Wednesday, November 29, 2017

मोक्षदा एकादशी

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है. प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं. मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के रुप में जाना जाता है.  मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी अनेकों पापों को नष्ट करने वाली है. मोक्षदा एकादशी  को दक्षिण भारत में वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था.



 पद्मपुराणमें भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं-इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप आदि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए. मोक्षदाएकादशी बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है. इस दिन उपवास रखकर श्रीहरिके नाम का संकीर्तन, भक्तिगीत, नृत्य करते हुए रात्रि में जागरण करें. व्रत का पारण भी निश्चित समय में किया जाना चाहिए तथा इस एकादशी के व्रत का पारण 1 दिसम्बर को प्रात: 9.39 से पहले करना चाहिए.

पूर्वकाल में वैखानस नामक राजा ने पर्वत मुनि के द्वारा बताए जाने पर अपने पितरों की मुक्ति के उद्देश्य से इस एकादशी का सविधि व्रत किया था. इस व्रत के पुण्य-प्रताप से राजा वैखानस के पितरोंका नरक से उद्धार हो गया. जो इस कल्याणमयीमोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. प्राणियों को भवबंधन से मुक्ति देने वाली यह एकादशी चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली है. मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा पढने-सुनने से वाजपेय यज्ञ का पुण्य फल मिलता है.

मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन ही कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीताका उपदेश दिया था. अत:यह तिथि गीता जयंती के नाम से विख्यात हो गई. इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोड़ी देर गीता अवश्य पढें. गीतारूपीसूर्य के प्रकाश से अज्ञानरूपीअंधकार नष्ट हो जाएगा.

इस दिन श्री कृष्ण व गीता का पूजन शुभ फलदायक होता है. ब्राह्राण भोजन कराकर दान आदि कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते है. यह एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है. इस दिन भगवान श्री दामोदर की पूजा, धूप, दीप नैवेद्ध आदि से भक्ति पूर्वक करनी चाहिए.

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

महाराज युधिष्ठिर ने कहा- हे भगवन! आप तीनों लोकों के स्वामी, सबको सुख देने वाले और जगत के पति हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हे देव! आप सबके हितैषी हैं अत: मेरे संशय को दूर कर मुझे बताइए कि मार्गशीर्ष एकादशी का क्या नाम है?

उस दिन कौन से देवता का पूजन किया जाता है और उसकी क्या विधि है? कृपया मुझे बताएँ। भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि धर्मराज, तुमने बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है। इसके सुनने से तुम्हारा यश संसार में फैलेगा। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अनेक पापों को नष्ट करने वाली है। इसका नाम मोक्षदा एकादशी है।

इस दिन दामोदर भगवान की धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। अब इस विषय में मैं एक पुराणों की कथा कहता हूँ। गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूँ। यहाँ से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूँ। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूँ?

राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे।

ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे च्ति में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।

तब राजा ने कहा ‍इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है। यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएँ पूर्ण करने वाला है।

इस दिन भगवान श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को दिया था गीता का संदेश

भगवत गीता हिन्दू धर्म का बहुत ही प्रमुख ग्रंथ है। महाभारत युद्ध में जब पांडव और कौरव आमने-सामने हुए थे तो अपने सगे संबंधियों के खिलाफ शस्‍त्र उठाने को लेकर अर्जुन असमंजस में पड़ गए। अर्जुन को इस मोह और दुविधा से निकालने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को नीति ज्ञान दिया। इस नीति ज्ञान का संकलन भगवत गीता के नाम से जाना जाता है। श्री कृष्ण के मुख कही गई बातों का संकलन होने के कारण इसे भगवान की वाणी भी माना जाता है। जिस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश दिया था वह मार्गशीर्ष एकादशी का दिन था। इसलिए इस दिन मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है। अठारह अध्यायों में संकलित भगवद गीता दर्शनशास्त्र का अद्भुत संकलन है, जो मनुष्य को कर्म करते हुए मोक्ष प्राप्ति की राह दिखाता है। माना जाता है कि मोक्षदा एकादशी के दिन जो व्यक्ति गीता का पाठ करता है उसे पूर्व में किए कई पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए इस दिन को गीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि गीता जयंती यानी मोक्षदा एकादशी के दिन भगवत गीता की पूजा करके  आरती करनी चाहिए, इसके पश्चात गीता का पाठ करना चाहिए। इससे महापुण्य की प्राप्त होती है।

शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करता है और भगवत गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करता है उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं। ग्यारहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को विश्वरूप के दर्शन का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में बताया गया है कि अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण को संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त देखा। श्री कृष्ण में ही अर्जुन ने भगवान शिव, ब्रह्मा एवं जीवन मृत्यु के चक्र को भी देखा। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण अपने परब्रह्म रूप को व्यक्त करते हैं, जिसे देखकर अर्जुन का मोह भंग हो गया और वह युद्घ करने के लिए तैयार हो गए। इसलिए इस अध्याय का नियमित पाठ बड़ा ही उत्तम फलदायी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति नियमित गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करता है, उसे भगवान विष्णु के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है।

ऐसे व्यक्ति की आत्मा मृत्यु के पश्चात परमात्मा के स्वरूप में विलीन हो जाती है अर्थात उन्हें मोक्ष मिल जाता है। गीता का अठारवां अध्याय मोक्ष संयास योग के नाम से जाना जाता है। जो व्यक्ति समय के अभाव में संपूर्ण गीता का पाठ नहीं कर पाता हैं वह केवल अठारवें अध्याय का पाठ करें तो उन्हें संपूर्ण गीता पाठ का लाभ मिल जाता है। 

मोक्षदा एकादशी को श्री कृष्ण का पूजन कर व्रत रखने का विधान है इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ग्रह शांति के लिए इस व्रत को करने से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। घर पर मंडरा रहे संकटों के बादल समाप्त होते हैं और स्थिर लक्ष्मी का वास होता है।

इस दिन श्रीकृष्ण व गीता का पूजन शुभ फलदायक होता है। ब्राह्मण भोजन कराकर दान आदि कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। यह एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान श्रीदामोदर की पूजा, धूप, दीप नैवेद्ध आदि से भक्ति पूर्वक करनी चाहिए। व्रत के दिन स्नान करने के बाद ही मंदिर में पूजा करने के लिये जाना चाहिए। मंदिर या घर में श्रीविष्णु पाठ करना चाहिए और भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही होता है। व्रत की रात्रि में जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृद्धि होती है। मोक्षदा एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति के पूर्वज जो नरक में चले गए हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

इस एकादशी के दिन पान न खाएं, किसी की निन्दा न करें, क्रोध न करें, झूठ न बोलें, दिन के समय न सोएं, तेल में बना हुआ खाना न खाएं, कांसे के बर्तनों का इस्तेमाल न करें, व्रत न रख सकें तो प्याज, लहसुन और चावल का सेवन न करें।

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