Tuesday, November 28, 2017

गीता जयंती - इस दिन भगवान श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को दिया था गीता का संदेश

भगवत गीता हिन्दू धर्म का बहुत ही प्रमुख ग्रंथ है। महाभारत युद्ध में जब पांडव और कौरव आमने-सामने हुए थे तो अपने सगे संबंधियों के खिलाफ शस्‍त्र उठाने को लेकर अर्जुन असमंजस में पड़ गए। अर्जुन को इस मोह और दुविधा से निकालने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को नीति ज्ञान दिया। इस नीति ज्ञान का संकलन भगवत गीता के नाम से जाना जाता है। श्री कृष्ण के मुख कही गई बातों का संकलन होने के कारण इसे भगवान की वाणी भी माना जाता है। जिस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश दिया था वह मार्गशीर्ष एकादशी का दिन था। इसलिए इस दिन मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है। अठारह अध्यायों में संकलित भगवद गीता दर्शनशास्त्र का अद्भुत संकलन है, जो मनुष्य को कर्म करते हुए मोक्ष प्राप्ति की राह दिखाता है। माना जाता है कि मोक्षदा एकादशी के दिन जो व्यक्ति गीता का पाठ करता है उसे पूर्व में किए कई पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए इस दिन को गीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि गीता जयंती यानी मोक्षदा एकादशी के दिन भगवत गीता की पूजा करके  आरती करनी चाहिए, इसके पश्चात गीता का पाठ करना चाहिए। इससे महापुण्य की प्राप्त होती है।
 
 

शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करता है और भगवत गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करता है उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं। ग्यारहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को विश्वरूप के दर्शन का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में बताया गया है कि अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण को संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त देखा। श्री कृष्ण में ही अर्जुन ने भगवान शिव, ब्रह्मा एवं जीवन मृत्यु के चक्र को भी देखा। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण अपने परब्रह्म रूप को व्यक्त करते हैं, जिसे देखकर अर्जुन का मोह भंग हो गया और वह युद्घ करने के लिए तैयार हो गए। इसलिए इस अध्याय का नियमित पाठ बड़ा ही उत्तम फलदायी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति नियमित गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करता है, उसे भगवान विष्णु के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है।

ऐसे व्यक्ति की आत्मा मृत्यु के पश्चात परमात्मा के स्वरूप में विलीन हो जाती है अर्थात उन्हें मोक्ष मिल जाता है। गीता का अठारवां अध्याय मोक्ष संयास योग के नाम से जाना जाता है। जो व्यक्ति समय के अभाव में संपूर्ण गीता का पाठ नहीं कर पाता हैं वह केवल अठारवें अध्याय का पाठ करें तो उन्हें संपूर्ण गीता पाठ का लाभ मिल जाता है। 

मोक्षदा एकादशी को श्री कृष्ण का पूजन कर व्रत रखने का विधान है इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ग्रह शांति के लिए इस व्रत को करने से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। घर पर मंडरा रहे संकटों के बादल समाप्त होते हैं और स्थिर लक्ष्मी का वास होता है।

इस दिन श्रीकृष्ण व गीता का पूजन शुभ फलदायक होता है। ब्राह्मण भोजन कराकर दान आदि कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। यह एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान श्रीदामोदर की पूजा, धूप, दीप नैवेद्ध आदि से भक्ति पूर्वक करनी चाहिए। व्रत के दिन स्नान करने के बाद ही मंदिर में पूजा करने के लिये जाना चाहिए। मंदिर या घर में श्रीविष्णु पाठ करना चाहिए और भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही होता है। व्रत की रात्रि में जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृद्धि होती है। मोक्षदा एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति के पूर्वज जो नरक में चले गए हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

इस एकादशी के दिन पान न खाएं, किसी की निन्दा न करें, क्रोध न करें, झूठ न बोलें, दिन के समय न सोएं, तेल में बना हुआ खाना न खाएं, कांसे के बर्तनों का इस्तेमाल न करें, व्रत न रख सकें तो प्याज, लहसुन और चावल का सेवन न करें।

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