देवी-देवताओं से जुड़ी कहानियों और तस्वीरों में आपने उन्हें किसी खास तरह के पक्षी या पशु को उनके वाहन के तौर पर देखा होगा। यह वाहन हमेशा उनके साथ रहते हैं और कहीं ना कहीं उनके स्वभाव और उनकी विशेषताओं के बारे में बताते हैं। देखने में ये वाहन बहुत सामान्य लगते हैं लेकिन विशिष्ट देवी-देवता ने इन्हें ही अपने वाहन के रूप में क्यों चुना, इसके पीछे छिपे रहस्य को भी समझने की जरूरत है। लेकिन यहं एक सवाल यह और उठता है कि जब चमत्कारी शक्तियों से लैस देवतागण किसी भी क्षण, किसी भी समय कहीं भी आ-जा सकते हैं तो उन्हें वाहनों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? इसके पीछे कुछ धार्मिक और बहुत हद तक सामाजिक कारण मौजूद हैं। धार्मिक कारण की बात करें तो समस्त देवी-देवताओं को जो भी पशु या पक्षी रूपी वाहन दिए गए हैं उनका संबंध उस देवी-देवता के व्यवहार से है, वहीं हम सामाजिक कारण की बात करें तो शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर पशुओं और पक्षियों को देवताओं के प्रिय वाहन का दर्जा ना दिया जाता तो उनके प्रति होने वाली हिंसा को रोक पाना वाकई मुश्किल हो जाता। आइए जानते हैं प्रसिद्ध देवी-देवताओं और उनके वाहनों के पीछे छिपी कहानी को।
श्री गणेश और मूषक
मूषक अर्थात चूहा, हर चीज को कुतर डालता है, यह जाने बिना कि वो चीज कीमती है या अनमोल, वह उसे नष्ट कर देता है। इसी तरह बुद्धिहीन और कुतर्की व्यक्ति भी बिना सोचे-समझे, अच्छे-बुरे हर काम में बाधा उत्पन्न करते हैं। श्री गणेश ने मूषक पर सवारी कर कुतर्कों और अहित चाहने वाले लोगों को वश में किया है।
मां दुर्गा और शेर
दुर्गा को शक्ति कहा जाता है और सिंह स्वयं शक्ति, बल, पराक्रम, शौर्य और क्रोध का प्रतीक है। शेर की यह सभी विशेषताएं मां दुर्गा के स्वभाव में मौजूद हैं। शेर की दहाड़ की ही तरह मां दुर्गा की हुंकार भी इतनी तेज है, जिसके आगे कोई भी आवाज सुनाई नहीं दे सकती।
भगवान शंकर और नंदी
नंदी बैल ना सिर्फ भगवान शिव का वाहन है बल्कि उनके गणों में सर्वश्रेष्ठ भी माना गया है। बैल बहुत ताकतवर और शक्तिशाली होने के बावजूद शांत रहते हैं और यह महादेव के स्वभाव को भी दर्शाता है। भोलेनाथ भी शक्तिशाली होने के बावजूद शांत और संयमित है। इसके अलावा नंदी के चार पैर हिन्दू धर्म के चार स्तंभ, क्षमा, दया, दान और तप के प्रतीक हैं। नंदी सफेद रंग का बैल है जो स्वच्छता और पवित्रता का भी ज्ञान करवाता है।
भगवान विष्णु और गरुड़
भगवत् गीता में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु के भीतर ही समस्त सृष्टि का निवास है, वे सबसे ताकतवर हैं। गरुड़ देव को भी अधिकार और दिव्य शक्तियों से लैस दर्शाया गया है।
देवी लक्ष्मी और उल्लू
उल्लू दिन में नहीं देख पाता, वह रात का जीव है। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि लक्ष्मी जी की कृपा व्यक्ति को अंधकार से मुक्त कर सकती है। उल्लू शुभता और संपत्ति का भी प्रतीक है। वर्तमान समय में यह कहा जाता है कि अत्याधिक धन-संपदा को प्राप्त कर व्यक्ति उल्लू (बुद्धिहीन) हो जाता है। इसलिए देवी लक्ष्मी और उल्लू साथ-साथ चलते हैं।
देवी सरस्वती और हंस
सांकेतिक भाषा में हंस जिज्ञासा और पवित्रता का प्रतीक कहा जा सकता है। ज्ञान की देवी सरस्वती को हंस से बेहतर और कोई वाहन मिल भी नहीं सकता था। मां सरस्वती का हंस पर विराजित होना इस बात को दर्शाता है कि ज्ञान के जरिए ही जिज्ञासा को शांत किया जा सकता है।
श्री कृष्ण और गाय
कृष्ण को ग्वाला भी कहा जाता है, वे बचपन से ही गायों के साथ खेलते-कूदते रहे हैं। कृष्ण की हर तस्वीर में आपको उनके आसपास गाय भी जरूर नजर आएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि कृष्ण का चित्र गाय की तस्वीर के बगैर पूरा नहीं लगता। शायद इसके पीछे भारत के ग्रामीण इलाकों की झलक दिखाना ही उद्देश्य रहा होगा।
पिशाच के आसन पर बैठते हैं हनुमान जी
प्रेत, पिशाच या अन्य कोई भी बुरी आत्मा दुःख और तकलीफ को दर्शाती है। हनुमान जी इन्हें ही अपना आसन बनाकर इनके ऊपर विराजित होते हैं। जो ये दर्शाता है कि हनुमानजी की आराधना हर बुरी ताकत और शक्तियों से बचाती है।
यमराज और भैंस
भैंसों का झुंड, आने वाले कष्ट से अपने सदस्यों की रक्षा करता है। भैंसा एक सामाजिक प्राणी है, वह देखने में खतरनाक लगता है लेकिन बिना वजह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता। यह इस बात को दर्शाता है कि अगर हम अपने परिवार और संबंधियों के साथ मिलकर रहेंगे तो किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं। शायद इसलिए मौत के देवता यमराज ने भैंस को अपना वाहन बनाया है।
भगवान कार्तिकेय और मोर
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कार्तिकेय की तपस्या और साधक क्षमताओं से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान विष्णु ने उन्हें यह वाहन भेंट किया था। मोर चंचलता का प्रतीक है और उसे अपना वाहन बनाना इस बात को दर्शाता है कि कार्तिकेय ने अपने मोरे रूपी चंचल मन को अपने वश में कर लिया है।
श्री गणेश और मूषक
मूषक अर्थात चूहा, हर चीज को कुतर डालता है, यह जाने बिना कि वो चीज कीमती है या अनमोल, वह उसे नष्ट कर देता है। इसी तरह बुद्धिहीन और कुतर्की व्यक्ति भी बिना सोचे-समझे, अच्छे-बुरे हर काम में बाधा उत्पन्न करते हैं। श्री गणेश ने मूषक पर सवारी कर कुतर्कों और अहित चाहने वाले लोगों को वश में किया है।
मां दुर्गा और शेर
दुर्गा को शक्ति कहा जाता है और सिंह स्वयं शक्ति, बल, पराक्रम, शौर्य और क्रोध का प्रतीक है। शेर की यह सभी विशेषताएं मां दुर्गा के स्वभाव में मौजूद हैं। शेर की दहाड़ की ही तरह मां दुर्गा की हुंकार भी इतनी तेज है, जिसके आगे कोई भी आवाज सुनाई नहीं दे सकती।
नंदी बैल ना सिर्फ भगवान शिव का वाहन है बल्कि उनके गणों में सर्वश्रेष्ठ भी माना गया है। बैल बहुत ताकतवर और शक्तिशाली होने के बावजूद शांत रहते हैं और यह महादेव के स्वभाव को भी दर्शाता है। भोलेनाथ भी शक्तिशाली होने के बावजूद शांत और संयमित है। इसके अलावा नंदी के चार पैर हिन्दू धर्म के चार स्तंभ, क्षमा, दया, दान और तप के प्रतीक हैं। नंदी सफेद रंग का बैल है जो स्वच्छता और पवित्रता का भी ज्ञान करवाता है।
भगवान विष्णु और गरुड़
भगवत् गीता में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु के भीतर ही समस्त सृष्टि का निवास है, वे सबसे ताकतवर हैं। गरुड़ देव को भी अधिकार और दिव्य शक्तियों से लैस दर्शाया गया है।
देवी लक्ष्मी और उल्लू
उल्लू दिन में नहीं देख पाता, वह रात का जीव है। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि लक्ष्मी जी की कृपा व्यक्ति को अंधकार से मुक्त कर सकती है। उल्लू शुभता और संपत्ति का भी प्रतीक है। वर्तमान समय में यह कहा जाता है कि अत्याधिक धन-संपदा को प्राप्त कर व्यक्ति उल्लू (बुद्धिहीन) हो जाता है। इसलिए देवी लक्ष्मी और उल्लू साथ-साथ चलते हैं।
देवी सरस्वती और हंस
सांकेतिक भाषा में हंस जिज्ञासा और पवित्रता का प्रतीक कहा जा सकता है। ज्ञान की देवी सरस्वती को हंस से बेहतर और कोई वाहन मिल भी नहीं सकता था। मां सरस्वती का हंस पर विराजित होना इस बात को दर्शाता है कि ज्ञान के जरिए ही जिज्ञासा को शांत किया जा सकता है।
श्री कृष्ण और गाय
कृष्ण को ग्वाला भी कहा जाता है, वे बचपन से ही गायों के साथ खेलते-कूदते रहे हैं। कृष्ण की हर तस्वीर में आपको उनके आसपास गाय भी जरूर नजर आएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि कृष्ण का चित्र गाय की तस्वीर के बगैर पूरा नहीं लगता। शायद इसके पीछे भारत के ग्रामीण इलाकों की झलक दिखाना ही उद्देश्य रहा होगा।
पिशाच के आसन पर बैठते हैं हनुमान जी
प्रेत, पिशाच या अन्य कोई भी बुरी आत्मा दुःख और तकलीफ को दर्शाती है। हनुमान जी इन्हें ही अपना आसन बनाकर इनके ऊपर विराजित होते हैं। जो ये दर्शाता है कि हनुमानजी की आराधना हर बुरी ताकत और शक्तियों से बचाती है।
यमराज और भैंस
भैंसों का झुंड, आने वाले कष्ट से अपने सदस्यों की रक्षा करता है। भैंसा एक सामाजिक प्राणी है, वह देखने में खतरनाक लगता है लेकिन बिना वजह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता। यह इस बात को दर्शाता है कि अगर हम अपने परिवार और संबंधियों के साथ मिलकर रहेंगे तो किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं। शायद इसलिए मौत के देवता यमराज ने भैंस को अपना वाहन बनाया है।
भगवान कार्तिकेय और मोर
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कार्तिकेय की तपस्या और साधक क्षमताओं से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान विष्णु ने उन्हें यह वाहन भेंट किया था। मोर चंचलता का प्रतीक है और उसे अपना वाहन बनाना इस बात को दर्शाता है कि कार्तिकेय ने अपने मोरे रूपी चंचल मन को अपने वश में कर लिया है।
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