ज्योतिष शास्त्र में शुभ और अशुभ योगों का वर्णन मिलता है . इन योगों में एक योग है श्रापित योग इसे शापित दोष भी कहा जाता है. इस योग के विषय में मान्यता है कि यह जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है उनकी कुण्डली में मौजूद शुभ योगों का प्रभाव कम हो जाता है जिससे व्यक्ति को जीवन में कठिनाईयों एवं चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
श्रापित योग सम्बन्धी मान्यताएं
भारतीय दर्शन इस बात को मानता है कि आत्मा अमर है और कर्म के अनुसार जीव को अलग-अलग योनि में जन्म लेना पड़ता है. कर्म के अनुसार ही व्यक्ति को वर्तमान जीवन में सुख-दुख, आनन्द व कष्ट प्राप्त होता है . कुण्डली में ग्रहों की मौजूदगी भी इसी अनुसार होती है. कुण्डली में श्रापित योग के होने का कारण भी पूर्व जन्म के कर्मों का फल माना जाता है. कुछ ज्योतिषी बताते हैं कि यह योग अत्यंत अशुभ फलदायी होता है. इस योग का फल व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार भोगना पड़ता है.
कुण्डली में श्रापित योग
ज्योतिषशास्त्र में शनि, राहु, केतु, मंगल एवं सूर्य को अशुभ ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है. इन अशुभ ग्रहों में शानि एवं राहु की मौजूदगी एक राशि में होने पर श्रापित योग का निर्माण होता है . चुंकि ये दोनों ही ग्रह अशुभ फल देने वाले होते हैं इसलिए इन दोनों ग्रहों के योग से बनने वाले योग को शापित या श्रापित कहा जाता है. कुछ ज्योतिषशास्त्री यह भी मानते हैं कि शनि की दृष्टि राहु पर होने से भी इस योग का जन्म होता है.
शापित योग का परिणाम
शाप का सामान्य अर्थ शुभ फलों का नष्ट होना माना जाता है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है उसे इसी प्रकार का फल मिलता है यानी उनकी कुण्डली में जितने भी शुभ योग होते हैं वे प्रभावहीन हो जाते हैं. इस स्थिति में व्यक्ति को कठिन चुनौतियों एवं मुश्किल हालातों का सामना करना होता है. यह परिणाम आम धारणा पर आधारित है. जबकि ज्योतिषशास्त्र का गहराई से अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि यह धारण पूरी तरह सत्य नहीं है. वास्तव में शापित योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है. उनकी कुण्डली में अन्य योगों की अपेक्षा यह अधिक प्रभावशाली होकर व्यक्ति को शुभ फल देता है.
ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार जब दो मित्र ग्रहों की युति बनती है तो उनका अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाता है तथा दोनों मिलकर व्यक्ति को शुभ फल देते हैं. इस सिद्धांत के आधार पर भी शनि एवं राहु के योग को अशुभ करार नहीं दिया जा सकता है. लाल किताब तो इन दोनों ग्रहों के योग को नागमणि के नाम से सम्बोधित करता है. ज्योतिषशास्त्र की इस पुस्तक में कहा गया है कि राहु एवं शनि का योग इतना शुभ है जो कुण्डली में मौजूद अशुभ फलों को भी नष्ट कर देता है.
नंदी ज्योतिष से भी इस बात का समर्थन प्राप्त होता है कि राहु और शनि का योग अशुभ फल नहीं देता है . इन दोनों का योग होने पर व्यक्ति काफी मात्रा में गुप्त धन बनाने में कामयाब होता है.
अब अगर आपकी कुण्डली में शापित योग है तो इसके लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. इसे भी अपने लिए शुभ योग मानकर जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश कीजिए यह योग आपको अपनी मंजिल तक ले जाने में सहायक होगा.
श्रापित योग सम्बन्धी मान्यताएं
भारतीय दर्शन इस बात को मानता है कि आत्मा अमर है और कर्म के अनुसार जीव को अलग-अलग योनि में जन्म लेना पड़ता है. कर्म के अनुसार ही व्यक्ति को वर्तमान जीवन में सुख-दुख, आनन्द व कष्ट प्राप्त होता है . कुण्डली में ग्रहों की मौजूदगी भी इसी अनुसार होती है. कुण्डली में श्रापित योग के होने का कारण भी पूर्व जन्म के कर्मों का फल माना जाता है. कुछ ज्योतिषी बताते हैं कि यह योग अत्यंत अशुभ फलदायी होता है. इस योग का फल व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार भोगना पड़ता है.
कुण्डली में श्रापित योग
ज्योतिषशास्त्र में शनि, राहु, केतु, मंगल एवं सूर्य को अशुभ ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है. इन अशुभ ग्रहों में शानि एवं राहु की मौजूदगी एक राशि में होने पर श्रापित योग का निर्माण होता है . चुंकि ये दोनों ही ग्रह अशुभ फल देने वाले होते हैं इसलिए इन दोनों ग्रहों के योग से बनने वाले योग को शापित या श्रापित कहा जाता है. कुछ ज्योतिषशास्त्री यह भी मानते हैं कि शनि की दृष्टि राहु पर होने से भी इस योग का जन्म होता है.
शापित योग का परिणाम
शाप का सामान्य अर्थ शुभ फलों का नष्ट होना माना जाता है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है उसे इसी प्रकार का फल मिलता है यानी उनकी कुण्डली में जितने भी शुभ योग होते हैं वे प्रभावहीन हो जाते हैं. इस स्थिति में व्यक्ति को कठिन चुनौतियों एवं मुश्किल हालातों का सामना करना होता है. यह परिणाम आम धारणा पर आधारित है. जबकि ज्योतिषशास्त्र का गहराई से अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि यह धारण पूरी तरह सत्य नहीं है. वास्तव में शापित योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है. उनकी कुण्डली में अन्य योगों की अपेक्षा यह अधिक प्रभावशाली होकर व्यक्ति को शुभ फल देता है.
ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार जब दो मित्र ग्रहों की युति बनती है तो उनका अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाता है तथा दोनों मिलकर व्यक्ति को शुभ फल देते हैं. इस सिद्धांत के आधार पर भी शनि एवं राहु के योग को अशुभ करार नहीं दिया जा सकता है. लाल किताब तो इन दोनों ग्रहों के योग को नागमणि के नाम से सम्बोधित करता है. ज्योतिषशास्त्र की इस पुस्तक में कहा गया है कि राहु एवं शनि का योग इतना शुभ है जो कुण्डली में मौजूद अशुभ फलों को भी नष्ट कर देता है.
नंदी ज्योतिष से भी इस बात का समर्थन प्राप्त होता है कि राहु और शनि का योग अशुभ फल नहीं देता है . इन दोनों का योग होने पर व्यक्ति काफी मात्रा में गुप्त धन बनाने में कामयाब होता है.
अब अगर आपकी कुण्डली में शापित योग है तो इसके लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. इसे भी अपने लिए शुभ योग मानकर जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश कीजिए यह योग आपको अपनी मंजिल तक ले जाने में सहायक होगा.
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