घटना आमतौर पर ढाई साल बाद होती है.


ग्रहण का असर 

यह ग्रहण पुष्य व आश्लेषा नक्षत्र एवं कर्क राशि पर पड़ेगा। अतः जन्म से व पुकारने के नाम से जिन लोगों का पुष्य व आश्लेषा नक्षत्र एवं कर्क राशि हो उनको एवं गर्भवती महिलाओं को यह ग्रहण नहीं देखना चाहिए। चन्द्र ग्रहण का सूतक 31 जनवरी 2018 बुधवार को प्रातः 08 बज कर 19 मिनट से लग जायेगा। बालक-बूढ़े और रोगी ग्रहण प्रारंभ होने की अवधि तक पथ्याहार ले सकते है। ग्रहण के सूतक काल में भोजन, शयन, मूर्ति स्पर्श, हास्य विनोद नहीं करना चाहिए। ग्रहण में स्नान करते समय कोई मंत्र आदि नहीं बोलना चाहिए। घर में जनन सूतक या मरण पातक होने पर भी ग्रहणपरक स्नानादि कृत्य करने चाहिए। ग्रहण काल में गुरूदीक्षा लेने से मुहूर्त की आवश्यकता नहीं रह जाती।

ग्रहण का प्रभाव कैसे करें कम

ज्योतिष के मुताबिक इस ग्रहण का असर 108 दिनों तक रहेगा।जिन राशि वालों को ग्रहण का फल है, उन्हें यह ग्रहण कदापि नहीं देखना चाहिए। पंडित जी ने बताया कि जिन राशियों के लिए यह ग्रहण अशुभ सूचक है, वह थोड़ा गंगा जल और एक चांदी का छोटा सा टुकड़ा एक माह (क्योंकि ग्रहण का असर एक माह रहता ही है) तक अपने पास रखें, इससे शुभता की प्राप्ति होगी। ग्रहण स्पर्श के समय स्नान, ग्रहण मध्य के समय जप, श्राद्ध, तर्पण, हवनादि करने से सामान्य दिनों की अपेक्षा हजार गुणा अधिक फल की प्रप्ति होती है। जब ग्रहण कम होने लगे उस समय यथाशक्ति दान देना चाहिए, परन्तु यह दान ब्राह्मणों को न देना चाहिए। यह दान डोम या बाल्मीकि समाज को देने से चन्द्रमा के शुभ फल की प्रप्ति होती है। ग्रहण मोक्ष होने पर पुनः स्नान करना चाहिए।

ग्रहण गर्भवती महिलाओं के लिए

चंद्र ग्रहण को लेकर हिंदू धर्म में अपनी पौराणिक मान्यताएं हैं। खासकर गर्भवती महिलाओं को इस दौरान सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। ग्रहण गर्भवती महिलाओं के लिए दूसरे लोगों की तुलना में अधिक नुकसानदेह होता है। इसलिए महिलाओं को कुछ खास नियमों का ध्यान रखना पड़ता है और पालन करना पड़ता है। दरअसल ग्रहण के दौरान ना गर्भ में पल रहे बच्चे पर बुरा असर होने का डर होता है। इसलिए महिलाओं को चंद्र ग्रहण के दौरान सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं के लिए जानने योग्य सबसे जरूरी बात है इस दौरान बाहर निकलने की भूल ना करें। ऐसा माना जाता है क‍ि ग्रहण की तरंगे आपके अजन्मे शिशु पर बुरा प्रभाव कर सकती हैं। ग्रहण काल में सबसे ज्यादा सावधानी गर्भवती महिलाओं को रखनी चाहिए। इस दौरान वे सबसे ज्यादा संवेदनशील होती हैं और गर्भस्थ शिशु पर ग्रहण काल का असर विपरीत पड़ सकता है।

करें धागे का ये उपाय 

जानकार इसे लेकर एक प्रयोग को बताते हैं जिसका इस्तेमाल कर गर्भवती महिलाएं इस दौरान होने वाले अशुभ प्रभावों से खुद को बचा सकती है। दरअसल गर्भवती महिला की लंबाई के बराबर एक रस्सी या मोटा धागा को घर में किसी खूंटे या कील पर लटका देना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि डोर, धागा या रस्सी सीधी लटकती हो और वह मुड़े नहीं।

जब ग्रहण पूरी तरह खत्म हो जाए और सूतक काल भी समाप्त हो जाए, तब इस डोरी को लाल कपड़े में लपेटकर किसी नदी या तालाब में बहा देना चाहिए। फिर अमुक गर्भवती महिला को स्नान जरूर कर लेना चाहिए। दरअसल पौराणिक मान्यता के मुताबिक ऐसा करने से गर्भवती महिला और उसके गर्भ में पल रहे शिशु पर कोई भी बुरा असर नहीं होता है।

पूरे ग्रहण काल के दौरान गर्भवती महिलाओं को भगवन्नाम का जाप या किसी आध्यात्मिक किताब का अध्ययन करना चाहिए। इस दौरान गीता पाठ, सुंदरकांड का पाठ और रामायण पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है और ग्रहण का अशुभ प्रभाव नहीं होता है।

इन बातों का भी रखें ध्यान 

- ग्रहण शुरू होने से पहले स्नान अवश्य करें।

- गर्भवती महिला ग्रहण खत्म होने पर स्नान करके वापस शुद्ध हो जाए।

- दूषित भोजन का सेवन किसी को भी नहीं करना चाहिए।

- ग्रहण से पहले का पका हुआ खाना भी नहीं खाना चाहिए।

- गर्भवती महिलाएं ग्रहण काल में एक नारियल अपने पास रखें।

- इससे गर्भवती महिला पर वायुमंडल से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं होता है।

- ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएं चाकू, कैंची और सुई का बिल्कुल भी प्रयोग न करें।

- ग्रहण के वक्त गर्भवती महिला को घर के अंदर रहना चाहिये, बाहर नहीं निकलना चाहिए।

- ग्रहण के वक्त गर्भवती महिला को सोना नहीं चाहिए।

- घर के अंदर ऊंचे स्वर में मंत्रों का जाप किया जाना चाहिए।


ग्रहण के समय क्या ना करें?

ग्रहण के समय मूर्ति छूना, भोजन तथा नदी में स्नान करना वर्जित माना जाता है। सूतक काल के समय किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। भोजन ग्रहण करने और पकाने से दूर रहना अच्छा माना जाता है। देवी देवताओं और तुलसी आदि को स्पर्श नहीं करना चाहिए। सूतक के दौरान गर्भवती स्त्री का घर से बाहर निकलना और ग्रहण देखना वर्जित माना जाता है। ये शिशु की सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि इससे उसके अंगों को नुकसान पहुँच सकता है।

इसके अलावा नाख़ून काटना, बात कटवाना, निद्रा मैथुन आदि जैसी गतिविधियों से भी ग्रहण व् सूतक काल के समय परहेज करना चाहिए। माना जाता है इस काल में स्त्री प्रसंग से बचना चाहिए अन्यथा आंखों से संबंधित बिमारियों के होने का खतरा बना रहता है।

ग्रहण समाप्त होने के पश्चात् पुरे घर को गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए और सूतक काल प्रारंभ होने से पूर्व दूध, जल, दही, अचार आदि खान-पान की सभी चीजों में कुशा या तुलसी के पत्ते दाल देने चाहिए। माना जाता है ग्रहण के दौरान खान पान की सभी चीजें बेकार हो जाती है और वे खाने लायक नहीं रहती। ऐसा करने से आप ग्रहण समाप्त होने के बाद इन्हें पुनः खा सकते है।

ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय

सनातन धर्मानुसार ऋषि मुनियों ने इनके दुष्प्रभाव से बचने के लिए कुछ उपाय बताए हैं जो कि निम्न है:

1.ग्रहण में सभी वस्तुओं में कुश डाल देनी चाहिए कुश से दूषित किरणों का प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि कुश जड़ी- बूटी का काम करती है.

2. ग्रहण के समय तुलसी और शमी के पेड़ को नहीं छूना चाहिए. कैंची, चाकू या फिर किसी भी धारदार वस्तु का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

3. ग्रहण में किसी भी भगवान की मूर्ति और तस्वीर को स्पर्श नहीं चाहिए. इतना ही नहीं सूतक के समय से ही मंदिर के दरवाजे बंद कर देने चाहिए.

4. ग्रहण के दिन सूतक लगने के बाद छोटे बच्चे, बुजुर्ग और रोगी के अलावा कोई व्यक्ति भोजन नहीं करे.

5. ग्रहण के समय खाना पकाने और खाना नहीं खाना चाहिए, इतना ही नहीं सोना से भी नहीं चाहिए. ऐसा कहा जाता है कि ग्रहण के वक्त सोने और खाने से सेहत पर बुरा असर पड़ता है.

6. क्योंकि ग्रहण के वक्त वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो कि बच्चे और मां दोनों के लिए हानिकारक मानी जाती है.

7. गर्भावस्था की स्थिति में ग्रहण काल के समय अपने कमरे में बैठ कर के भगवान का भजन ध्यान मंत्र या जप करें.

8. ग्रहण काल के समय प्रभु भजन, पाठ , मंत्र, जप सभी धर्मों के व्यक्तियों को करना चाहिए, साथ ही ग्रहण के दौरान पूरी तन्मयता और संयम से मंत्र जाप करना विशेष फल पहुंचाता है. इस दौरान अर्जित किया गया पुण्य अक्षय होता है। कहा जाता है इस दौरान किया गया जाप और दान, सालभर में किए गए दान और जाप के बराबर होता है.

9. ग्रहण के दिन सभी धर्मों के व्यतियों को शुद्ध आचरण करना चाहिए

10. किसी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहिए, सब के साथ करना चाहिए.

11. सभी के साथ अच्छा व्यवहार करें, और मीठा बोलें.

12. ग्रहण के समय जाप, मंत्रोच्चारण, पूजा-पाठ और दान तो फलदायी होता ही है.

13. ग्रहण मोक्ष के बाद घर में सभी वस्तुओं पर गंगा जल छिड़कना चाहिए, उसके बाद स्नान आदि कर के भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए और हवन करना चाहिए और भोजन दान करना चाहिए. धर्म सिंधु के अनुसार ग्रहण मोक्ष के उपरांत हवन करना, स्नान, स्वर्ण दान, तुला दान, गौ दान भी श्रेयस्कर है.

14. ग्रहण के समय वस्त्र, गेहूं, जौं, चना आदि का श्रद्धानुसार दान करें , जो कि श्रेष्ठकर होता है.

ग्रहण के समय इस पाठ और मंत्र का करें जाप

पाठ: दुर्गा सप्तशती कवच पाठ मंत्र: ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै

( ग्रहण काल में ॐ का उच्चारण नहीं करना चाहिए  )

12 राशियों पर असर

1. मेष-व्यथा
2. वृष-श्री
3. मिथुन-क्षति
4. कर्क-घात
5. सिंह-हानि
6. कन्या-लाभ
7. तुला-सुख
8. वृश्चिक-माननाश
9. धनु-मृत्यु तुल्य कष्ट
10. मकर-स्त्री पीड़ा
11. कुंभ-सौभाग्य
12. मीन-चिंता


राशि अनुसार चंद्र ग्रहण के उपाय 

1. मेष- मेष राशि के लोगों को परेशानियों से बचने के लिए मंगल से संबंधित वस्तु जैसे गुड़ और मसूर की दाल का दान करना चाहिए।

2. वृषभ- वृष राशि के लोग मानसिक तनाव को दूर करने के लिए इस दिन श्री सूक्त का पाठ करें और मंदिर में अन्न दान करें।

3. मिथुन- मिथुन राशि के लोग बीमारियों को और गरीबी को दूर करने के लिए गाय को पालक या हरी घास खिलाएं, किसी गौशाला में धन का दान करें।

4. कर्क- जिन लोगों की राशि कर्क है, उन्हें इस दिन सूतक से पहले शिवजी की विशेष पूजा करनी चाहिए। ऊँ सों सोमाय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।

5. सिंह- इस राशि के लोगों को क्रोध जल्दी आता है। इन्हें क्रोध पर काबू पाने के लिए इस दिन गायत्री मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। दान करें।

6. कन्या- धन संबंधी कामों की परेशानियों को दूर करने के लिए किसी किन्नर को हरी चूड़ियां दान करें। गाय को पालक खिलाएं।

7. तुला- चंद्र ग्रहण वाले दिन सूतक से पहले श्री सूक्त का पाठ करें। अन्न का दान करें।

8. वृश्चिक-मानसिक तनाव दूर करने के लिए हनुमानजी के सामने घी का दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें।

9. धनु- पैसों से जुड़ी परेशानियों को दूर करने के लिए श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें। गाय फल खिलाएं।

10. मकर- जिन लोगों की राशि मकर है, उन्हें बीमारियों से बचने के लिए सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। काले तिल का दान करें।

11. कुंभ- चंद्र ग्रहण वाले दिन सूतक से पहले हनुमान चालीसा का पाठ करें। काली उड़द का दान करें।

12. मीन-इस राशि के लोग सूतक से पहले भगवान विष्णु की पूजा करें और गरीबों को केले बाटें।

यह ध्यान रखना चाहिए कि उपरोक्त बातों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है लेकिन धर्म के अनुसार इन बातों का जिक्र किया जाता है। भविष्यपुराण, नारदपुराण आदि कई पुराणों में चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के समय अपनाने वाली हिदायतों के बारें में बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल का समय अशुभ माना गया है जिसमें मंदिरों के कपाट बंद रहते है | ग्रहण काल के समय किसी भी प्रकार की पूजा-पाठ करना वर्जित माना गया है | किन्तु ग्रहण काल के समय में किये गये यज्ञ और मंत्र जप का पुण्य 100 गुना अधिक प्राप्त होता है ऐसा शास्त्रों में वर्णित है |

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