Sunday, November 12, 2017

कलियुग में मोक्ष की प्राप्ति

वैदिक संस्कृति की परिकल्पना आज से हजारों वर्षो पूर्व वैदिक ऋषियों द्वारा की गई थी जिनका सृष्टिकर्ता के साथ सीधा संपर्क था। महर्षि वेद व्यास जी ने समाज में होने वाले अपकर्ष और संस्कृति पर आने वाले संकट का पूर्वानुमान लगाते हुए वेदों के ज्ञान को पुराणों के माध्यम से हमें 5000 वर्षो पूर्व लिखित रूप में दिया। इन सब पुराणों में ,श्रीमद देवीभागवत में विभिन्न युगों-सतयुग त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग की विस्तार से व्याख्या की गई है।



जो मनुष्य धर्म का पालन करते हैं वे सतयुग में जन्म लेते हैं। जिन मनुष्यों की प्रीति धर्म और अर्थ (भौतिक  सम्पन्नता ) दोनों में है वे त्रेतायुग में जन्म लेते है। जो धर्म, अर्थ और काम (इच्छाएं) तीनों में प्रीती रखते हैं वे द्वापर में जन्म लेते है तथा जो सिर्फ अर्थ और काम में लिप्त होते है वे कलियुग में जन्म लेते हैं। अतः सतयुग में योग-‘ज्ञानथा, त्रेता में ध्यान के माध्यम सेज्ञानप्राप्त हुआ। द्वापरयुग में कर्म प्रधान हुआ और श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से निष्काम कर्म सिखाया-प्रत्येक प्राणी की सहायता अनासक्त होकर करना। वर्तमान कलियुग का योग-सेवा है क्योंकि कर्म प्रधान है इसलिए जब हम सेवा करते हैं तो हमारे कर्म स्वतः ही सुधारते हैं। कर्म वह नहीं है की दूसरे के बारे में अच्छा विचार किया और फिर अपने भोगों में लिप्त हो गए। यह एक कृत्य है जोकि या तो सकारात्मक या फिर नकारात्मक हो सकता है।

जब आप दुसरो की सहायता करके अपने कर्म सुधारते हैं तब आप ध्यान के लिए योग्य बनते है और जब ध्यान होगा तब ही ज्ञान मिलेगा। जब ज्ञान मिलेगा तब आप मोक्ष प्राप्ति के योग्य बनेंगे। यदि हम अच्छे कर्म करते हैं तभी ध्यान कर पाते है और ध्यान के द्वारा ही ज्ञान की प्राप्ति होगी। जब मैं इतने सारे अपराध होते देखता हूं जानवरो को प्रताड़ित किया जा रहा है और प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट किया जा रहा है। मेरे मनन में कोई शंका नहीं रहती की हम कलियुग के अंत के समीप हैं और कलियुग में मोक्ष का मार्ग केवल सेवा है-दुर्बल की रक्षा और सकुशल व्यस्था सेवा दो प्रकार की होती है। पहला जैसा आपको अच्छा लगता है वैसा करे, यह मार्ग आपको सिद्धियां धन दौलत और यश देगा। दूसरा सेवा मार्ग वो जोकि आपके गुरु द्वारा दिखाया गया  है। यदि आप इस मार्ग पर चलते हैं तो आपको मोक्ष प्राप्त होता है।

ध्यान रहे की चारों गुरू युगों में कलियुग सबसे भौतिकवादी है परंतु इस युग में मोक्ष प्राप्त करना सबसे आसान है। गुरु के वाक्य के अनुसार यदि आप छोटा सा सेवा और दान का कृत्य भी करते है तो उसका फल बहुरूपता में मिलता है। सनातन क्रिया का नियमित अभ्यास गुरु तत्त्व के साथ संपर्क प्रत्यास्थापित करता है और आपको गुरु द्वारा बनाए मार्ग पर चलने में सक्षम करता है।


No comments:

Post a Comment