Friday, March 23, 2018

श्री रामनवमी

शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। राम नवमी का पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। जिनके पिता अयोध्या के राजा दशरथ और माता रानी कौशल्या थी। भगवान श्री राम को विष्णु जी के 7 वें अवतार के रूप में जाना जाता है। इस दिन को चैत्र मास शुक्लपक्ष नवमी भी कहा जाता है। जो की वसंत नवरात्री का नौवां दिन होता है। त्रेतायुग में रावन के अत्याचारों को समाप्त करने और धर्म को पुनः स्थापित करने के लिए भगवान् विष्णु ने पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में राम अवतार लिया था। विष्णु जी के इस अवतार का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में हुआ था।



राम का अर्थ

राम का अर्थ होता है- 'रमन्ते योगिनो यस्मिन् स राम:' अर्थात् योगिगण अपने ध्यान में जिन्हें देखते हैं, वे हैं राम। राम का तंत्र में अर्थ है कल्याणकारी अग्नि और प्रकाश। राम ऋषि संस्कृति के प्रतीक पुरुष हैं। भारतीय संस्कृति ऋषि-संस्कृति तथा कृषि-संस्कृति का सम्मिलित स्वरूप हैं। दोनों ही नवरात्रों में भगवान राम को भी पूजा जाता है चैत्र नवरात्र में जहां प्रभु श्री राम का जन्मदिवस मनाते हैं वहीं शारदीय नवरात्रि में दशहरा मनाने का प्रावधान है।रावण पर विजय के कारण इसे विजयादशमी भी कहते हैं।

रामनवमी की पौराणिक मान्यताएँ

श्री रामनवमी की कहानी लंका के राजा रावण से शुरू होती है। रावण अपने राज्यकाल में बहुत अत्याचारी हुआ करता था। उसके अत्याचार से पूरी जनता त्रस्त थी | यहाँ तक की देवतागण भी क्योंकि रावण ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान ले लिया था। उसके अत्याचार से तंग होकर देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और प्रार्थना करने लगे। फलस्वरूप प्रतापी राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या की कोख से भगवान विष्णु ने राम के रूप में रावण को परास्त करने हेतु जन्म लिया। तब से चैत्र की नवमी तिथि को रामनवमी के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। ऐसा भी कहा जाता है कि नवमी के दिन ही स्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना शुरू की थी।

भगवान श्री राम का जन्म

माना जाता है कि भगवान श्री राम का जन्म चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी को अयोध्या में हुआ। अगस्त्यसंहिता के अनुसार श्री राम का जन्म दिन के 12 बजे हुआ था इस समय पुनर्वसु नक्षत्र व कर्क लग्न था। इस समय ग्रहों की दशा के अनुसार भगवान राम ने मेष राशि में जन्म लिया जिस पर सूर्य एवं अन्य पांच ग्रहों की शुभ दृष्टि पड़ रही थी। माता कौशल्या की कोख से जन्म लेने पर भगवान विष्णु के मानव अवतार लेने पर इस जन्मोत्सव का आनंद देवताओं, ऋषियों, किन्नरों, चारणों सहित अयोध्या नगरी की समस्त जनता ले रही थी। इतना ही नहीं यह भी माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना भी रामनवमी के दिन ही शुरु की थी। राम जन्मभूमि अयोध्या में तो राम जन्म का यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन यहां मेलों का आयोजन भी होता है।

रामनवमी व्रत की कथा

एक बार की बात है जब राम, सीता और लक्ष्मण वनवास पर थे। वन में चलते-चलते भगवान राम ने थोड़ा विश्राम करने का विचार किया। वहीं पास में एक बुढिया रहती थी, भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता बुढ़िया के पास पंहुच गये। बुढ़िया उस समय सूत कात रही थी, बुढिया ने उनकी आवभगत की और उन्हें स्नान ध्यान करवा भोजन करने का आग्रह किया इस पर भगवान राम ने कहा माई मेरा हंस भी भूखा है पहले इसके लिये मोती ला दो ताकि फिर मैं भी भोजन कर सकूं। बुढ़िया मुश्किल में पड़ गई लेकिन घर आये मेहमानों का निरादर भी नहीं कर सकती थी। वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास गई और उनसे उधार में मोती देने की कही राजा को मालूम था कि बुढिया की हैसियत नहीं है लौटाने की लेकिन फिर भी उसने तरस खाकर बुढिया को मोती दे दिया। अब बुढ़िया ने वो मोती हंस को खिला दिया जिसके बाद भगवान श्री राम ने भी भोजन किया। जाते जाते भगवान राम बुढिया के आंगन में मोतियों का एक पेड़ लगा गये। कुछ समय बाद पेड़ बड़ा हुआ मोती लगने लगे बुढ़िया को इसकी सुध नहीं थी। जो भी मोती गिरते पड़ोसी उठाकर ले जाते। एक दिन बुढिया पेड़ के नीचे बैठी सूत कात रही थी की पेड़ से मोती गिरने लगे बुढ़िया उन्हें समेटकर राजा के पास ले गई। राजा हैरान कि बुढ़िया के पास इतने मोती कहां से आये बुढ़िया ने बता दिया की उसके आंगन में पेड़ है अब राजा ने वह पेड़ ही अपने आंगन में मंगवा लिया लेकिन भगवान की माया अब पेड़ पर कांटे उगने लगे एक दिन एक कांटा रानी के पैर में चुभा तो पीड़ी व पेड़ दोनों राजा से सहन न हो सके उसने तुरंत पेड़ को बुढ़िया के आंगन में ही लगवा दिया और पेड़ पर प्रभु की लीला से फिर से मोती लगने लगे जिन्हें बुढ़िया प्रभु के प्रसाद रुप में बांटने लगी।

रामनवमी उत्सव

श्री रामनवमी हिन्दुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है जो देश-दुनिया में सच्ची श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार वैष्णव समुदाय में विशेषतौर पर मनाया जाता है। इस साल अष्टमी तिथि 24 तारीख को 10 बजकर 6 मिनट से शुरू हो जाएगी और 25 मार्च को 8 बजकर 3 मिनट तक रहेगी। 26 मार्च को सूर्योदय के समय दसमी तिथि रहेगी। नवमी तिथि को सूर्योदय नहीं मिलने के कारण इसका क्षय माना गया है।

ऐसे में रामनवमी कब और कैसे मनेगी इस बारे में वामन पुराण में कहा गया है कि- चैत्र शुक्ला तु नवमी पुनर्वसु युता यदि। सैव मध्याह्नयोगेन महापुण्यफल प्रदा।। साथ ही यह भी मत है कि 'अष्टमी नवमी युक्ता, नवमी च अष्टमीयुतेति।।' कुल मिलाकर शास्त्रों और पुराणों की इन बातों को मानें तो अष्टमी तिथि को अगर दोपहर में नवमी तिथि पड़ रही हो और पुनर्वसु नक्षत्र हो तो यह महापुण्यदायी है।

इस साल 25 मार्च को 8 बजकर 3 मिनट के बाद नवमी तिथि लग जाएगी और 2 बजकर 21 मिनट से पुनर्वसु नक्षत्र उदित होगा जिससे रामनवमी का पूजन करने के लिए 2 बजकर 21 मिनट के बाद का समय बहुत ही उत्तम रहेगा। 25 मार्च को रामनवमी का उत्सव मनाया जाएगा।

1.  आज के दिन भक्तगण रामायण का पाठ करते हैं।
2.  रामरक्षा स्त्रोत भी पढ़ते हैं।
3.  कई जगह भजन-कीर्तन का भी आयोजन किया जाता है।
4.  भगवान राम की मूर्ति को फूल-माला से सजाते हैं और स्थापित करते हैं।
5.  भगवान राम की मूर्ति को पालने में झुलाते हैं।

राम नवमी की पूजा विधि

हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के रामनवमी बहुत ही शुभ दिन होता है। माना जाता है कि सभी प्रकार के मांगलिक कार्य इस दिन बिना मुहूर्त विचार किये भी संपन्न किये जा सकते हैं। रामनवमी पर पारिवारिक सुख शांति और समृद्धि के लिये व्रत भी रखा जाता है। रामनवमी पर पूजा के लिये पूजा सामग्री में रोली, ऐपन, चावल, स्वच्छ जल, फूल, घंटी, शंख आदि लिया जा सकता है। भगवान राम और माता सीता व लक्ष्मण की मूर्तियों पर जल, रोली और ऐपन अर्पित करें तत्पश्चात मुट्ठी भरकर चावल चढायें। राम नवमी की पूजा विधि कुछ इस प्रकार है:
1.  सबसे पहले स्नान करके पवित्र होकर पूजा स्थल पर पूजन सामग्री के साथ बैठें।
2.  पूजा में तुलसी पत्ता और कमल का फूल अवश्य होना चाहिए।
3.  उसके बाद श्रीराम नवमी की पूजा षोडशोपचार करें।
4.  खीर और फल-मूल को प्रसाद के रूप में तैयार करें।
5.  पूजा के बाद घर की सबसे छोटी महिला सभी लोगों के माथे पर तिलक लगाए।

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