Sunday, June 4, 2017

भगवती श्री गायत्री उपासना

भगवती गायत्री आद्याशक्ति प्रकृति के पाँच स्वरूपों में एक मानी गयी हैं। इनका विग्रह तपाये हुए स्वर्ण के समान है। यही वेद माता कहलाती हैं। वास्तव में भगवती गायत्री नित्यसिद्ध परमेश्वरी हैं। किसी समय ये सविता की पुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई थीं, इसलिये इनका नाम सावित्री पड़ गया। कहते हैं कि सविता के मुख से इनका प्रादुर्भाव हुआ था। भगवान सूर्य ने इन्हें ब्रह्माजी को समर्पित कर दिया। तभी से इनकी ब्रह्माणी संज्ञा हुई। कहीं-कहीं सावित्री और गायत्री के पृथक्-पृथक् स्वरूपों का भी वर्णन मिलता है। इन्होंने ही प्राणों का त्राण किया था, इसलिये भी इनका गायत्री नाम प्रसिद्ध हुआ। उपनिषदों में भी गायत्री और सावित्री की अभिन्नता का वर्णन है- गायत्रीमेव सावित्रीमनुब्रूयात्। गायत्री ज्ञान-विज्ञान की मूर्ति हैं। ये द्विजाति मात्र की आराध्या देवी हैं। इन्हें परब्रह्मस्वरूपिणी कहा गया है। वेदों, उपनिषदों और पुराणादि में इनकी विस्तृत महिमा का वर्णन मिलता है।



उपासना

गायत्री की उपासना तीनों कालों में की जाती है, प्रात: मध्याह्न और सायं। तीनों कालों के लिये इनका पृथक्-पृथक् ध्यान है।


  • प्रात:काल ये सूर्यमण्डल के मध्य में विराजमान रहती है। उस समय इनके शरीर का रंग लाल रहता है। ये अपने दो हाथों में क्रमश: अक्षसूत्र और कमण्डलु धारण करती हैं। इनका वाहन हंस है तथा इनकी कुमारी अवस्था है। इनका यही स्वरूप ब्रह्मशक्ति गायत्री के नाम से प्रसिद्ध है। इसका वर्णन ऋग्वेद में प्राप्त होता है।
  • मध्याह्न काल में इनका युवा स्वरूप है। इनकी चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं। इनके चारों हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा और पद्म शोभा पाते हैं। इनका वाहन गरूड है। गायत्री का यह स्वरूप वैष्णवी शक्ति का परिचायक है। इस स्वरूप को सावित्री भी कहते हैं। इसका वर्णन यजुर्वेद में मिलता है।
  • सायं काल में गायत्री की अवस्था वृद्धा मानी गयी है। इनका वाहन वृषभ है तथा शरीर का वर्ण शुक्ल है। ये अपने चारों हाथों में क्रमश: त्रिशूल, डमरू, पाश और पात्र धारण करती हैं। यह रुद्र शक्ति की परिचायिका हैं इसका वर्णन सामवेद में प्राप्त होता है।
ब्रह्मस्वरूपा गायत्री


इस प्रकार गायत्री, सावित्री और सरस्वती एक ही ब्रह्मशक्ति के नाम हैं। इस संसार में सत-असत जो कुछ हैं, वह सब ब्रह्मस्वरूपा गायत्री ही हैं। भगवान व्यास कहते हैं- 'जिस प्रकार पुष्पों का सार मधु, दूध का सार घृत और रसों का सार पय है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है। गायत्री वेदों की जननी और पाप-विनाशिनी हैं, गायत्री-मन्त्र से बढ़कर अन्य कोई पवित्र मन्त्र पृथ्वी पर नहीं है। गायत्री-मन्त्र ऋक्, यजु, साम, काण्व, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैत्तिरीय आदि सभी वैदिक संहिताओं में प्राप्त होता है, किन्तु सर्वत्र एक ही मिलता है। इसमें चौबीस अक्षर हैं। मन्त्र का मूल स्वरूप इस प्रकार है-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। 

अर्थात् 'सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध वरण करने योग्य तेज़ का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें।

गायत्री भाष्य

याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों ने जिस गायत्री भाष्य की रचना की है वह इन चौबीस अक्षरों की विस्तृत व्याख्या है। इस महामन्त्र के द्रष्टा महर्षि विश्वामित्र हैं। गायत्री-मन्त्र के चौबीस अक्षर तीन पदों में विभक्त हैं। अत: यह त्रिपदा गायत्री कहलाती है। गायत्री दैहिक, दैविक, भौतिक त्रिविध तापहन्त्री एवं परा विद्या की स्वरूपा हैं। यद्यपि गायत्री के अनेक रूप हैं। परन्तु शारदातिलक के अनुसार इनका मुख्य ध्यान इस प्रकार है- भगवती गायत्री के पाँच मुख हैं, जिन पर मुक्ता, वैदूर्य, हेम, नीलमणि तथा धवल वर्ण की आभा सुशोभित है, त्रिनेत्रों वाली ये देवी चन्द्रमा से युक्त रत्नों का मुकुट धारण करती हैं तथा आत्मतत्त्व की प्रकाशिका हैं। ये कमल के आसन पर आसीन होकर रत्नों के आभूषण धारण करती हैं। इनके दस हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, कमलयुग्म, वरद तथा अभयमुद्रा, कोड़ा, अंकुश, शुभ्र कपाल और रुद्राक्ष की माला सुशोभित है। ऐसी भगवती गायत्री का हम भजन करते हैं।

हिंदू धर्म में मां गायत्री को वेदमाता कहा जाता है अर्थात सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है। गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मां गायत्री का अवतरण माना जाता है। इस दिन को हम गायत्री जयंती के रूप में मनाते है। 

धर्म ग्रंथों में यह भी लिखा है कि गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं तथा उसे कभी किसी वस्तु की कमी नहीं होती। गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं, जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं। विधिपूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विपत्तियों के समय उसकी रक्षा करती है।

मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है हिंदू धर्म में मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है जिसका अर्थ है यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है। यही कारण है गायत्री को सभी शक्तियों का आधार माना गया है इसीलिए भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को प्रतिदिन गायत्री उपासना अवश्य करनी चाहिए।

विद्या और तप गायत्री साधक के रूप में सामान्य जन को अमृत,पारस,कल्पवृक्ष रूपी लाभ सुनिश्चित रूप से आज भी मिल सकते है, पर उसके लिए पहले ब्राह्मण बनना होगा। गुरुवर के शब्दों में " ब्राह्मण की पूँजी है- विद्या और तप। अपरिग्रही ही वास्तव में सच्चा ब्राह्मण बनकर गायत्री की समस्त सिद्धियों का स्वामी बन सकता है, जिसे ब्रह्मवर्चस के रूप में प्रतिपादित किया गया है।"

गायत्री पूजा से लाभ युगऋषि ने लिखा है कि परब्रह्म निराकार, अव्यक्त है। अपनी जिस अलौकिक शक्ति से वह स्वयं को विराट रूप में व्यक्त करता है, वह गायत्री है। इसी शक्ति के सहारे जीव मायाग्रस्त होकर विचरण करता है और इसी के सहारे माया से मुक्त होकर पुनः परमात्मा तक पहुँचता है।

सरल और फलदायी मंत्र गायत्री मंत्र को जगत की आत्मा माने गए साक्षात देवता सूर्य की उपासना के लिए सबसे सरल और फलदायी मंत्र माना गया है. यह मंत्र निरोगी जीवन के साथ-साथ यश, प्रसिद्धि, धन व ऐश्वर्य देने वाली होती है। लेकिन इस मंत्र के साथ कई युक्तियां भी जुड़ी है. अगर आपको गायत्री मंत्र का अधिक लाभ चाहिए तो इसके लिए गायत्री मंत्र की साधना विधि विधान और मन, वचन, कर्म की पवित्रता के साथ जरूरी माना गया है।

सुख, सफलता व शांति की चाहत वेदमाता मां गायत्री की उपासना 24 देवशक्तियों की भक्ति का फल व कृपा देने वाली भी मानी गई है। इससे सांसारिक जीवन में सुख, सफलता व शांति की चाहत पूरी होती है। खासतौर पर हर सुबह सूर्योदय या ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री मंत्र का जप ऐसी ही कामनाओं को पूरा करने में बहुत शुभ व असरदार माना गया है। मंत्र: ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। अर्थात् 'सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध वरण करने योग्य तेज़ का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें।

गायत्री मंत्र जप जुड़ी खास बातें 

गायत्री मंत्र जप किसी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए। गायत्री मंत्र जप के लिए सुबह का समय श्रेष्ठ होता है। किंतु यह शाम को भी किए जा सकते हैं। गायत्री मंत्र के लिए स्नान के साथ मन और आचरण पवित्र रखें। किंतु सेहत ठीक न होने या अन्य किसी वजह से स्नान करना संभव न हो तो किसी गीले वस्त्रों से तन पोंछ लें। साफ और सूती वस्त्र पहनें। कुश या चटाई का आसन बिछाएं। पशु की खाल का आसन निषेध है। तुलसी या चन्दन की माला का उपयोग करें। ब्रह्ममूहुर्त में यानी सुबह होने के लगभग 2 घंटे पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके गायत्री मंत्र जप करें। शाम के समय सूर्यास्त के घंटे भर के अंदर जप पूरे करें। शाम को पश्चिम दिशा में मुख रखें। इस मंत्र का मानसिक जप किसी भी समय किया जा सकता है। शौच या किसी आकस्मिक काम के कारण जप में बाधा आने पर हाथ-पैर धोकर फिर से जप करें। बाकी मंत्र जप की संख्या को थोड़ी-थोड़ी पूरी करें। साथ ही अधिक माला कर जप बाधा दोष का शमन करें। गायत्री मंत्र जप करने वाले का खान-पान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए। किंतु जिन लोगों का सात्विक खान-पान नहीं है, वह भी गायत्री मंत्र जप कर सकते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के असर से ऐसा व्यक्ति भी शुद्ध और सद्गुणी बन जाता है।

कैसे करें गायत्री उपासना...? गायत्री की उपासना तीनों कालों में की जाती है, प्रात: मध्याह्न और सायं। तीनों कालों के लिये इनका पृथक्-पृथक् ध्यान है। प्रात:काल ये सूर्यमण्डल के मध्य में विराजमान रहती है। उस समय इनके शरीर का रंग लाल रहता है। ये अपने दो हाथों में क्रमश: अक्षसूत्र और कमण्डलु धारण करती हैं। इनका वाहन हंस है तथा इनकी कुमारी अवस्था है। इनका यही स्वरूप ब्रह्मशक्ति गायत्री के नाम से प्रसिद्ध है। इसका वर्णन ऋग्वेद में प्राप्त होता है। मध्याह्न काल में इनका युवा स्वरूप है। इनकी चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं। इनके चारों हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा और पद्म शोभा पाते हैं। इनका वाहन गरूड है। गायत्री का यह स्वरूप वैष्णवी शक्ति का परिचायक है। इस स्वरूप को सावित्री भी कहते हैं। इसका वर्णन यजुर्वेद में मिलता है। सायं काल में गायत्री की अवस्था वृद्धा मानी गयी है। इनका वाहन वृषभ है तथा शरीर का वर्ण शुक्ल है। ये अपने चारों हाथों में क्रमश: त्रिशूल, डमरू, पाश और पात्र धारण करती हैं। यह रुद्र शक्ति की परिचायिका हैं इसका वर्णन सामवेद में प्राप्त होता है।

गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हम नित्य गायत्री मंत्र का जाप करते हैं। लेकिन उसका पूरा अर्थ नहीं जानते। गायत्री मंत्र की महिमा अपार हैं। गायत्री, संहिता के अनुसार, गायत्री मंत्र में कुल 24 अक्षर हैं। ये चौबीस अक्षर इस प्रकार हैं- 1। तत् 2.स 3। वि 4। तु 5। र्व 6। रे 7। णि 8। यं 9। भ 10। गौं 11। दे 12। व 13। स्य 14। धी 15। म 16। हि 17। धि 18। यो 19। यो 20। न: 21। प्र 22। चो 23। द 24। यात् वृहदारण्यक के अनुसार हम उक्त शब्दावली का भाव इस प्रकार समझते हैं। तत्सवितुर्वरेण्यं: अर्थात् मधुर वायु चलें, नदी और समुद्र रसमय होकर रहें। औषधियां हमारे लिए मंगलमय हों। भूलोक हमें सुख प्रदान करें। भर्गो देवस्य धीमहि:अर्थात् रात्रि और दिन हमारे लिए सुखकारण हों। पृथ्वी की रज हमारे लिए मंगलमय हो। धियो यो न: प्रचोदयात्: अर्थात् वनस्पतियां हमारे लिए रसमयी हों। सूर्य हमारे लिए सुखप्रद हो, उसकी रश्मियां हमारे लिए कल्याणकारी हों। सब हमारे लिए सुखप्रद हों। मैं सबके लिए मधुर बन जाऊं।

गायत्री मंत्र के जप से यह लाभ प्राप्त होते हैं- उत्साह एवं सकारात्मकता, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से घृणा होती है, परमार्थ में रूचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है, आर्शीवाद देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्र सिद्धि प्राप्त होती है, क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है। विद्यार्थीयों के लिए---- गायत्री मंत्र का जप सभी के लिए उपयोगी है किंतु विद्यार्थियों के लिए तो यह मंत्र बहुत लाभदायक है। रोजाना इस मंत्र का एक सौ आठ बार जप करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है। विद्यार्थियों को पढऩे में मन नहीं लगना, याद किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से निजात मिल जाती है।

गायत्री मंत्र के जप से यह लाभ प्राप्त होते हैं- 

दरिद्रता के नाश के लिए---- यदि किसी व्यक्ति के व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। शुक्रवार को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे श्रीं सम्पुट लगाकर जप करने से दरिद्र का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत किया जाए तो ज्यादा लाभ होता है। 

संतान संबंधी परेशानियां दूर करने के लिए... किसी दंपत्ति को संतान प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो या संतान से दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ सफेद वस्त्र धारण कर यौं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। संतान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र मुक्ति मिलती है। 

शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए--- यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा हो तो उसे प्रतिदिन या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं पीछे क्लीं बीज मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता होती है तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है।

विवाह कार्य में देरी हो रही हो तो--- यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो तो सोमवार को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान करते हुए ह्रीं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने से विवाह कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह साधना स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं। 

यदि किसी रोग के कारण परेशानियां हो तो---- यदि किसी रोग से परेशान है और रोग से मुक्ति जल्दी चाहते हैं तो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। जप के पश्चात जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसके भी रोग का नाश होता हैं।

माता गायत्री शक्ति, ज्ञान, पवित्रता तथा सदाचार का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि गायत्री मां की अराधना करने से जीवन में सूख-समृद्धि, दया-भाव, आदार-भाव आदि की प्राप्ति होती हैं। माता गायत्री जी के कुछ मंत्र निम्न हैं:

माता गायत्री के मंत्र (Mantra of Mata Gayatri in Hindi)

मां गायत्री की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए वस्त्र अथवा ओढ़नी चढ़ाना चाहिए-

ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्मवरूथमासदत्स्वः |
वासोग्ने विश्वरूपर्ठ संव्ययस्व विभावसो ||

Maa Gayatri ki pooja ke dauran is mantra ko padhte huye vastra athva odhani chadhana chahiye-

Om Sujaato Jyotisha Sah Sharmvaroothamaasadatsvah |
Vaasogne Vishvarooparth Vibhavaso ||

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मां गायत्री की पूजा में उन्हें इस मंत्र के द्वारा मुकुट चढ़ाना चाहिए-

मातस्तवेमं मुकुटं हरिन्मणि-प्रवाल-मुक्तामणिभि-र्विराजितम् |
गारूत्मतैश्चापि मनोहरं कृत गृहाण मातः शिरसो विभूषणम् ||

Maa Gayatri ki pooja me is mantra ke dwara mukut chadhana chahiye-

Maatastavemam Mukutam Harinmani-Pravaal-Muktaamanibhi-Rviraajitam |
Gaarutmataishchaapi Manoharam Krit Grihaan Maatah Shirso Vibhooshanam ||

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इस मंत्र के द्वारा मां गायत्री को धूप दिखलाना चाहिए-

दशांगधूपं तव रंजनार्थं नाशाय मे विघ्नविधायकानाम् |
दत्तं मया सौरभचूर्णयुक्तं गृहाण मातस्तव सन्निधौ च ||

Is mantra ke dwara Maa Gayatri ko dhoop dikhalaana chahiye-

Dashaangadhoopam Tav Ranjanaartham Naashaya Me Vighnavidhaayakaanaam |
Dattam Maya Saurabhchoornayuktam Grihaan Maatastav Sannidhau Ch ||

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मां गायत्री की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करना चाहिए-

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् |
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ||

Maa Gayatri ki pooja me is mantra ko padhte huye unhe pushpaanjali arpit karna chahiye-

Om Yagyen Yagyamayajant Devaastaani Dharmaani Prahtamaanyaasan |
Te Ha Naakam Mahimaanah Sachant Yatra Poorve Saadhyaah Santi Devah ||

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मां गायत्री की आरती करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-

इदर्ठ हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीरः सर्व्गणर्ठ स्वस्तये |
आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि ||

Maa Gayatri ki aarti karte samay is mantra ka uchcharan karna chahiye-

Idarth Havih Prajananam Me Astu Dashveerah Sarvganarth Svastaye |
Aatmasani Prajaasani Pashusani Lokasanyabhayasani ||

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मां गायत्री की पूजा में इस मंत्र का उच्चारण करते हुए पूगीफल समर्पण करना चाहिए-

ॐ याः फ़लिनीर्या अफ़ला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः |
बृहस्पतिप्रसूतास्तानो मुंचन्त्वर्ठ हसः ||

Maa Gayatri ki pooja me is mantra ka uchcharan karte huye poogeefal samarpan karna chahiye-

Om Yaah Falineeryaa Afalaa Apushpaayashch Pushpineeh |
Brihaspatiprasootaastaano Munchntvarth Hasah ||

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मां गायत्री की पूजा में इस मंत्र का उच्चारण करते हुए उन्हें पुष्प अर्पित करना चाहिए-

ॐ ओषधीः प्रतिमोददध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः |
अश्चा इव सजित्वरीवींरूधः पारियिष्णवः ||

Maa Gayatri ki pooja me is mantra ka uchcharan karte huye unhe pushp arpti karna chahiye-

Om Oshadheeh Pratimodadadhvam Pushpvateeh Prasoovarih |
Ashchaa Iv Sajitvareeveenroodhah Paariyishnavah ||

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मां गायत्री की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें ताम्बूल समर्पण करना चाहिए-

कर्पूर्-जातीफ़ल-जायकेन ह्येला-लवंगेन समन्वितेन |
मया प्रदत्तं मुखवासनार्थं ताम्बूलमंगी कुरू मातरेतत् ||

Maa Gayatri ki pooja ke dauran is mantra ko padhte huye unhe tambool samarpan karna chahiye-

Karpoor-Jaatifal-Jaayaken Hyelaa-Lavangen Samanviten |
Maya Pradattam Mukhavaasanaartham Tamboolmangee Karu Maataretat ||

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इस मंत्र को पढ़ते हुए मां गायत्री को सिन्दूर समर्पण करना चाहिए-

ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्यायाहेतिं परिबाधमानाः |
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान्पुमान पुमार्ठ सम्परिपातु विश्वतः ||

Is mantra ko padhte huye Maa Gayatri ko sindoor samarpan karna chahiye-

Om Ahiriv Bhogaih Paryeti Baahum Jyaayaahetim Paribaadhamaanah |
Hastghno Vishva Vayunaani Vidvaanpumaan Pumaarth Samparipaatu Vishvatah ||

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मां गायत्री की पूजा के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करते हुए उनका आवाहन करना चाहिए-

आयाहि वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि |
गायत्रि छन्दसां मातर्ब्रह्ययोने नमोस्तु ते ||

Maa Gayatri ki pooja ke dauran is mantra ka uchcharan karte huye unka aavahan karna chahiye-

Aayahi Varde Devi Tryakshare Brahmavaadini |
Gayatri Chhandasaam Maatarbrahyayone Namostu Te ||

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