Saturday, June 3, 2017

Ganga Dusshehra

Ganga Dussehra is dedicated to Goddess Ganga and it falls on Dashami Tithi or the tenth day of the bright half of the moon in the month of Jyaistha as per the Hindu calendar. Rishi Bhagirath took many years meditating to convince Ganga to come on earth. This is the day on which the sacred river Ganga descended on earth from heaven. So this festival is also known as Gangavataran which means the descent of the Ganga. This festival is celebrated for ten days beginning on the Amavasya and ends on the shukla dasami. This corresponds to month of May or June according to the Gregorian calendar. Ganga who is regarded as a celestial river descending from heaven is the most sacred river in India and a holy dip in Ganga can purge all type of sins. This festival is celebrated with great fervour in the states of Bihar, Uttar Pradesh and West Bengal.



The sacred river to Hindus Ganga holds a special place for the Indian. Ganga is considered as the most holy and sacred rivers in India. This river is worshipped, with a belief that Goddess Ganga can wash away all sins of mankind. The name Dussehra comes from Dus which means ten and Hara which connotes defeat. Thus, it is believed that praying on this day can help you attain salvation from 10 sins. Ganga Dussehra is celebrated at major ghats of India such as Varanasi, Allahabad, Garh-Mukteshwar, Prayag, Haridwar and Rishikesh. Amidst hundreds and thousands of pilgrims, the priests perform aartis to goddess Ganga. All one can hear is the pilgrims and pundits praising and singing goddess Ganga.

The Ganga came out of the Supreme Being. She entered the feet of Lord Hari and reached Vaikuntha. She issued from Go­Loka and passed through the regions of Vishnu, Brahma, Siva, Dhruva, Chandra, Surya, Tapa, Jana and Maha, and reached Indra­Loka and flowed as Mandakini. From the celestial regions it was brought to the earth by the rigorous penance of Bhagiratha. It came about like this.

THE CURSE OF KAPILA

In the days of yore, there lived a great king, Sagara. He was one of the mighty monarchs in the Solar race. The incarnation of Lord Rama was in this race. The monarch performed one hundred Asvamedha sacrifices aspiring for Indrahood, kingship of the Devas. In the hundredth sacrifice, the sacrificial horse was stolen away by Indra for fear of being dethroned. by the aspirant. Tied to a post, the horse was left within the premises of Rishi Kapila’s Ashram.

All the sons of Sagara, sixty thousand in number, set out in search of the horse. As soon as they found the horse in front of the sage’s Ashram, they mistook the sage unhesitatingly for the thief, and began to wage war with him. The innocent sage, aroused by their thoughtless actions, cursed them all and burnt them to ashes.

BHAGIRATHA’S PENANCE

Time rolled on. Kings after kings ruled and died. Long after this lamentable incident, there arose another illustrious king, Bhagiratha, in the same family. He shuddered at the pitiable fate of his forefathers, and was extremely anxious to perform the necessary obsequies and religious rites levied by the scriptures. He consulted great Rishis and was advised to invoke Mother Ganga, who only could wash off the powerful curse of Rishi Kapila and satisfactorily fulfil his desire. Bhagiratha did great Tapas with all severities. Pleased with his penance, Mother Ganga appeared before him, and directed him to seek the help of somebody who could check Her flow, as otherwise the whole earth would be submerged in Her waters.

LORD SIVA RECEIVES THE GANGA

Again Bhagiratha sat doing rigorous penance for a full hundred years. It is needless to say that Lord Siva, the protector of all His devotees, was immensely pleased with the king and readily accepted to check and control Ganga through His matted locks. With surge, fury and foam, Ganga began to descend from celestial regions. Flashes of lightning, thunders from clouds, and the uncontrollable flow seemed as if a deluge was about to devour the whole world. But, Lord Siva coolly received Her in His matted locks and let Her drip over Him. This is the Ganga Saptami Day.

THROUGH RISHI JAHNU’S EARS

Taking Her course into the interior of the Himalayas, Ganga was about to wash away Rishi Jahnu’s Ashram. Sage Jahnu was naturally more powerful than Her and simply sipped the water. Bhagiratha was much disappointed. He did again severe penance to please Rishi Jahnu. At last, the sage let the Ganga through his ears. Flowing from this outlet, Ganga flowed with entire modesty and all­embracing filial love and motherly affection. By Her Divine Grace, She uplifted all the sixty thousand princes to the Highest Abode of immortal bliss. This day is celebrated as the most sanctifying Ganga Dussehra.

GANGA SAPTAMI AND GANGA DUSSEHRA

Ganga Saptami and Ganga Dussehra are observed in Northern India. Ganga Saptami generally falls during the last week of April. Ganga Dussehra falls on the tenth day of the bright half of the month of Jyeshta and celebrates the flowing of the holy Ganga at the request of Raja Bhagiratha. This is an important bathing day. A big Mela is held in Haridwar from this day until the full moon, the fifteenth of Jyeshta. 

Thursday, June 1, 2017

मंत्र जप के नियम

किसी भी जप के समय हमारा मन हमें सबसे ज्यादा परेशान करता है,  और निरंतर तरह तरह के विचार अपने मन में चलते रहेंगे | यही मन का स्वभाव है और वो इसी सब में उलझाये रखेगा | तो सबसे पहले हमें मन से उलझना नहीं है | बस देखते जाना है न विरोध न समर्थन, आप निरंतर जप करते जाइये | आप भटकेंगे बार बार और वापस आयेंगे | इसमें कोई नयी बात नहीं है ये सभी के साथ होता है | ये सामान्य प्रिक्रिया है | इसके लिए हमें माला से बहुत मदद मिलती है | मन हमें कहीं भटकाता है मगर यदि माला चलती रहेगी तो वो हमें वापस वहीँ ले आएगी | ये अभ्याश की चीज है जब आप अभ्याश करेंगे तो ही जान पाएंगे |



मंत्र जप के प्रकार :——

सामान्यतया जप के तीन प्रकार माने जाते हैं जिनका वर्णन हमें हमारी पुस्तकों में मिला है, वो हैं :-

१. वाचिक जप :- वह होता है जिसमें मन्त्र का स्पष्ट उच्चारण किया जाता है।

२. उपांशु जप- वह होता है जिसमें थोड़े बहुत जीभ व होंठ हिलते हैं, उनकी ध्वनि फुसफुसाने जैसी प्रतीत होती है।

३. मानस जप- इस जप में होंठ या जीभ नहीं हिलते, अपितु मन ही मन मन्त्र का जाप होता है।

मगर जब हम मंत्र जप प्रारंभ करते हैं तो हम जप की कई अलग अलग विधियाँ या अवश्था पाते हैं | जो मैंने अपने अनुभवों में महसूस किया है | उन विधियों का वर्णन मैं यहाँ कर रहा हूँ |

सबसे पहले हम मंत्र जप, वाचिक जप से प्रारंभ करते हैं | जिसमे की हम मंत्र जप बोलकर करते हैं, जिसे कोई पास बैठा हुआ व्यक्ति भी सुन सकता है | ये सबसे प्रारंभिक अवश्था है | सबसे पहले आप इस प्रकार शुरू करें | क्योंकि शुरुआत में आपको सबसे ज्यादा व्यव्धान आयेंगे | आपका मन बार बार दुनिया भर की बातों पर जायेगा | ऐसी ऐसी बातें आपको साधना के समय पर याद आएँगी | जो की सामान्यतया आपको याद भी नहीं होंगी | आपके आस पास की छोटी से छोटी आवाज पर आपका धयान जायेगा | जिन्हें की आप सामान्यतया सुनते भि नहीं हैं | जिससे की आपको बहुत परेशानी होगी | तो उन सब चीजों से अपना ध्यान हटाने के लिए आप जोर जोर से जप शुरू करेंगे | बोल बोलकर जप करते समय आपके जप की गति भी तेज़ हो जाएगी |

ये बात ध्यान देने की है की जितना भी आप बाहर जप करेंगे | उतना ही जप की गति तेज रहेगी और जैसे जैसे आप जितना अन्दर डूबते जायेंगे | उतनी ही आपकी गति मंद हो जाएगी | ये स्वाभाविक है, इसमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है | आप यदि प्रयाश करें तो बोलते हुए भी मंद गति में जप कर सकते हैं | मगर अन्दर तेज गति में नहीं कर सकते हैं |

अगली अवश्था आती है जब हमारी वाणी मंद होती जाती है | ये तब ही होता है जब आप पहली अवश्था में निपुण हो जाते हैं | जब आप बोल बोलकर जप करने में सहज हो गए और आपके मन में कोई विचार आपको परेशां नहीं कर रहा है तो दूसरी अवश्था में जाने का समय हो गया है | इसमें नए लोगों को समय लगेगा | मगर प्रयाश से वो स्थिती जरूर आएगी | तो जब आप सहज हो जाएँ तो सबसे पहले क्या करना है की अपनी ध्वनी को धीमा कर दें | और जैसे कोई फुसफुसाता है उस अवश्था में आ जाएँ | अब यदि कोई आपके पास बैठा भी है तो उसे ये पता चलेगा की आप कुछ फुसफुसा रहे हैं | मगर शब्द स्पस्ट नहीं जान पायेगा | जब आप पहली से दूसरी अवश्था में आते हैं तो फिर से आपको व्यवधान परेशान करेंगे | तो आप लगे रहिये, और ज्यादा परेशान हों तो फिर पहली अवश्था में आ जाएँ, और बोल बोलकर शुरू कर दें जब शांत हो जाएँ तो आवाज को धीमी कर दें और दूसरी अवश्था में आ जाएँ | थोडा समय आपको वहां पर अभ्यस्त होने में लगेगा |

जैसे ही आप वहां अभ्यस्त हुए तो धीमे से अपने होंठ भी बंद कर दें |

ये तीसरी अवश्था है जहाँ पर आपके अब होंठ भी बंद हो गए हैं | मात्र आपकी जिह्वा जप कर रही है | अब आपके पास बैठा हुआ व्यक्ति भी आपका जप नहीं सुन सकता है | मगर यहाँ भी वही दिक्कत आती है की जैसे ही आप होंठ बंद करते हैं तो आपका ध्यान दूसरी बातों पर जाने लगता है | मन भटकने लगता है | तो यहाँ भी आपको वही सूत्र अपनाना है की होंठों को हिलाकर जप करना शुरू कर दीजिये | जो की आपका अभ्यास पहले ही बन चूका है और जब शांत हो जाएँ तो चुपके से होंठ बंद कर लीजिये, और अन्दर शुरू हो जाइये | इसी तरह आपको अभ्याश करना होगा | मन आपको बहकता है तो आप मन को बहकाइए | और एक अवश्था से दूसरी अवश्था में छलांग लगाते जाइये |

इसके बाद चोथी अवश्था आती है मानस जप या मानसिक जप की | जब आपको कुछ समय हो जायेगा होठों को बंद करके जप करते हुए और आप इसके अभ्यस्त हो जायेंगे | भाइयों इस अवश्था तक पहुँचने में काफी समय लगता है | सब कुछ आपके अभ्याश व प्रयाश पर निर्भर करता है | तो उसके बाद आप अपनी जीभ को भी बंद कर देंगे | ये करना थोडा मुश्किल होता है क्योंकि जैसे ही आपकी जीभ चलना बंद होगी | तो आपका मन फिर सक्रीय हो जायेगा | और वो जाने कहाँ कहाँ की बातें आपके सामने लेकर आएगा | तो यहाँ भी वही युक्ति से काम चलेगा की जीभ चलाना शुरू कर दें | जब वहां आकाग्र हो जाये और फिर उसे बंद कर दें, और अन्दर उतर जाएँ और मन ही मन जप शुरू कर दें | धीरे धीरे आप यहाँ पर अभ्यस्त हो जायेंगे और निरंतर मन ही मन जप चलता रहेगा | इस अवश्था में आप कंठ पर रहकर जप करते रहते हैं |

इसके बाद किताबों में कोई और वर्णन नहीं मिलता है | मगर मार्ग यहाँ से आगे भी है | और असली अवश्था यहाँ के बाद ही आनी है |

इसके बाद आप और अन्दर डूबते जायेंगे | अन्दर और अन्दर धीरे धीरे | निरंतर अन्दर जायेंगे | लगभग नाभि के पास आप जप कर रहे होंगे | और धीरे धीरे जैसे जैसे आप वहां पर अभ्यस्त होंगे तो आप एक अवश्था में पाएंगे की मैं जप कर ही नहीं रहा हूँ |

बल्कि वो उठ रहा है | वो अपने आप उठ रहा है | नाभि से उठ रहा है | आप अलग है | हाँ आप देख रहे हैं की मैं जपने वाला हूँ ही नहीं | वो स्वयं उठ रहा है | आपका कोई प्रयाश उसके लिए नहीं है | आप अलग होकर मात्र द्रष्टा भाव से उसे देख रहे हैं और महसूस कर रहे हैं | ये शायद जप की चरम अवश्था है | निरंतर जप चल रहा है | वो स्वत है और आप द्रष्टा हैं | इसी अवश्था को अजपाजप कहा गया है | जिस अवश्था में आप जप नहीं कर रहें हैं मगर वो स्वयं चल रहा है |

धीरे धीरे इस अवश्था में आप देखेंगे कि आप कुछ और काम भी कर रहे हैं | तो भी जब भी आप ध्यान देंगे तो वो स्वयं चल रहा है | और यदि नहीं चल रहा है, तो जब भी आपका ध्यान वहां जाये | तो आप मानसिक जप शुरू कर दें | तो उस अवश्था में पहुँच जायेंगे |

शास्त्रों में जप के सभी फल इसी अवश्था के लिए कहे गए हैं | आप इस अवश्था में जप कीजिये और सभी फल आपको मिलेंगे | जप और ध्यान यहाँ पर एक ही हो जाते हैं | जैसे जैसे आप उस पर धयान देंगे तो आगे कुछ नहीं करना है | बस उस में एकाकार हो जाइये | और मंजिल आपके सामने होगी |

आपका प्रयास:—–

सबसे अच्छा तरीका है कि आप जिस भी मंत्र का जप करते हैं | उसे कंठस्थ करें और जब भी आपके पास समय हो तभी आप अन्दर ही अन्दर जप शुरू कर दें | आप आसन पर नियम से जो जप करते हैं | उसे करते रहें उसी प्रकार | बस थोडा सा अतिरिक्त प्रयास शुरू कर दें |



कई सारे लोग कहेंगे की हमें समय नहीं मिलता है आदि आदि | कितना भी व्य्शत व्यक्ति हो वो कुछ समय के लिए जरूर फ्री होता है | तो आपको बस सचेत होना है | अपने मन को आप निर्देश दें और ध्यान दें | बस जैसे ही आप फ्री हों तो जप शुरू | और कुछ करने की जरूरत ही नहीं है | बस यही नियम और धीरे धीरे आप दुसरे कम ध्यान वाले कार्यों को करते हुए भी जप करते रहेंगे | निरंतर उस जप में डूबते जाइये |

जब आप सोने के लिए बिस्तर पर जाये तो अपने सभी कर्म अपने इष्ट को समर्पित करें | अपने आपको उन्हें समर्पित करें | और मन ही मन जप शुरू कर दें | और धीरे धीरे जप करते हुए ही सो जाएँ | शुरू शुरू में थोडा परेशानी महसूस करेंगे मगर बस प्रयास निरंतर रखें | इससे क्या होगा की आपका शरीर तो सो जायेगा | मगर आपका सूक्ष्म शरीर जप करता रहेगा | आपकी नींद भी पूरी हो गयी और साधना भी चल रही है |

जैसे ही सुबह आपकी ऑंखें खुलें तो अपने इष्ट का ध्यान करें | और विनती करें की प्रभु आज मुझसे कोई गलत कार्य न हो | और यदि आज कोई ऐसी अवश्था आये तो आप मुझे सचेत कर देना और मुझे मार्ग दिखाना | इसके बाद मानसिक जप शुरू कर दें | सभी और नित्य कार्यों को करते हुए इसे निरंतर रखें | फिर जब जब आप कोई गलत निर्णय लेने लगेंगे तो आपके भीतर से आवाज आएगी | धीरे धीरे आप अपने आपमें में परिवर्तन महसूस करेंगे | और धीरे धीरे आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ जायेंगे |

मगर ये एक दिन में नहीं होगा | बहुत प्रयाश करना होगा | निरंतर चलना होगा | तभी मंजिल मिलेगी | इसलिए अपने आपको तैयार कीजिये और साधना में डूब जाइये | आपको सब कुछ मिलेगा |

ये सब मैंने अपने जीवन में प्रयोग किया है | और पूरी तरह जांचा परखा हुआ है | अगर कोई और शंका हो तो निसंदेह पूछिए | मगर मात्र पूछकर मत रूक जाना | आगे बढिए और सब कुछ प्राप्त कीजिये | सभी आगे बढे व अपने स्वरूप को जाने इसि कामना के साथ |

मंत्र जप का मूल भाव होता है- मनन। जिस देव का मंत्र है उस देव के मनन के लिए सही तरीके धर्मग्रंथों में बताए है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही, एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।


यहां मंत्र जप से संबंधित 12 जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं-

१-मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।

२-मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।

३-अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।

४-मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें।

५-एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें।

६ -मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।

७ -किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।

८-मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें।

९-मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।

१०-मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय।

११-मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए।

१२ -माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए।


कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें। 

Tuesday, May 30, 2017

मिथुन राशि में सूर्य का गोचर

आगामी 15 जून 2017 को सूर्य, वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश करने जा रहा है, निश्कित तौर पर यह मिथुन के साथ-साथ अन्य राशियों के जातकों पर भी अपना प्रभाव डालेगा। प्रभाव क्या और कैसा होगा..... चलिए ये जानते हैं।



मेष राशि 

सूर्य मेष राशि के तीसरे भाव में जाएगा, जिसकी वजह से आपके निर्णय मजबूत होंगे और दृढ़ निश्चयी साबित होंगे। यह गोचर आपके स्वभाव में उग्रता ला सकता है और जहां आप कार्य करते हैं वहां आपकी छवि को नकारात्मक भी कर सकता है। प्रेम संबंध अच्छे रहेंगे। आपको श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। 

वृषभ राशि 

सूर्य आपकी राशि के दूसरे ग्रह में रहेंगे। आपकी आमदनी बढ़ेगी और प्रॉपर्टी में भी मुनाफ होगा। अगर आप किसी से बहस करेंगे तो नुकसान आपका ही होगा, आपको अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए। आप अपनी कोई प्रॉपर्टी किराए पर दे सकते हैं, आपको लाभ होगा। आपको कन्याओं की सेवा करनी चाहिए। 

मिथुन राशि
 
सूर्य आपकी राशि में ही गोचर करने जा रहा है और पहले भाव में रहेगा। इस दौरान आपका स्वभाव आक्रामक रहेंगे और ये आपके प्रेम संबंधों में रुकावट लाएगा। विवाहित हैं तो पति-पत्नी के साथ झगड़ा हो सकता है। जीवनसाथी के ऊपर हावी होने की कोशिश में आपके संबंध बिगड़ सकते हैं। आपको प्रत्येक रविवार गुड़ खाना चाहिए। 

कर्क राशि 

सूर्य आपकी राशि के बारहवें भाव में जाएगा, आपके विदेश जाने के भी योग बन रहे हैं। आप अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेंगे, अदालती मामलों में सफलता मिलेगी। शत्रुओं पर आप विजय प्राप्त करेंगे। पैसों के अधिक व्यय से परेशान रहेंगे, आपको अपनी सेहत का ध्यान रखना होगा। अपने जीवन साथी की सेहत का ध्यान रखें। आपको भगवान शिव की अराधना करनी चाहिए। 

सिंह राशि 

आपकी राशि के बारहवें भाव में सूर्य प्रवेश करने जा रहा है। आपको इस गोचर से बड़ा लाभ प्राप्त होगा। दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच आपकी छवि बहुत अच्छी हो जाएगी। प्रभावी लोगों के साथ आपके संबंध अच्छे होंगे और किसी सरकारी योजना का भी लाभ मिल सकता है। आपको माथे पर केसर का तिलक लगाना चाहिए। 

कन्या राशि 

सूर्य आपकी राशि के दसवें भाव में प्रवेश कर रहा है, इस गोचर से ऑफिस में प्रमोशन हो सकता है। विदेश यात्रा से मुनाफा मिलेगा और प्रोफेशनल लाइफ भी अच्छी रहेगी। लेकिन घर का माहौल अशांत रह सकता है। माता-पिता की सेहत का ध्यान रखें, आपको कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ सकती है। आपको सुबह 8 बजे से पहले सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए।

 तुला राशि  

सूर्य का गोचर आपकी राशि के चौथे भाव में है। आपकी आय बढ़ेगी और समाज में पिता का रुतबा समाज में ऊंचा होगा। गोचर के दौरान किसी लंबी दूरी की यात्रा कर सकते हैं। भाई-बहन के साथ विवाद हो सकता है। उच्च पदाधिकारियों से लाभ होगा और कॅरियर में उछाल देखने को मिल सकता है। आपको सूर्य देव को नियमित तौर पर जल चढ़ाना चाहिए। 

वृश्चिक राशि 

इस गोचर में सूर्य आपकी कुंडली के आठवें भाव में जाएगा। आपको अपनी सेहत का ध्यान रखना होगा। आपको मसालेदार भोजन नहीं करना चाहिए। शायद आपको कोई अनचाही यात्रा करनी पड़ सकती है, आर्थिक हानि भी संभव है। कॅरियर में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है। आपको शिव जी की अराधना अवश्य करनी चाहिए।

धनु राशि 

सूर्य का गोचर आपकी राशि के सातवें भाव में होने जा रहा है। आपको अपने जीवनसाथी से कोई लाभ मिल सकता है। कड़वाहट भरे शब्दों का प्रयोग ना करें, इससे विवाहित जीवन में खलल पैदा होगा। प्रेम विवाह करना चाहते हैं तो ये समय उत्तम है। आपको तांबे के लोटे में जल और कुमकुम मिलाकर सूर्यदेव को अर्पित करना चाहिए।  

मकर राशि
 
सूर्य का गोचर आपकी राशि के छठे भाव में होगा। इस दौरान आप अपने विरोधियों पर हावी रहने वाले हैं। अगर आप उधार चुकाना चाहते हैं तो इस दौरान यह संभव है। आपको स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो सकती है। कोट-कचहरी के मामले आपके पक्ष में आएंगे। रविवार के दिन बैल को गेहूं और गुड़ खिलाएं। 

कुम्भ राशि 

सूर्य का गोचर आपकी राशि के पांचवें भाव में है, इस कारण आपके बच्चों की तबियत बिगड़ सकती है। आपके प्रेम संबंधों में दूरियां और तकरार दोनों आ सकते हैं। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं आपको इस दौरान काफी परेशान कर सकती हैं। आपको रविवार के दिन तांबे की धातु से बने किसी बर्तन का दान करना चाहिए। 

मीन राशि

सूर्य आपकी राशि से चौथे भाव में गोचर करेगा। इस दौरान घर में लड़ाई-झगड़ा होने के संकेत हैं। यदि जीवन साथी कामकाजी है तो उनको गोचर का लाभ मिलेगा। आप अपने कॅरियर में अच्छे परिणाम प्राप्त करेंगे। आपको रविवार के दिन गेहूं का दान करना चाहिए। 

Wednesday, May 24, 2017

शनि जयंती पर क्या उपाय करें

शनि देव मनुष्य के किए गए कर्मों के आधार पर उसे दंड देते हैं, यही वजह है कि जब भी किसी जातक पर शनि की साढ़े साती आती है तब उसे शनि देव के कोप का भागी बनना पड़ता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि शनि देव सिर्फ दंड ही देते हैं, अगर किसी पर शनि की कृपा हो जाए तो वह व्यक्ति दुनिया की सारी खुशियां पा लेता है। विशेषकर तुला और वृष लग्न की कुंडलियों में अगर शनि लग्न में शुभ स्थिति में विराजमान हैं तो ऐसे व्यक्ति के लिए शनि की साढ़े साती राजयोग लेकर आती है। लेकिन ऐसा सौभाग्यशाली हजारों में से कोई एक ही होता है। शनि देव को प्रसन्न कर, उनके कोप को शांत करने के लिए बहुत से शास्त्रीय उपाय मौजूद हैं, हनुमत अराधना उनमें से एक है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है। इस दिन शनि देव की अराधना करने और उन पर तेल चढ़ाने से मनुष्य के पाप कृत्यों में कमी आती है।



इस बार शनि अमावस्या 25 मई को है, इस दिन सूर्य, चंद्र और मंगल एक साथ वृशभ राशि में बैठेंगे। धनु राशि में शनि वैसे ही वक्री है। शनि के इस योग का आपकी राशि पर क्या असर है और आपको शनि जयंती पर क्या उपाय करने चाहिए, चलिए जानते हैं।

मेष राशि


इस राशि पर पहले से ही शनि की ढैय्या का प्रभाव है। 21 जून के बाद आपको शनि देव लाभ पहुंचाएंगे। किसी पर भरोसा ना करें और कोई भी जोखिम भरा निर्णय ना लें। आने वाला समय आपके लिए अच्छ रहेगा। शनि जयंती पर किसी गरीब व्यक्ति को तेल और नमक का दान करें।

वृषभ राशि

इस राशि के जातक 21 जून तक शनि की ढैय्या के चपेट में रहने वाले हैं। तब तक परेशानियां न्यूनतम रहने वाली हैं और काम आसानी से पूरे होते चले जाएंगे। जितने भी जरूरी कार्य हैं, उन्हें इस दौरान पूरा करने की कोशिश करें। शनि जयंती पर किसी गरीब को गुड़ और चने का दान दें।

मिथुन राशि

आपकी राशि पर शनि की दृष्टि है, लेकिन वक्री होने से आपको ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी। शनि जयंती पर निर्धनों को पुराने कपड़े और अन्न का दान करें।

कर्क राशि

आपकी राशि के लिए शनि शुभ हैं, व्यवसाय में तरक्की होगी। नई योजनाएं सफल होने की संभावनाएं हैं। अगर विवादों में फंसे हैं, तो उनमें विजय मिलेगी। शनि जयंती पर गाय को हरी घास और कुत्ते को रोटी खिलाएं।

सिंह राशि

सिंह राशि पर राहु का गोचर पहले से ही चल रहा है, इस बीच शनि का प्रभाव होने से तनाव और बढ़ेगा। आपके कार्यों में देरी होगी और व्यापार में भी परेशानियां आंएगी। आय के साधन बाधित होंगे। आपको शनि जयंती के दिन पक्षियों को दाना डालना चाहिए और बुजुर्गों की सहायता करनी चाहिए।

कन्या राशि

 जोखिम उठाने की सोचें भी नहीं। शनि जयंती पर निर्धनों के बीच चावल का दान करें।

तुला राशि

शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव अक्टूबर के बाद समाप्त होगा। 21 जून के बाद शनि वापस अपना प्रभाव दिखाएंगे। तब तक शांति बनाए रखें और जोखिम भरे निर्णय ना लें। शनि जयंती पर खाने की चीजों दान करें। 

वृश्चिक राशि

21 जून के बाद शनि देव फिर से आपकी राशि पर प्रभाव दिखाने लगेंगे। हर काम सावधानी के साथ करें, ऐसा कोई निर्णय ना लें जो परेशानियां बढ़ा दे। निर्धन लोगों में अन्न का वितरण करें और पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करें।

धनु राशि

21 जून के बाद शनि आपकी राशि से निकल जाएंगे लेकिन साढ़े साती का प्रभाव बना रहेगा। परिवार और दोस्तों का साथ और सहयोग निरंतर मिलता रहेगा। 26 अक्टूबर के बाद शनि फिर से इसी राशि में आ जाएंगे। शनि जयंती पर असहय बुजुर्गों की सेवा करें और अन्न का दान करें।

मकर राशि

अभी तो आपकी राशि की साढ़े साती चल रही है लेकिन 21 जून से लेकर 26 अक्टूबर तक आप साढ़े साती से मुक्त रहेंगे। शनि देव आपकी राशि के स्वामी हैं, इसलिए ज्यादा समस्याएं नहीं आएंगी। मुश्किलों का हल समय पर निकलेगा। शनि जयंती पर पशु-पक्षियों के लिए जल की व्यवस्था कीजिए।

कुंभ राशि

इस राशि के जातकों के लिए समय हर तरीके से शुभ है। नौकरी में तरक्की होगी और व्यवसाय में मुनाफा होगा। यात्राओं के परिणाम सुखद रहेंगे। गरीबों के बीच मिठाइयों का दान करें।

मीन राशि

ये राशि इस समय प्रबल रूप से मौजूद है। आप जो भी कार्य करेंगे उनमें सफलता प्राप्त होगी। समय उत्तम है, विवाह के लिए अच्छे प्रस्ताव प्राप्त होंगे। आय के अवसर मिलेंगे, जो मुनाफा लाएंगे। शनि जयंती पर निर्धन लोगों को फल और रस का दान करें। 

Tuesday, May 23, 2017

गणेश उपासना

हिंदू संस्कृति में भगवान गणेश का स्थान सर्वोपरी है। हर शुभ काम से पहले भगवान गणेश का आह्वान जरूरी है। प्रत्येक वर्ष गणेश चतुर्थी के दिन गणेश पूजा की जाती है। लेकिन इससे अलग भी प्रत्येक बुधवार को गणेश आराधना करना आपके लिए खुशियों के द्वार खोल देगा। गणेश स्तुति के लिए बुधवार का दिन विशेष माना गया है। इस दिन बुध ग्रह के लिए भी आप पूजा-अर्चना कर सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में बुध ग्रह अशुभ स्थिति में है तो बुधवार को पूजा करने से इस दोष का निवारण हो सकता है।

देवता भी अपने कार्यों को बिना किसी रुकावट के पूरा करने के लिए पहले गणेश उपासना करते हैं। शास्त्रों में भी भगवान गणेश की महत्ता का वर्णन किया गया है। बताया गया है कि एक बार भगवान शंकर त्रिपुरासुर का वध करने में असफल हो गए। असफलता पर महादेव ने विचार किया तो शिवजी को ज्ञात हुआ कि वे गणेशजी की अर्चना किए बगैर त्रिपुरासुर से युद्ध करने चले गए थे। इसके बाद शिवजी ने गणेश पूजन करके दोबारा त्रिपुरासुर पर प्रहार किया, तब उनका मनोरथ पूर्ण हुआ। सनातन एवं हिंदू शास्त्रों में गणेश जी को सभी दुखों और परेशानियों को हरने वाला देवता बताया गया है। गणेश भक्ति से शनि समेत सभी ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। प्रत्येक बुधवार को गणेश उपासना करने से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है। साथ ही उसकी सभी रुकावट दूर होती हैं।



प्रात: काल स्नानआदि से निवृत्त होकर सबसे पहले गणेश प्रतिमा (यदि किसी धातु की हो तो) को मिट्टी और नींबू से अच्छे से साफ करके पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की और मुख करके लाल रंग के आसान पर विराजमान करें। आप शुद्ध आसन पर भगवान के सामने अपना मुख करके बैठे, इसके बाद भगवान का ध्यान करते हुए पूजन सामग्री जैसे पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली, लाल चंदन और मोदक आदि गणेश भगवान को समर्पित करें। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान गणेश के पूजन में तुलसी दल और तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। उन्हें किसी शुद्ध स्थान से चुनी हुई दुर्वा (दूब घास) को धोकर ही चढ़ाना चाहिए। भगवान गणेश को मोदक (लड्डू) प्रिय हैं इसलिए उन्हें देशी घी से बने मोदक का प्रसाद चढ़ाना चाहिए। पूजा करते समय किसी प्रकार का क्रोध न करें। यह आपके और परिवार दोनों के लिए सही नहीं रहेगा।



सभी चीजों को अर्पित करने के बाद भगवान गणेश का स्मरण कर ‘ऊं गं गणपतये नम:’ मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। इस मंत्र का अर्थ है कि मैं ऐसे प्रभु का स्मरण करता हूं जो मेरे सभी दु़खों को दूर करते हैं। बुधवार के दिन घर में सफेद रंग के गणपति की स्थापना करने से समस्त प्रकार की तंत्र शक्ति का नाश होता है। घर के किसी व्यक्ति पर ऊपरी हवा का असर भी नहीं होता। धन की समस्या दूर करने या रोजगार में सफलता के लिए बुधवार को श्री गणेश को घी और गुड़ का भोग लगाएं। थोड़ी देर बाद भोग लगाए हुए घी और गुड़ गाय को खिला दें। ये उपाय करने से धन संबंधी परेशानी दूर होती है। परिवार में कलह हो तो बुधवार के दिन दूब घास के गणेश जी की प्रतीकात्मक मूर्ति बनाएं। इसे घर में पूजा के स्थान में स्थापित करें और प्रतिदिन इसकी विधि-विधान से पूजा करें। घर का क्लेश धीरे-धीरे कम हो जाएगा। घर के मुख्य दरवाजे पर गणेशजी की प्रतिमा लगाएं। बिल्कुल ऐसी ही प्रतिमा घर के अंदर भी लगाएं। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। कोई भी नकारात्मक शक्ति घर में प्रवेश नहीं कर पाती।

Monday, May 22, 2017

मंगल ग्रह का मिथुन राशि प्रवेश

27 मई दोपहर 1 बजकर 53 मिनट पर मंगल ग्रह का राशि परिवर्तन होगा। इस बार यह ग्रह वृषभ राशि से निकलर मिथुन राशि प्रवेश करेगा और यहां एक महीने से भी अधिक के लिए बना रहेगा। इसके बाद 11 जुलाई 2017 को मंगल ग्रह का कर्क राशि में स्थानांतरण होगा। किंतु इस दौरान मिथुन राशि के साथ-साथ अन्य ग्यारह राशियों पर क्या प्रभाव होगा, हम आपको यहां राशि अनुसार बताने जा रहे हैं। नोट: यह ज्योतिष परिणाम आपकी चंद्र राशि यानि कि कुंडली की राशि पर आधारित हैं।


मेष राशि

मंगल ग्रह आपकी राशि के तीसरे भाव में गोचर करेगा, जो कि आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा। यह भाव आपके कॅरियर और आत्म विश्वास से जुड़ा है, परिणाम स्वरूप इस दौरान आपको दोनों पक्षों में सफलता हाथ लगेगी। इसके अलावा भाग्य भी आपका साथ देगा। किंतु माता-पिता की सेहत को लेकर थोड़ा सतर्क रहें।

वृषभ राशि

मंगल ग्रह का आपकी राशि के दूसरे भाव में गोचर होगा, जिसका सीधा अटैक आपके धन पर होगा। आपकी आमदनी में अधिक बदलाव नहीं आएगा किंतु आप जरूरत से अधिक धन खर्च करेंगे। इसके अलावा जीवनसाथी की सेहत को नजरअंदाज ना करें। मंगल के इस गोचर के दौरान यदि इस ग्रह को शांत करने के उपाय करेंगे तो नुकसान से बच सकते हैं आप।

मिथुन राशि


आप ही की राशि में मंगल ग्रह के आने से आपकी कुंडली के प्रथम भाव पर इसका असर देखने को मिलेगा। किंतु घबराने जैस कुछ भी नहीं है, यह गोचर आपके भाग्य को जगाएगा और नए अवसर दिलाएगा। लेकिन इस दौरान आपका क्रोध भी बढ़ेगा, जो कि मंगल ग्रह के मजबूत होने का सबसे बड़ा संकेत होता है।

कर्क राशि

मंगल ग्रह आपकी राशि के बारहवें भाव में गोचर करेगा, जिसके कारण आपकी सेहत को नुकसान हो सकता है। या तो अचानक बीमार बड़ सकते हैं या लंबे समय से चली आ रही बीमारी पहले से भी खतरनाक साबित हो सकती है। इसलिए गोचर के समीप आने से पहले ही आपको मंगल ग्रह को शांत करने के उपाय कर लेने चाहिए।

सिंह राशि

मंगल का आपकी राशि के ग्यारहवें भाव में गोचर होगा और यह ग्रहीय परिवर्तन आपके लिए शुभ होने वाला है। नए अवसर मिलेंगे, संभव है कि आपको ऑफिस से कोई अच्छी खबर सुनने को मिल जाए। इसके अलावा आपका आत्मविश्वास भी इस दौरान बढ़ता हुआ दिखाई देगा। किंतु मंगल की मजबूती आपको गुस्सा भी प्रदान करेगा, इसको काबू में रखना जरूरी होगा।

कन्या राशि

मंगल ग्रह का दसवें भाव में आना आपको लिए बहुत ज्यादा शुभ होने वाला है। आपके कॅरियर में अचानक उछाल आएगा, हो सकता है कि आपको प्रमोशन भी मिल जाए। लेकिन अगर आपका खुद का बिजनेस है तो इस दौरान नए क्लाइंट मिल सकते हैं जो आपको बड़े फायदे का सौदा दे जाएं। किंतु इस दौरान मंगल की मजबूती आपको गुस्सा भी प्रदान करेगा, इसको काबू में रखना जरूरी होगा।

तुला राशि

मंगल ग्रह आपकी राशि से नौवें भाव में जाएगा। इस दौरान आपकी आय में वृद्धि हो सकती है और आप किसी लंबी दूरी की यात्रा कर सकते हैं। अगर शादीशुदा हैं तो जीवनसाथी का खूब प्यार और सपोर्ट मिलेगा। आपको भाई-बहन और माता की सेहत का ख्याल रखना होगा।

वृश्चिक राशि

आपकी राशि में इस बार मंगल आठवें भाव में आ रहा है, जिसके प्रभाव से आपको कोई शारीरिक पीड़ा हो सकती है। यह गोचर आपको अप्रत्याशित लाभ भी दे सकता है, लेकिन वहीं कुछ कानूनी मसलों में भी फंस सकते हैं आप। यह गोचर आपके लिए मिलाजुला रहने वाला है। इसलिए हर फैसला सोच-समझकर ही लें।

धनु राशि

मंगल ग्रह का आपकी राशि के सप्तम भाव में गोचर होगा, जिसके सीधा असर आपके स्वभाव पर होगा। आपका रवैया हर समय आक्रामकता से पूर्ण होगा और साथ ही छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ापन एवं क्रोध भी देखने को मिल सकता है। इस गुस्से पर बहुत ज्यादा कंट्रोल करने की जरूरत होगी।

मकर राशि

मंगल आपकी राशि से छठे भाव में जाएगा। क़ानूनी मसलों में आपको सफलता मिलने की संभावना है। मंगल इस दौरान आपको पूरा सपोर्ट देगा, जिसके चलते आपका स्वभाव भी बदलेगा। मंगल का क्रोध और आक्रामकता वाला तत्व आपमें देखने को मिलेगा। वहीं दूसरी ओर बच्चों को गोचर का लाभ मिलेगा, परंतु वे स्वभाव से ज़िद्दी हो सकते हैं।

कुम्भ राशि

मंगल आपकी राशि से पांचवें भाव में जाएगा। यह गोचर आपके लिए मिलाजुला होगा। एक ओर नौकरी में प्रमोशन या परिवर्तन जैसी परिस्थिति बनेगी लेकिन दूसरी ओर आपके खर्चे बहुत ज्यादा बढ़ने वाले हैं।

मीन राशि

मंगल ग्रह का इस दौरान आपकी राशि के तीसरे भाव में गोचर होगा। इसका असर आपकी माता जी की सेहत पर होगा। उनकी सेहत में थोड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है। उनके साथ आपका वैचारिक मतभेद भी संभव है। घरेलू जीवन से आप थोड़े असंतुष्ट दिख सकते हैं। बितना ही नहीं, आपके शादीशुदा जीवन में भी शांति कम हो सकती है। 

Wednesday, May 17, 2017

रुद्राक्ष

पौराणिक मान्यताएं हैं कि कि शिव के नेत्रों से रुद्राक्ष का उद्भव हुआ और यह हमारी हर तरह की समस्या को हरने की क्षमता रखता है। कहते हैं रुद्राक्ष जितना छोटा हो, यह उतना ही ज्यादा प्रभावशाली होता है। सफलता, धन-संपत्ति, मान-सम्मान दिलाने में सहायक होता है रुद्राक्ष, लेकिन हर चाहत के लिए अलग-अलग रुद्राक्ष को धारण किया जाता है। वैसे, रुद्राक्ष संबंधी कुछ नियम भी हैं, जैसे- रुद्राक्ष की जिस माला से आप जाप करते हैं उसे धारण नहीं किया जाना चाहिए। रुद्राक्ष को किसी शुभ मुहूर्त में ही धारण करना चाहिए। इसे अंगूठी में नहीं जड़ाना चाहिए। कहते हैं, जो पूरे नियमों का ध्यान रख श्रद्धापूर्वक रुद्राक्ष को धारण करता है, उनकी सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि जिन घरों में रुद्राक्ष की पूजा होती है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। यह भगवान शंकर की प्रिय चीज मानी जाती है। आइए जानें, कौन से फायदे के लिए कितने मुख वाले रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए ।

एक मुखी रुद्राक्ष
इस रुद्राक्ष को धारण करने से शिव तत्व की प्राप्ति होती है। रुद्राक्षों में एक मुखी रुद्राक्ष का विशेष महत्व है। असली एक मुखी रुद्राक्ष बहुत दुर्लभ है। इसका मूल्य विशेषतः अत्यधिक होता है। यह अभय लक्ष्मी दिलाता है। इसके धारण करने पर सूर्य जनित दोषों का निवारण होता है। नेत्र संबंधी रोग, सिर दर्द, हृदय का दौरा, पेट तथा हड्डी संबंधित रोगों के निवारण हेतु इसको धारण करना चाहिए। यह यश और शक्ति प्रदान करता है। इसे धारण करने से आध्यात्मिक उन्नति, एकाग्रता, सांसारिक, शारीरिक, मानसिक तथा दैविक कष्टों से छुटकारा, मनोबल में वृद्धि होती है। कर्क, सिंह और मेष राशि वाले इसे माला रूप में धारण अवश्य करें।
एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने का मंत्र: ऊँ एं हे औं ऐं ऊँ। इस मंत्र का जाप 108 बार (एक माला) करना चाहिए तथा इसको सोमवार के दिन धारण करें।
दो मुखी रुद्राक्ष
दो मुखी रुद्राक्ष को शिव शक्ति का स्वरूप माना जाता है। यह चंद्रमा के कारण उत्पन्न प्रतिकूलता के लिए धारण किया जाता है। हृदय, फेफड़ों, मस्तिष्क, गुर्दों तथा नेत्र रोगों में इसे धारण करने पर लाभ पहुंचता है। यह ध्यान लगाने में सहायक है। इसे धारण करने से सौहार्द्र लक्ष्मी का वास रहता है। इससे भगवान अर्द्धनारीश्वर प्रसन्न होते हैं। उसकी ऊर्जा से सांसारिक बाधाएं तथा दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है दूर होती हैं। इसे स्त्रियांे के लिए उपयोगी माना गया है। संतान जन्म, गर्भ रक्षा तथा मिर्गी रोग के लिए उपयोगी माना गया है।
धनु व कन्या राशि वाले तथा कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न वालों के लिए इसे धारण करना लाभप्रद होता है। दो मुखी रुद्राक्ष धारण का मंत्र: ऊँ ह्रीं क्षौं श्रीं ऊँ।
तीन मुखी रुद्राक्ष
तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि का रूप कहा गया है। मंगल इसका अधिपति ग्रह है। मंगल ग्रह निवारण हेतु इसे धारण किया जाता है की प्रतिकूलता के। यह मूंगे से भी अधिक प्रभावशाली है। मंगल को लाल रक्त कण, गुर्दा, ग्रीवा, जननेन्द्रियों का कारक ग्रह माना गया है। अतः तीन मुखी रुद्राक्ष को ब्लडप्रेशर, चेचक, बवासीर, रक्ताल्पता, हैजा, मासिक धर्म संबंधित रोगों के निवारण हेतु धारण करना चाहिए। इसके धारण करने से श्री, तेज एवं आत्मबल मिलता है। यह सेहत व उच्च शिक्षा के लिए शुभ फल देने वाला है। इसे धारण करने से दरिद्रता दूर होती है तथा पढ़ाई व व्यापार संबंधित प्रतिस्पर्धा में सफलता मिलती है। अग्नि स्वरूप होने के कारण इसे धारण करने से अग्नि देव प्रसन्न होते हैं, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा शरीर स्वस्थ रहता है। मेष, सिंह, धनु राशि वाले तथा मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन लग्न के जातकों को इसे अवश्य धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं।
तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र – ऊँ रं हैं ह्रीं औं। इस मंत्र को प्रतिदिन 108 बार यथावत पढ़ें।
चार मुखी रुद्राक्ष
चार मुखी रुद्राक्ष को ब्रह्म स्वरूप माना जाता है। बुध ग्रह की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए इसे धारण करना चाहिए। मानसिक रोग, पक्षाघात, पीत ज्वर, दमा तथा नासिका संबंधित रोगों के निदान हेतु इसे धारण करना चाहिए। चार मुखी रुद्राक्ष धारण करने से वाणी में मधुरता, आरोग्य तथा तेजस्विता की प्राप्ति होती है। इसमें पन्ना रत्न के समान गुण हैं। सेहत, ज्ञान, बुद्धि तथा खुशियों की प्राप्ति में सहायक है। इसे चारों वेदों का रूप माना गया है तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चतुर्वर्ग फल देने वाला है। इसे धारण करने से सांसारिक दुःखों, शारीरिक, मानसिक, दैविक कष्टों तथा ग्रहों के कारण उत्पन्न बाधाओं से छुटकारा मिलता है। वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर व कुंभ लग्न के जातकों को इसे धारण करना चाहिए।
चार मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र – ऊँ बां क्रां तां हां ईं। सोमवार को यह मंत्र 108 बार जपकर धारण करें।
पांच मुखी रुद्राक्ष
इस रुद्राक्ष को रुद्र का स्वरूप कहा गया है। बृहस्पति ग्रह की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए इसको धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से निर्धनता, दाम्पत्य सुख में कमी, जांघ व कान के रोग, मधुमेह जैसे रोगों का निवारण होता है। पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने वालों को सुख, शांति व प्रसिद्धि प्राप्त होते हैं। इसमें पुखराज के समान गुण होते हैं। यह हृदय रोगियों के लिए उ Ÿ ाम है। इससे आत्मिक विश्वास, मनोबल तथा ईश्वर के प्रति आसक्ति बढ़ती है। मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन वाले जातक इसे धारण कर सकते हैं।
पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ऊँ ह्रां क्रां वां हां। सोमवार की सुबह मंत्र एक माला जप कर, इसे काले धागे में विधि पूर्वक धारण करना चाहिए।
छः मुखी रुद्राक्ष
छः मुखी रुद्राक्ष भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का स्वरूप है। शुक्र ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे अवश्य धारण करना चाहिए। नेत्र रोग, गुप्तेन्द्रियों, पुरुषार्थ, काम-वासना संबंधित व्याधियों में यह अनुकूल फल प्रदान करता है। इसके गुणों की तुलना हीरे से होती है। यह दाईं भुजा में धारण किया जाता है। इसे प्राण प्रतिष्ठित कर धारण करना चाहिए तथा धारण के समय ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। इसे हर राशि के बच्चे, वृद्ध, स्त्री, पुरुष कोई भी धारण कर सकते हैं। गले में इसकी माला पहनना अति उ Ÿ ाम है। कार्तिकेय तथा गणेश का स्वरूप होने के कारण इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने वाले पर माँ पार्वती की कृपा होती है।
आरोग्यता तथा दीर्घायु प्राप्ति के लिए वृष व तुला राशि तथा मिथुन, कन्या, मकर व कुंभ लग्न वाले जातक इसे धारण कर लाभ उठा सकते हैं। छः मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं क्लीं सौं ऐं’। इसे धारण करने के पश्चात् प्रतिदिन ‘ऊँ ह्रीं हु्रं नमः’ मंत्र का एक माला जप करें।
सात मुखी रुद्राक्ष
इस रुद्राक्ष के देवता सात माताएं व हनुमानजी हैं। यह शनि ग्रह द्वारा संचालित है। इसे धारण करने पर शनि जैसे ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है तथा नपुंसकता, वायु, स्नायु दुर्बलता, विकलांगता, हड्डी व मांस पेशियों का दर्द, पक्षाघात, सामाजिक चिंता, क्षय व मिर्गी आदि रोगों में यह लाभकारी है। इसे धारण करने से कालसर्प योग की शांति में सहायता मिलती है। यह नीलम से अधिक लाभकारी है तथा किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं देता है। इसे गले व दाईं भुजा में धारण करना चाहिए। इसे धारण करने वाले की दरिद्रता दूर होती है तथा यह आंतरिक ज्ञान व सम्मान में वृद्धि करता है। इसे धारण करने वाला उ Ÿ ारो Ÿ ार उ Ÿ ाम प्रगति पथ पर चलता है तथा कीर्तिवान होता है। मकर व कुंभ राशि वाले, इसे धारण कर लाभ ले सकते हैं।
सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रं क्रीं ह्रीं सौं’। इसे सोमवार के दिन काले धागे में धारण करें।
आठ मुखी रुद्राक्ष 
आठ मुखी रुद्राक्ष में कार्तिकेय, गणेश और गंगा का अधिवास माना जाता है। राहु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे धारण करना चाहिए। मोतियाविंद, फेफड़े के रोग, पैरों में कष्ट, चर्म रोग आदि रोगों तथा राहु की पीड़ा से यह छुटकारा दिलाने में सहायक है। इसकी तुलना गोमेद से की जाती है। आठ मुखी रुद्राक्ष अष्ट भुजा देवी का स्वरूप है। यह हर प्रकार के विघ्नों को दूर करता है। इसे धारण करने वाले को अरिष्ट से मुक्ति मिलती है। इसे सिद्ध कर धारण करने से पितृदोष दूर होता है। मकर और कुंभ राशि वालों के लिए यह अनुकूल है। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुंभ व मीन लग्न वाले इससे जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रां ग्रीं लं आं श्रीं’। सोमवार के दिन इसे खरीदकर काले धागे में धारण करें।
नौ मुखी रुद्राक्ष 
नौ मुखी रुद्राक्ष को नव-दुर्गा स्वरूप माना गया है। केतु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे धारण करना चाहिए। ज्वर, नेत्र, उदर, फोड़े, फुंसी आदि रोगों में इसे धारण करने से अनुकूल लाभ मिलता है। इसे धारण करने स केतु जनित दोष कम होते हैं। यह लहसुनिया से अधिक प्रभावकारी है। ऐश्वर्य, धन-धान्य, खुशहाली को प्रदान करता है। धर्म-कर्म, अध्यात्म में रुचि बढ़ाता है। मकर एवं कुंभ राशि वालों को इसे धारण करना चाहिए।
नौमुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं बं यं रं लं’। सोमवार को इसका पूजन कर काले धागे में धारण करना चाहिए।
दस मुखी रुद्राक्ष
दस मुखी रुद्राक्ष में भगवान विष्णु तथा दसमहाविद्या का निवास माना गया है। इसे धारण करने पर प्रत्येक ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है। यह एक शक्तिशाली रुद्राक्ष है तथा इसमें नवरत्न मुद्रिका के समान गुण पाये जाते हैं। यह सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम है। जादू-टोने के प्रभाव से यह बचाव करता है। ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने से पूर्व इसे प्राण-प्रतिष्ठित अवश्य कर लेना चाहिए। मानसिक शांति, भाग्योदय तथा स्वास्थ्य का यह अनमोल खजाना है। सर्वग्रह इसके प्रभाव से शांत रहते हैं। मकर तथा कुंभ राशि वाले जातकों को इसे प्राण-प्रतिषिठत कर धारण करना चाहिए।
दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं ऊँ’। काले धागे में सोमवार के दिन धारण करें।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष 
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष भगवान इंद्र का प्रतीक है। यह ग्यारह रुद्रों का प्रतीक है। इसे शिखा में बांधकर धारण करने से हजार अश्वमेध यज्ञ तथा ग्रहण में दान करने के बराबर फल प्राप्त होता है। इसे धारण करने से समस्त सुखों में वृद्धि होती है। यह विजय दिलाने वाला तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने वाला है। दीर्घायु व वैवाहिक जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है। विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों तथा विकारों में यह लाभकारी है तथा जिस स्त्री को संतान प्राप्ति नहीं होती है इसे विश्वास पूर्वक धारण करने से बंध्या स्त्री को भी सकती है संतान प्राप्त हो। इसे धारण करने से बल व तेज में वृद्धि होती है। मकर व कुंभ राशि के व्यक्ति इसे धारण कर जीवन-पर्यंत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ रूं मूं औं’। विधि विधान से पूजन अर्चना कर काले धागे में सोमवार के दिन इसे धारण करना चाहिए।
बारह मुखी रुद्राक्ष
बारह मुखी रुद्राक्ष को विष्णु स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं। इसे धारण करने से दोनों लोकों का सुख प्राप्त होता है तथा व्यक्ति भाग्यवान होता है। यह नेत्र ज्योति में वृद्धि करता है। यह बुद्धि तथा स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह समृद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान दिलाता है। दरिद्रता का नाश होता है। बढ़ता है मनोबल। सांसारिक बाधाएं दूर होती हैं तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैेे तथा असीम तेज एवं बल की प्राप्ति होती है।
बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं क्षौंत्र घुणंः श्रीं’। मंत्रोच्चारण के साथ प्रातः काले धागे में सोमवार को पूजन अर्चन कर इसे धारण करें।
तेरह मुखी रुद्राक्ष
यह रुद्राक्ष साक्षात् इंद्र का स्वरूप है। यह समस्त कामनाओं एवं सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। निः संतान को संतान तथा सभी कार्यों में सफलता मिलती है अतुल संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा भाग्योदय होता है। यह समस्त शक्ति तथा ऋद्धि-सिद्धि का दाता है। यह कार्य सिद्धि प्रदायक तथा मंगलदायी है। सिंह राशि वालों के लिए यह उत्तम है।
तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ इं यां आप औं‘ं प्रातः काल स्नान कर आसन पर भगवान के समक्ष बैठकर विधि-विधान से पूजन कर काले धागे में सोमवार को इसे धारण करना चाहिए। ‘ऊँ ह्रीं नमः’। मंत्र का भी उच्चारण किया जा सकता है।
चैदह मुखी रुद्राक्ष
यह भगवान शंकर का सबसे प्रिय रुद्राक्ष है। यह हनुमान जी का स्वरूप है। धारण करने वाले को परमपद प्राप्त होता है। इसे धारण करने से शनि व मंगल दोष की शांति होती है। दैविक औषधि के रूप में यह शक्ति बनकर शरीर को स्वस्थ रखता है। सिंह राशि वाले इसको धारण करें, तो उत्तम रहेगा।
चैदह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ औं हस्फ्रे खत्फैं हस्त्रौं हसत्फ्रैं’। सोमवार के दिन स्नानादि कर पूजन-अर्चन कर काले धागे में इसे धारण करें।
रुद्राक्ष की पहचान कैसे करें
रुद्राक्ष हमेशा उन्हीं लोगों से संबंधित रहा है, जिन्होंने इसे अपने पावन कर्तव्य के तौर पर अपनाया। परंपरागत तौर पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे सिर्फ रुद्राक्ष का ही काम करते रहे थे। हालांकि यह उनके रोजी रोटी का साधन भी रहा, लेकिन मूल रूप से यह उनके लिए परमार्थ का काम ही था। जैसे-जैसे रुद्राक्ष की मांग बढ़ने लगी, इसने व्यवसाय का रूप ले लिया। आज, भारत में एक और बीज मिलता है, जिसे भद्राक्ष कहते हैं और जो जहरीला होता है। भद्राक्ष का पेड़ उत्तर प्रदेश, बिहार और आसपास के क्षत्रों में बहुतायत में होता है। पहली नजर में यह बिलकुल रुद्राक्ष की तरह दिखता है।
देखकर आप दोनों में अंतर बता नहीं सकते। अगर आप संवेदनशील हैं, तो अपनी हथेलियों में लेने पर आपको दोनों में अंतर खुद पता चल जाएगा। चूंकि यह बीज जहरीला होता है, इसलिए इसे शरीर पर धारण नहीं करना चाहिए। इसके बावजूद बहुत सी जगहों पर इसे रुद्राक्ष बताकर बेचा जा रहा है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि जब भी आपको रुद्राक्ष लेना हो, आप इसे किसी भरोसेमंद जगह से ही लें।
जब आप रुद्राक्ष धारण करते हैं, तो यह आपके प्रभामंडल (औरा) की शुद्धि करता है। इस प्रभामंडल का रंग बिलकुल सफेद से लेकर बिलकुल काले और इन दोनों के बीच पाए जाने वाले अनगिनत रंगों में से कुछ भी हो सकता है। इसका यह मतलब कतई नहीं हुआ कि आज आपने रुद्राक्ष की माला पहनी और कल ही आपका प्रभामंडल सफेद दिखने लगे!
अगर आप अपने जीवन को शुद्ध करना चाहते हैं तो रुद्राक्ष उसमें मददगार हो सकता है। जब कोई इंसान अध्यात्म के मार्ग पर चलता है, तो अपने लक्ष्य को पाने के लिए वह हर संभव उपाय अपनाने को आतुर रहता है। ऐसे में रुद्राक्ष निश्चित तौर पर एक बेहद मददगार जरिया साबित हो सकता है।
रुद्राक्ष माला एक कवच की तरह है
रुद्राक्ष नकारात्मक ऊर्जा के बचने के एक असरदार कवच की तरह काम करता है। कुछ लोग नकारात्मक शक्ति का इस्तेमाल करके दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह अपने आप में एक अलग विज्ञान है। अथर्व वेद में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है कि कैसे ऊर्जा को अपने फायदे और दूसरों के अहित के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। अगर कोई इंसान इस विद्या में महारत हासिल कर ले, तो वह अपनी शक्ति के प्रयोग से दूसरों को किसी भी हद तक नुकसान पहुंचा सकता है, यहां तक कि दूसरे की मृत्यु भी हो सकती है। इन सभी स्थितियों में रुद्राक्ष कवच की तरह कारगर हो सकता है।
आपको शायद ऐसा लगता हो कि कोई मुझे क्यों नुकसान पहुंचाएगा! लेकिन यह जरूरी नहीं कि जान बूझकर आपको ही लक्ष्य बनाया गया हो। मान लीजिए आपके पास बैठे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही हो, लेकिन वह आदमी उस ऊर्जा के प्रति ग्रहणशील नहीं है। ऐसे में, उसके बगल में बैठे होने की वहज से, उस शक्ति का नकारात्मक असर आप पर भी हो सकता है। यह ठीक वैसे ही है कि जैसे किसी सडक़ पर दो लोग एक-दूसरे पर गोली चला रहे हैं, लेकिन गोली गलती से आपको लग जाती है। भले ही गोली आप पर नहीं चलाई गई, फिर भी आप जख्मी हो सकते हैं, क्योंकि आप गलत वक्त पर गलत जगह पर मौजूद थे। हालांकि इस सबसे डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन रुद्राक्ष ऐसी किसी भी परिस्थिति से आपकी रक्षा करता है।
गुरु एक ही रुद्राक्ष को अलग-अलग लोगों के लिए अलग-तरह से जागृत करता है। परिवार में रहने वाले लोगों के लिए रुद्राक्ष अलग तरह से प्रतिष्ठित किए जाते हैं। अगर आप ब्रह्मचारी या संन्यासी हैं, तो आपके रुद्राक्ष को दूसरे तरीके से ऊर्जित किया जाएगा। ऐसा रुद्राक्ष सांसारिक जीवन जी रहे लोगों को नहीं पहनना चाहिए।
रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर 21-मुखी तक होते हैं, जिन्हें अलग-अलग प्रयोजन के लिए पहना जाता है। इसलिए बस किसी भी दुकान से कोई भी रुद्राक्ष खरीदकर पहन लेना उचित नहीं होता। हालांकि पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे सुरक्षित विकल्प है जो हर किसी – स्त्री, पुरुष, बच्चे, हर किसी के लिए अच्छा माना जाता है। यह सेहत और सुख की दृष्टि से भी फायदेमंद हैं, जिससे रक्तचाप नीचे आता है और स्नायु तंत्र तनाव मुक्त और शांत होता है।
रुद्राक्ष के फायदे
रुद्राक्ष के संबंध में एक और बात महत्वपूर्ण है। खुले में या जंगलों में रहने वाले साधु-संन्यासी अनजाने सोत्र का पानी नहीं पीते, क्योंकि अक्सर किसी जहरीली गैस या और किसी वजह से वह पानी जहरीला भी हो सकता है। रुद्राक्ष की मदद से यह जाना जा सकता है कि वह पानी पीने लायक है या नहीं। रुद्राक्ष को पानी के ऊपर पकड़ कर रखने से अगर वह खुद-ब-खुद घड़ी की दिशा में घूमने लगे, तो इसका मतलब है कि वह पानी पीने लायक है। अगर पानी जहरीला या हानि पहुंचाने वाला होगा तो रुद्राक्ष घड़ी की दिशा से उलटा घूमेगा। इतिहास के एक खास दौर में, देश के उत्तरी क्षेत्र में, एक बेहद बचकानी होड़ चली। वैदिककाल में सिर्फ एक ही भगवान को पूजा जाता था – रुद्र यानी शिव को। समय के साथ-साथ वैष्णव भी आए। अब इन दोनों में द्वेष भाव इतना बढ़ा कि वैष्णव लोग शिव को पूजने वालों, खासकर संन्यासियों को अपने घर बुलाते और उन्हें जहरीला भोजन परोस देते थे। ऐसे में संन्यासियों ने खुद को बचाने का एक अनोखा तरीका अपनाया। काफी शिव भक्त आज भी इसी परंपरा का पालन करते हैं। अगर आप उन्हें भोजन देंगे, तो वे उस भोजन को आपके घर पर नहीं खाएंगे, बल्कि वे उसे किसी और जगह ले जाकर, पहले उसके ऊपर रुद्राक्ष रखकर यह जांचेंगे कि भोजन खाने लायक है या नहीं।